हिंदू धर्म में शादी के समय 7 फेरे ही क्यों, इससे कम या इससे ज्यादा क्यों नहीं: क्या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण हैं या फिर धार्मिक वजह, जानें विस्तार से
हिंदू धर्म में शादी के समय 7 फेरे ही क्यों, इससे कम या इससे ज्यादा क्यों नहीं

शादी के 7 फेरे! हिंदू धर्म में शादी की परंपराओं में सात फेरों का भी एक चलन है जो सबसे मुख्य रस्म होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूरी मानी जाती है। विवाह के फेरे लेते समय दूल्हा व दुल्हन को सात वचन दिलाए जाते हैं। 

यह सात फेरे ही पति-पत्नी के रिश्ते को सात जन्मों तक बांधते हैं।  लेकिन क्या आप जानते हैं कि शादी में 7 फेरे ही क्यों लिए जाते हैं? आखिर इन सात फेरों का क्या है महत्व? आइए इस लेख के जरिए आज हम आपको विस्तार से बताएंगे। 

सोचिए अगर किसी शादी में दूल्हा-दुल्हन 6 या 8 फेरे लें तो क्या वो शादी अधूरी मानी जाएगी? हिंदू रीति-रिवाज में आखिर ऐसा क्या है कि सिर्फ और सिर्फ 7 ही फेरे लिए जाते हैं? क्या ये कोई अंधविश्वास है, या इसके पीछे कोई बड़ा धार्मिक और वैज्ञानिक कारण है? आज हम आपको इस सवाल का जवाब इतने आसान और दिलचस्प तरीके से समझाएंगे कि एक छोटा बच्चा भी इसे आराम से समझ सकेगा।

दो परिवारों का मिलन होती है शादी...

हिंदू धर्म में शादी यानि विवाह एक बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। इसे न केवल 2 व्यक्तियों का मिलन बल्कि दो परिवारों का जुड़ाव माना जाता है। यह बंधन न सिर्फ दूल्हा-दुल्हन को जोड़ता है बल्कि समाज और परिवारों के बीच भी एक मजबूत संबंध बनाता है। इसीलिए शादी को लेकर कुछ नियम और रस्में होती हैं, जिन्हें पालन करना बहुत महत्वपूर्ण होता है।

अंक 7 का महत्व क्या होता है?

दरअसल अंक 7 को हिंदू धर्म में बहुत शुभ और पवित्र माना जाता है। यह अंक पूर्णता, समर्पण और सफलता का प्रतीक है। संगीत में 7 सुर होते हैं, इंद्रधनुष में 7 रंग होते हैं, और सप्ताह में 7 दिन होते हैं। इसलिए अंक 7 को भाग्यशाली माना जाता है और यह विवाह में भी एक विशेष स्थान रखता है।

शरीर में भी योग और ऊर्जा के 7 केंद्र

इसके अलावा योग विज्ञान कहता है कि मानव शरीर में 7 ऊर्जा के केंद्र होते हैं जिन्हें चक्र कहा जाता है। विवाह के सात फेरों के दौरान दूल्हा और दुल्हन अपने इन सात ऊर्जा केंद्रों को एक-दूसरे के साथ जोड़ते हैं जिससे उनका संबंध और भी मजबूत और संपूर्ण होता है।


7 फेरों का मतलब क्या होता है?

हिंदू धर्म में शादी केवल दो लोगों का मिलन नहीं होता, ये दो आत्माओं का एक पवित्र बंधन होता है। शादी के समय जो अग्नि के चारों ओर फेरे लिए जाते हैं उन्हें ‘सप्तपदी’ कहा जाता है। ‘सप्त’ यानी सात और ‘पदी’ यानी कदम। यानी पति और पत्नी सात कदम साथ चलते हैं, और हर कदम पर एक खास वचन या वादा करते हैं।

इन वचनों में जीवनभर साथ निभाने, प्यार करने, एक-दूसरे का सम्मान करने, खुशियों और दुखों में साथ रहने जैसे वादे होते हैं। ये वादे शादी को सिर्फ सामाजिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक और धार्मिक बना देते हैं।

सिर्फ 7 ही क्यों? 6 या 8 क्यों नहीं?

अब सवाल उठता है कि 7 ही क्यों? तो इसका जवाब हमें हिंदू धर्म की सबसे पुरानी किताबों– वेदों में मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार शादी को पूरा करने के लिए सात फेरे जरूरी होते हैं, क्योंकि यही सात वचन होते हैं जो पति-पत्नी को जन्म-जन्मांतर तक जोड़ते हैं।

अगर 6 फेरे लिए जाएं तो एक वचन अधूरा रह जाता है और शादी पूरी नहीं मानी जाती। वहीं 8 फेरे लेने का कोई नियम या परंपरा वेदों में नहीं है। इसलिए न ज्यादा फेरे लेने का मतलब होता है, न कम।

7 का नंबर इतना खास क्यों है?

अब बात करते हैं 7 नंबर की। हिंदू धर्म में ये संख्या बहुत खास मानी जाती है.....

•हमारे हफ्ते के सात दिन होते हैं– सोमवार से रविवार तक।

•आकाश में सात रंगों का इंद्रधनुष होता है।

•संगीत में सात सुर होते हैं – सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि।

•हिंदू धर्म में सात लोक (दुनिया) माने जाते हैं और सात समुद्रों की बात होती है।

यह सब दिखाता है कि 7 एक ‘पूर्ण’ यानी पूरा करने वाली संख्या है। इसी वजह से शादी में भी 7 फेरे लेकर इसे पूरा माना जाता है।

पहले 4 फेरों में दूल्हा आगे तो अंतिम के 3 में दुल्हन

मालूम हो कि विवाह के 7 फेरों में से पहले 4 फेरों में दूल्हा आगे चलता है, जबकि दुल्हन अंतिम 3 फेरों में चलती है। फेरों को विवाह में सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाता है। प्रत्येक फेरे में दूल्हा और दुल्हन एक-दूसरे के प्रति वचनबद्ध होते हैं।

फेरे सिर्फ रस्म नहीं, एक जीवन का आधार हैं

शादी में लिए गए ये फेरे सिर्फ एक रस्म नहीं बल्कि पूरे वैवाहिक जीवन का आधार होते हैं। हर फेरे के साथ पति-पत्नी एक-दूसरे से कुछ वादे करते हैं– जैसे एक-दूसरे का ख्याल रखना, मिलकर घर चलाना, संतान का पालन करना, दुख-सुख में साथ देना, बीमारियों में एक-दूसरे का साथ निभाना और जिंदगी भर एक-दूसरे के सच्चे दोस्त बने रहना।

इन वादों को निभाने के बाद ही शादी सफल मानी जाती है। इसलिए इन फेरों की संख्या बदलना आसान नहीं और न ही ये किसी मजाक या फैशन के लिए बनाए गए हैं।

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