नई दिल्ली : ग्रामीण भारत को लेकर केंद्र सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने सियासी गलियारों से लेकर गांव की चौपाल तक चर्चा तेज कर दी है। देश की सबसे बड़ी ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा अब अपने पुराने नाम से नहीं जानी जाएगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में इसका नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। यही नहीं, सरकार ने इस योजना के तहत मिलने वाले काम के दिनों को भी बढ़ाने का फैसला किया है, जिससे करोड़ों ग्रामीण परिवारों की आमदनी पर सीधा असर पड़ने वाला है।
नाम बदला, लेकिन मकसद और बड़ा :
आपको बता दें कि सरकार का कहना है कि नाम परिवर्तन केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक विचारधारा है। ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ नाम महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज और आत्मनिर्भर गांव के सपने को दर्शाता है। सरकार का दावा है कि इससे योजना को एक नई पहचान मिलेगी और ग्रामीण विकास को नई दिशा मिलेगी। हालांकि, अधिकारियों ने साफ किया है कि योजना की मूल संरचना वही रहेगी बस नाम और काम के दायरे को विस्तार दिया जा रहा है।
अब 100 नहीं, 125 दिन मिलेगा काम :
गौरतलब है कि इस फैसले का सबसे बड़ा असर काम के दिनों की बढ़ोतरी के रूप में सामने आया है। अब ग्रामीण परिवारों को साल में 125 दिन तक रोजगार मिल सकेगा। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, महंगाई, बेरोजगारी और गांवों से शहरों की ओर बढ़ते पलायन को देखते हुए यह कदम उठाया गया है। सरकार चाहती है कि गांव में ही लोगों को ज्यादा काम और ज्यादा आमदनी मिले, ताकि मजदूरी के लिए शहरों की ओर जाने की मजबूरी कम हो।
गांव की अर्थव्यवस्था को मिलेगा बूस्ट :
विदित है कि विशेषज्ञों का मानना है कि अतिरिक्त 25 दिन का रोजगार ग्रामीण अर्थव्यवस्था में नई जान फूंक सकता है। जब गांवों में ज्यादा नकदी पहुंचेगी, तो स्थानीय बाजार, छोटे दुकानदार, कारीगर और सेवा क्षेत्र भी मजबूत होंगे। मनरेगा के काम जैसे सड़क, तालाब, नाला, बागवानी और मिट्टी से जुड़े कार्य, गांवों की बुनियादी सुविधाओं को भी बेहतर बनाएंगे।
अब संसद की बारी
विदित है कि कैबिनेट से हरी झंडी मिलने के बाद अब यह बिल संसद में पेश किया जाएगा। वहां से मंजूरी मिलते ही नाम परिवर्तन और काम के दिनों की बढ़ोतरी कानूनी रूप से लागू हो जाएगी। अधिकारियों के अनुसार, इसके साथ ही नियमों में भी जरूरी संशोधन किए जाएंगे, ताकि नई व्यवस्था जमीन पर उतर सके।
सवाल भी उठ रहे हैं
हालांकि इस फैसले को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि नाम बदलने से ज्यादा जरूरी है भुगतान में देरी और काम की गुणवत्ता जैसी समस्याओं को दूर करना। वहीं सरकार का जवाब है कि यह बदलाव सिर्फ नाम तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि योजना को ज्यादा प्रभावी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
मनरेगा क्या है? (What is MGNREGA)
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) देश की सबसे बड़ी सामाजिक सुरक्षा और रोजगार योजना है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2006 में हुई थी। इस कानून के तहत ग्रामीण भारत के प्रत्येक पंजीकृत परिवार को हर वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिन का सुनिश्चित मजदूरी वाला रोजगार देने की कानूनी गारंटी दी गई है, जिसे अब बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव है। इस योजना का मकसद गांवों में बेरोजगारी कम करना, गरीब परिवारों को आय का स्थायी सहारा देना और पलायन रोकना है। मनरेगा के तहत मजदूरों को तालाब खुदाई, सड़क निर्माण, जल संरक्षण, नाला सफाई, बागवानी और भूमि सुधार जैसे सार्वजनिक कार्यों में रोजगार दिया जाता है। काम न मिलने की स्थिति में बेरोजगारी भत्ता देने का भी प्रावधान है, जिससे यह योजना केवल सरकारी स्कीम नहीं बल्कि ग्रामीण गरीबों के लिए कानूनी अधिकार बन जाती है।
सब मिलाकर, मनरेगा का नया नाम और काम के दिनों की बढ़ोतरी ग्रामीण भारत के लिए एक बड़ा संदेश है। अब देखना यह होगा कि यह फैसला सिर्फ कागजों तक सीमित रहता है या सच में गांवों की तस्वीर बदलने में कामयाब होता है।