नई दिल्ली: मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में भारत के सुप्रीम कोर्ट के 52वें मुख्य-न्यायाधीश के रूप में जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने शपथ ली। राष्ट्रपति मुर्मू ने उन्हें गोपनीयता व पद की वचन दिलाई। समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जजों और कई केंद्रीय मंत्रियों की उपस्थिति ने इस अवसर को और खास बना दिया।
सिर्फ 6 महीने का कार्यकाल, फिर भी ऐतिहासिक महत्व:
जानकारी के अनुसार जस्टिस गवई इसी साल 24 नवंबर को रिटायर होंगे।
इस लिहाज़ से उनका कार्यकाल लगभग 6 महीने का होगा।
CJI 65 वर्ष तक अपने पद पर बना रहता है। हालांकि, इतना छोटा कार्यकाल होने के बावजूद उनका CJI बनना सामाजिक न्याय और समावेशी न्यायपालिका की दिशा में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।
पहला बौद्ध CJI, दूसरा दलित – सामाजिक न्याय की ओर बड़ा कदम:
आपको बता दें कि जस्टिस गवई भारत के पहले बौद्ध मुख्य न्यायाधीश हैं और दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश बनने का गौरव भी उन्हें प्राप्त हुआ है।
इससे पहले 2007 में जस्टिस KG बालाकृष्णन पहले दलित मुख्य न्यायधीश बने थे।
गवई का चयन यह संदेश देता है कि भारत की न्यायिक व्यवस्था अब वंचित और हाशिए पर खड़े समुदायों को भी सर्वोच्च मंच तक पहुंचने का अवसर दे रही है।
मां के शब्दों में संघर्ष और गौरव की कहानी:
शपथ ग्रहण के बाद मीडिया से बात करते हुए जस्टिस गवई की मां कमलताई गवई भावुक हो उठीं।
उन्होंने कहा कि:
"हमने गरीबी में दिन बिताए, लेकिन मेरा बेटा कभी हारा नहीं। वो न्याय की राह पर चला, अपने पिता के दिखाए रास्ते पर। आज मैं गर्व से भर गई हूं।"
गवई के पिता राष्ट्रवादी नेता रहे रघुनाथ गवई भी संविधान और सामाजिक न्याय के बड़े पैरोकार थे।
जस्टिस गवई की प्रेरणादायक यात्रा:
●जन्म: 24 नवंबर 1960, अमरावती, महाराष्ट्र
●वकालत की शुरुआत: 1985, बॉम्बे हाईकोर्ट
●स्वतंत्र प्रैक्टिस: 1987
●सरकारी वकील नियुक्त: 1992-93
●बॉम्बे हाईकोर्ट जज: 2003 (एडिशनल), 2005 (परमानेंट)
●सुप्रीम कोर्ट जज नियुक्त: 24 मई 2019
आपको बता दें कि करीब 40 वर्षों के कानूनी अनुभव के साथ वे अब देश की सर्वोच्च संवैधानिक कुर्सी पर आसीन हैं।
बड़े फैसलों में सक्रिय भूमिका: न्यायिक विवेक का प्रमाण:
गौरतलब है कि जस्टिस गवई सुप्रीम कोर्ट की उन पीठों में शामिल रहे हैं जिन्होंने कई ऐतिहासिक फैसले दिए:
●नोटबंदी (2016) के पक्ष में फैसला देकर सरकार की नीति को वैध ठहराया
●इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक करार दिया
●आरक्षण के कई महत्वपूर्ण मामलों में संतुलित दृष्टिकोण रखा
उनका दृष्टिकोण हमेशा संविधान के मूल्यों को केंद्र में रखकर फैसला देने का रहा है।
भीड़ के न्याय पर चेतावनी: "जनता का भरोसा टूटा तो अराजकता फैलेगी:
आपको बता दें कि 2024 में गुजरात में एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था कि
"अगर कोर्ट पर लोगों का भरोसा डगमगाया, तो वे न्याय पाने के लिए कानून की जगह हिंसा और भीड़ का सहारा लेने लगेंगे।"
उनका यह बयान भारत में न्यायिक व्यवस्था की नाजुक स्थिति और जिम्मेदारी दोनों को दर्शाता है।
अगला नंबर किसका? जस्टिस सूर्यकांत पर टिकी निगाहें:
जानकारी के अनुसार जस्टिस गवई के बाद सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठता क्रम में जस्टिस सूर्यकांत आते हैं।
अगर परंपरा के अनुसार उन्हें नियुक्त किया गया, तो वे भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे और उनका कार्यकाल अपेक्षाकृत लंबा होगा।
क्या है CJI का संवैधानिक प्रावधान, वेतन और भत्ते:
आपको बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत संवैधानिक दर्जा प्राप्त है।
मुख्य न्यायाधीश को वही सम्मान और सुविधाएं प्राप्त होती हैं जो किसी कैबिनेट मंत्री को मिलती हैं।
प्रमुख सुविधाएं:
●वेतन: ₹2.80 लाख प्रतिमाह (सरकारी स्केल के अनुसार)
●आवास: लुटियंस दिल्ली में विशेष बंगला
●सुरक्षा: Z+ श्रेणी की सुरक्षा
●अन्य भत्ते: वाहन, स्टाफ, चिकित्सा, यात्रा भत्ता आदि
●सेवानिवृत्ति के बाद: कई बार राज्यसभा में नामांकन, आयोगों या ट्रिब्यूनलों में नियुक्ति संभव
इससे स्पष्ट होता है कि CJI का पद न केवल न्यायिक दृष्टि से सर्वोच्च है, बल्कि गरिमा और प्रभाव के लिहाज़ से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
जस्टिस बीआर गवई का कार्यकाल भले ही 6 महीने का हो, लेकिन उनके चयन ने देश की न्यायपालिका के समावेशी और संवेदनशील होने का संकेत दिया है।
वंचित वर्ग से आए इस न्यायाधीश की नियुक्ति ने करोड़ों युवाओं को यह संदेश दिया है कि मेहनत, ईमानदारी और संविधान में आस्था के दम पर देश की सबसे ऊंची कुर्सियों तक पहुंचा जा सकता है।