दिल दहला देने वाला कफ सीरप कांड; सुप्रीम कोर्ट में कल होगी सुनवाई!: क्या अब CBI संभालेगी जांच? जानिए मौजूदा चुनौतियाँ, विवाद और आगे की राह
दिल दहला देने वाला कफ सीरप कांड; सुप्रीम कोर्ट में कल होगी सुनवाई!

मामले की शुरुआत, मासूमों की मौत से मचा हड़कंप:
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में कुछ महीनों पहले खांसी से राहत देने वाले ColdRif नामक कफ सीरप पीने के बाद 9 बच्चों की मौत हो गई थी। बच्चों में किडनी फेलियर जैसे लक्षण पाए गए। प्रारंभिक जांच में पता चला कि इस सीरप में डाईएथिलीन ग्लाइकोल (DEG) नामक जहरीला केमिकल मौजूद था, जो इंसान के लिए बेहद घातक होता है।

जांच के दायरे में आने के बाद सीरप के सैंपल देश के विभिन्न लैबों में भेजे गए।
परिणाम चौंकाने वाले थे, ColdRif के अलावा दो और सीरप Respifresh TR और ReLife में भी DEG की मात्रा अत्यधिक पाई गई। मध्य प्रदेश लैब की रिपोर्ट के मुताबिक ColdRif में DEG 48.6%, Respifresh TR में 1.34%, और ReLife में 0.61% था जबकि WHO मानक के अनुसार इसकी अनुमति मात्र 0.1% तक है।

सरकारी कार्रवाई और बैन:
इन खुलासों के बाद केंद्र सरकार ने तत्काल तीनों कफ सीरप को “टॉक्सिक” घोषित कर दिया और उनके निर्माण व बिक्री पर पूरा प्रतिबंध लगा दिया। तमिलनाडु और तेलंगाना की ड्रग एजेंसियों ने भी दवा की फैक्ट्रियों और स्टॉकिस्टों पर छापेमारी कर स्टॉक जब्त किया। तमिलनाडु में स्थित Sresan Pharmaceutical Company के मालिक एस. रंगनाथन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। उन्हें अब मध्य प्रदेश लाया जा रहा है ताकि केस की जांच और न्यायिक प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा सके।

अंतरराष्ट्रीय असर और WHO की चिंता:
यह मामला सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रहा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी रिपोर्ट मांगी क्योंकि भारतीय फार्मा कंपनियों के उत्पाद कई अफ्रीकी देशों में निर्यात होते हैं।
अतीत में भी भारत से निर्यात हुए कुछ कफ सीरप (जैसे Maiden Pharma, Marion Biotech) के कारण गाम्बिया और उज्बेकिस्तान में बच्चों की मौतें हुई थीं। इस बार भी संभावना जताई जा रही है कि जहरीले सीरप की निर्यात बैचों की जांच कराई जाए।

चुनौतियाँ, विवाद और आलोचनाएँ:

राज्य-स्तर जांचों का टकराव:
राज्य सरकारों ने पहले से अपनी जांचें शुरू की थीं। यदि मामला CBI को सौंपा गया, तो इन जांचों को रोका या पुनर्संगठित किया जाना पड़ेगा।

नियामक विफलताएँ:
कई फार्मा कंपनियों ने कच्चे तत्वों और तैयार उत्पादों की गुणवत्ता परीक्षण नहीं किया, यह एक गंभीर चूक है।

दवा उद्योग की छवि:
भारत को “दवा निर्माण में विश्व में अग्रणी” माना जाता है। इस तरह के मामलों से उसकी साख प्रभावित हो सकती है, खास तौर पर निर्यात-उन्मुख व्यापार में।

न्यायिक प्रक्रिया समय:
कोर्ट-निगरानी में जांच लंबी हो सकती है। संसाधन, विशेषज्ञों की कमी और अन्य कानूनी बाधाएँ संभावित हैं।

मुआवजा और जवाबदेही:
पीड़ित परिवारों को मुआवजे की मांग उठने लगी है। विपक्ष और नागरिक समूह सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि दोषियों को कड़ी सजा मिले।

सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा मामला, CBI जांच की मांग:
इस पूरे प्रकरण में अब एक जनहित याचिका (PIL) सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की है कि:

  1. बच्चों की मौतों की जांच CBI को सौंपी जाए, ताकि निष्पक्षता बनी रहे।

  2. जांच की निगरानी सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश करें।

  3. देशभर की दवा कंपनियों की गुणवत्ता जांच प्रणाली (Quality Audit) की समीक्षा हो।

  4. संदिग्ध दवाओं की जांच सिर्फ NABL मान्यता प्राप्त लैबों में की जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस PIL को स्वीकार करते हुए 10 अक्टूबर 2025 (कल) सुनवाई तय की है। कोर्ट ने केंद्र सरकार, स्वास्थ्य मंत्रालय और दवा नियंत्रण विभाग से रिपोर्ट मांगी है।

नियामक एजेंसियों पर सवाल:
इस मामले ने भारत की ड्रग मॉनिटरिंग सिस्टम की कमजोरी उजागर कर दी है। रिपोर्ट के मुताबिक कई कंपनियों ने कच्चे केमिकल की क्वालिटी टेस्टिंग नहीं करवाई थी। सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO) और राज्यों की ड्रग कंट्रोल एजेंसियों पर सवाल उठ रहे हैं कि जहरीले सीरप इतने दिनों तक बाजार में कैसे बिकते रहे।

केंद्र सरकार की सफाई:
स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि सभी संदिग्ध दवाओं के सैंपल राष्ट्रीय लैबों में फिर से टेस्ट कराए जा रहे हैं। सरकार ने दवा निर्माण इकाइयों के लिए कड़े नियमों की नई गाइडलाइन तैयार करने का संकेत दिया है। साथ ही WHO के साथ मिलकर एक “ड्रग सेफ्टी मॉनिटरिंग सेल” बनाने पर भी चर्चा चल रही है।

भारत की फार्मा छवि पर संकट:
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा निर्यातक देश है। ऐसे मामलों से न सिर्फ देश की साख को धक्का लगता है बल्कि विदेशी बाजारों में भारत की दवा कंपनियों पर भरोसा भी कम हो सकता है। अगर सुप्रीम कोर्ट CBI जांच का आदेश देता है, तो यह फार्मा इंडस्ट्री में ऐतिहासिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है।

अब सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर:
कल (10 अक्टूबर) सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या यह जांच CBI को सौंपी जाएगी या नहीं। यह फैसला सिर्फ एक राज्य या कंपनी का नहीं बल्कि भारत की दवा निर्माण प्रणाली की विश्वसनीयता का परीक्षण होगा। अगर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया तो आने वाले महीनों में देशभर की फार्मा कंपनियों पर कड़ी कानूनी और गुणवत्ता जांच की शुरुआत हो सकती है।

निष्कर्ष:
“कफ सीरप कांड” अब एक स्थानीय हादसा नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर का स्वास्थ्य, न्याय और नियामक तंत्र का सवाल बन चुका है। अब देश की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर हैं जो तय करेगा कि क्या इस जहर की जड़ तक पहुंचने का काम CBI करेगी या नहीं।

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