क्या 30% महंगी होगी बिजली, यूपी में 50 लाख बिजली चोरों का बोझ ईमानदारों पर क्यों!: 1.10 लाख करोड़ के घाटे की भरपाई आम आदमी की जेब से क्यों...जानें क्या हो सकते इसके सम्भावित समाधान?
क्या 30% महंगी होगी बिजली, यूपी में 50 लाख बिजली चोरों का बोझ ईमानदारों पर क्यों!

 लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बिजली उपभोक्ताओं को इस साल एक तगड़ा झटका लग सकता है। राज्य की बिजली वितरण कंपनियों ने 30% टैरिफ वृद्धि की सिफारिश की है। कंपनियों का दावा है कि अगर ये बढ़ोतरी नहीं हुई, तो वे भारी घाटे के दलदल में और धंस जाएंगी और बचना नामुमकिन होगा। लेकिन इस संकट के पीछे सबसे बड़ा दोषी कौन है, कंपनियों का आरोप है उपभोक्ता खुद इस बढोतरी का कारण हैं।

50 लाख 'डिफॉल्टर', 36,000 करोड़ बकाया :

गौरतलब है कि बिजली कंपनियों के अनुसार, राज्य के 50.24 लाख उपभोक्ताओं ने कभी बिजली बिल जमा ही नहीं किया। इन पर अकेले 36,117 करोड़ रुपए से अधिक का बकाया है। इतना ही नहीं, पिछले छह महीने में 78.65 लाख लोगों ने बिल नहीं चुकाया। राज्य के 3.50 करोड़ उपभोक्ताओं में से लगभग 1.30 करोड़ उपभोक्ताओं पर 72 हजार करोड़ का बकाया है।

कंपनियों का कहना है कि ऐसे में "ईमानदार" उपभोक्ताओं पर ही बोझ डालना उनकी मजबूरी है।

बिजली चोरी की खुली छूट, ट्रांसफार्मर फेल, 70 हजार करोड़ बर्बाद? :

आपको बता दें कि राज्य के 23,509 फीडरों में से एक-तिहाई में 50% से अधिक की लाइन लॉस हो रही है। तकनीकी भाषा में यह बिजली चोरी की सीधी स्वीकारोक्ति है। बीते 10 साल में 70,792 करोड़ रुपए बिजली इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार पर खर्च किए गए, फिर भी हालात जस के तस। न चोरी रुकी, न ट्रांसफार्मर फेल होना बंद हुआ।

'कर्ज के जाल' में फंसती कंपनियां, हर यूनिट पर 3.28 रुपए का घाटा :

रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में बिजली कंपनियों ने 1.07 लाख करोड़ खर्च किए, जबकि राजस्व वसूली मात्र 67,955 करोड़ रही। इस घाटे की भरपाई के लिए राज्य सरकार ने 33,344 करोड़ की सब्सिडी दी और फिर भी 5,910 करोड़ का कर्ज लेना पड़ा। 2025-26 में अनुमानित घाटा 54,530 करोड़ रुपये रहा। मार्च 2024 तक यूपी पावर कॉर्पोरेशन का कुल घाटा 1.10 लाख करोड़ पार कर गया है।

क्या टैरिफ बढ़ोतरी ही समाधान है? :

रिपोर्ट के अनुसार बिजली कंपनियों का कहना है कि 100% बिल वसूली संभव नहीं, फिर भी नियामक आयोग दरें तय करते समय इसे मानक मानता है, जिससे घाटा और बढ़ता है। यूपी में पिछले पांच वर्षों से बिजली दरों में कोई वृद्धि नहीं हुई। लेकिन अब कंपनियों ने नियामक आयोग के समक्ष 'वास्तविक घाटे' की बैलेंस शीट रखी है और 30% टैरिफ वृद्धि की मांग की है।

'यह निजीकरण की साजिश है' - कर्मचारी संघ :

उत्तर प्रदेश विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने पावर कॉर्पोरेशन के इन दावों को झूठा और गुमराह करने वाला बताया। उन्होंने कहा –"ये सब निजीकरण को सही ठहराने की साजिश है। आगरा में निजी कंपनी को 5.55 में बिजली खरीद कर 4.36 में दी जा रही है, जिससे हर साल 274 करोड़ का घाटा हो रहा है।"

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब ऊर्जा मंत्री लॉस को 16.5% बता चुके हैं, तो चेयरमैन कैसे 50% हानि दिखा रहे हैं?

'4 दिन में घाटा 9 हजार से 19 हजार कैसे हो गया?' :

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने कहा कि चार दिन पहले जो टैरिफ याचिका पेश की गई, उसमें 9,206 करोड़ का घाटा दिखाया गया था, लेकिन अब वही घाटा लगभग 19 हजार करोड़ कैसे हो गया? उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि ये आंकड़े आम उपभोक्ताओं पर टैरिफ वृद्धि थोपने की चाल है।

जानें क्या हो सकते संभावित समाधान:

●बकायेदार उपभोक्ताओं की सूची सार्वजनिक की जाए, और कड़ी वसूली की कार्रवाई हो।

●स्मार्ट मीटरिंग, एंटी-थेफ्ट टेक्नोलॉजी और डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम लागू हो।

●ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लॉस के आधार पर विशेष ऑडिट और कार्यवाही की जाए।

●राजनीतिक हस्तक्षेप और निजीकरण के लाभ-हानि का स्वतंत्र मूल्यांकन किया जाए।

अगर ईमानदार उपभोक्ताओं से ही लगातार बिजली घाटे की भरपाई करवाई जाती रही, तो यह न केवल अन्यायपूर्ण होगा बल्कि आने वाले समय में बिजली का निजीकरण और महंगाई को खुला न्योता भी होगा। जरूरत है सख्त प्रशासनिक फैसलों, पारदर्शिता और जवाबदेही की।

अन्य खबरे