दिल्ली में प्रदूषण से लड़ने के लिए होगी कृत्रिम बारिश!: IIT कानपुर और DGCA मिलकर करेंगे प्रयोग...जानें कहाँ और कब होंगे ट्रायल्स?
दिल्ली में प्रदूषण से लड़ने के लिए होगी कृत्रिम बारिश!

नई दिल्ली : दिल्ली की जहरीली हवा से राहत पाने के लिए सरकार अब एक नया तरीका अपनाने जा रही है, कृत्रिम बारिश यानी क्लाउड सीडिंग। पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने बताया कि दिल्ली में पहली बार कृत्रिम बारिश के ट्रायल किए जाएंगे। यह ट्रायल अगस्त के अंत और सितंबर की शुरुआत में होंगे, ताकि दिवाली और सर्दियों के समय बढ़ने वाले प्रदूषण को कम किया जा सके। दिवाली और सर्दी के दौरान हर साल दिल्ली की हवा सांस लेने लायक अब सरकार इस अभूतपूर्व टेक्नोलॉजी से स्मॉग का इलाज करना चाहती है।

क्या है योजना?

आपको बता दें कि इस योजना के तहत कुल 5 ट्रायल किए जाएंगे। इसके लिए IIT कानपुर की मदद ली जा रही है और DGCA (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने इसकी अनुमति दे दी है। इस खास तकनीक में एक छोटा विमान ‘सेसना एयरक्राफ्ट’ इस्तेमाल किया जाएगा, जिसमें क्लाउड सीडिंग के उपकरण लगे होंगे। यह विमान बादलों में खास रसायन जैसे सिल्वर आयोडाइड या कैल्शियम क्लोराइड का छिड़काव करेगा, जिससे कृत्रिम बारिश कराई जाएगी।

कहां होगा ट्रायल?

गौरतलब है कि ट्रायल दिल्ली के बाहरी इलाकों में किया जाएगा। इसके लिए अलीपुर, बवाना, रोहिणी, बुराड़ी, पावी सड़कपुर और कुंडली बॉर्डर को चुना गया है। पहले यह ट्रायल जुलाई में होना था, लेकिन मौसम की स्थिति को देखते हुए इसे अगस्त-सितंबर में कर दिया गया। यह 30 अगस्त से 10 सितंबर के बीच किया जाएगा।

कितना आएगा खर्च?

दिल्ली सरकार की फाइल के मुताबिक, एक बार कृत्रिम बारिश कराने में 66 लाख रुपए खर्च होंगे। पूरे पांच ट्रायल पर सरकार करीब 2 करोड़ 55 लाख रुपए खर्च करेगी। पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि अगर ट्रायल सफल रहे तो इसे सर्दियों में फुल-स्केल ऑपरेशन में बदला जाएगा।

क्यों जरूरी है ये प्रयोग?

विदित है कि दिल्ली में हर साल अक्टूबर से दिसंबर के बीच हवा बहुत खराब हो जाती है। AQI (Air Quality Index) 400 से ऊपर चला जाता है, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक है। पिछले साल दिवाली के दौरान AQI 494 तक पहुंच गया था। ऐसे में सरकार को कोई ठोस और तुरंत असर करने वाला उपाय चाहिए, और कृत्रिम बारिश एक नया प्रयोग हो सकता है।

क्या पहले भी हुआ है ऐसा?

आपकी जानकारी के लिये बता दें कि 2017 में महाराष्ट्र के सोलापुर में इसी तकनीक से क्लाउड सीडिंग की गई थी और वहाँ 18% ज्यादा बारिश हुई थी। वैज्ञानिकों ने 2017 से 2019 के बीच 276 बादलों पर यह प्रयोग किया था और अच्छे नतीजे मिले थे। IIT, रडार और ऑटोमैटिक वर्षामापी से इसकी वैज्ञानिक निगरानी हुई थी। अब वही फार्मूला दिल्ली पर आज़माया जाएगा।

आगे क्या होगा?

गौरतलब है कि अगर यह ट्रायल सफल रहता है, तो आने वाले सालों में इसे बड़े स्तर पर लागू किया जाएगा। सरकार चाहती है कि सर्दियों से पहले दिल्ली की हवा में सुधार हो, ताकि लोगों को सांस लेने में परेशानी न हो।

कृत्रिम बारिश दिल्ली में प्रदूषण से लड़ने का एक नया और बड़ा कदम हो सकता है। यह ट्रायल बताएगा कि यह तरीका कितना कारगर है। अगर सफल हुआ, तो देश के दूसरे प्रदूषित शहरों में भी इसे अपनाया जा सकता है।

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