महत्वपूर्ण व्यक्तित्व: वरिष्ठ कांग्रेस नेता और भारत के पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का शुक्रवार (12 दिसंबर 2025) को महाराष्ट्र के लातूर में अपने आवास देवघर पर 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे और घर पर इलाज के दौरान सुबह लगभग 6:30 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। परिवार के अनुसार उनकी अंतिम संस्कार / अंतिम क्रियाएँ शनिवार को लातूर में आयोजित की जाएंगी।
प्रमुख जीवन वृत्त, साधारण शुरुआत से उच्चतम राजनीतिक पद तक
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
शिवराज पाटिल का जन्म 12 अक्टूबर 1935 को लातूर जिले के चकुर गांव (महाराष्ट्र) में हुआ। उन्होंने प्रारंभिक राजनीति लातूर नगरपालिका से शुरू की और जल्द ही महाराष्ट्र विधानसभा के दो कार्यकाल के लिए चुने गए।
राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश:
1980 में वे पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए और बाद में लगातार सात बार लातूर से सांसद रहे।
उच्चतम संवैधानिक भूमिकाएँ:
10वें लोकसभा अध्यक्ष (1991–1996)- संसद के अनुशासन और प्रक्रियाओं का सशक्त निर्वाह किया।
केंद्रीय गृह मंत्री (2004–2008)- भारत के गृह मामलों की सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभाली।
पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ प्रशासक (2010–2015)- संवैधानिक अनुभव की मिसाल पेश की।
उनके करीबी कहा करते थे कि वे कानून, संविधान और संसदीय प्रक्रियाओं को गहराई से समझते थे, जिससे उन्हें संसद में सम्मान मिला।
राजनीतिक उपलब्धियाँ और योगदान
लोकसभा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल
उनका कार्यकाल भारत के संसद के इतिहास में अनुशासन, शालीनता और संविधान के सख्त पालन के लिए यादगार रहा। उन्होंने प्रश्न काल और संसद के निर्देशों को मुद्दों पर केंद्रित रखा जिससे विधायी प्रक्रियाओं की गुणवत्ता बढ़ी।
गृह मंत्री के रूप में कार्य और पहल
पाटिल गृह मंत्री रहते हुए:
संघीय और राज्य पुलिस सुधारों पर काम किया
खुफिया एजेंसियों के बीच तालमेल बढ़ाने की कोशिश की
सुरक्षा व्यवस्थाओं में सुधार की नीतियाँ लाई
हालांकि उनके गृह मंत्री पदकाल की चर्चा 26/11 के बाद सबसे ज़्यादा हुई।
26/11 मुंबई हमले, नैतिक जिम्मेदारी और इस्तीफा
26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकवादी हमले (जिसमें दर्जन से अधिक स्थानों पर हमले हुए और सैकड़ों आम नागरिकों की जानें गई थीं) के बाद सुरक्षा तंत्र की विफलता पर शिवराज पाटिल को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा।
उन्होंने 30 नवंबर 2008 को गृह मंत्री पद से नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया, जो उस समय राजनीतिक और नैतिक रूप से बड़ा कदम माना गया।
इस कदम की विभिन्न राजनैतिक और सामाजिक व्याख्याएँ हैं, कुछ लोग इसे ज़िम्मेदारी स्वीकारने वाला साहस मानते हैं, वहीं आलोचक इसे उस समय की सुरक्षा विफलताओं का प्रतीक भी मानते हैं।
विवाद और आलोचनाएँ, वो पल जिनसे उन्हें याद रखा जाता है
दिल्ली ब्लास्ट के दौरान 'कपड़े बदलना' विवाद:
2008 में दिल्ली में हुए विस्फोटों के दौरान वे तीन अलग-अलग कपड़ों में मीडिया सामने आए थे, जिसे विपक्षी दलों ने गंभीर आलोचना का विषय बनाया और कहा कि आपदा के समय इतनी परवाह दिखाना गलत है। पाटिल ने इसका जवाब देते हुए कहा कि उनकी शालीनता और संतुलन की प्रकृति ही उनका स्वभाव है।
अन्य विवाद:
उनके समय में अन्य सुरक्षा मामलों पर भी आलोचना हुई, जिन्हें विपक्षी दलों ने उठाया।
ये विवाद उनकी छवि में मिश्रित भावनाएँ छोड़ते हैं, समर्थक उन्हें संसदीय शिष्टाचार का प्रतीक मानते हैं, जबकि आलोचक उन्हें निर्णयन लेने में धीमा बताते रहे।
सरकार और नेताओं की प्रतिक्रियाएँ
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी:
मोदी ने अपने आधिकारिक X (Twitter) पोस्ट में कहा कि वे पाटिल के निधन से दुखी हैं और उन्हें "अनुभवी नेता" बताया जिनका सार्वजनिक जीवन पर बड़ा प्रभाव रहा।
राहुल गांधी:
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पाटिल को "कांग्रेस पार्टी के लिए अपूरणीय हानि" कहा और उनके जीवन को जनता सेवा के प्रति समर्पित बताया।
मल्लिकार्जुन खड़गे:
कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें "गंभीर, बुद्धिमान और संवैधानिक नेता" कहा और कहा कि उनकी उपस्थिति संसदीय और लोकतांत्रिक संस्थाओं में महत्वपूर्ण थी।
अन्य वरिष्ठ नेताओं ने भी एकमत होकर उन्हें सम्मान और श्रद्धांजलि दी।
परिवार और निजी जीवन
शिवराज पाटिल परिवार में:
पुत्र: शैलेश पाटिल
बहू: अर्चना पाटिल (बीजेपी से संबद्ध)
दो पोतियाँ
वे सामाजिक सेवा, धर्म और अध्यात्म के प्रति भी रुचि रखते थे।
विरासत: एक बहुआयामी नेता
• संसदीय शिष्टाचार और अनुशासन
• संवैधानिक प्रक्रियाओं का सम्मान
• नैतिक जिम्मेदारी का उदाहरण
• राजनीति में संतुलन और संयम
पाटिल की विरासत आज भी राजनीति, संसद और प्रशासनिक नीतियों पर महसूस की जाती है। उनके फैसले, विवाद, नीतियाँ और संसदीय योगदान भारतीय लोकतंत्र में चर्चा का विषय बने रहेंगे।
निष्कर्ष
शिवराज पाटिल अपने समय के सबसे अनुभवी राजनेताओं में से एक थे, जिनका जीवन राजनीति, राजनीति की मर्यादा तथा कठिन फैसला लेने की प्रवृत्ति का प्रतीक था। उनका निधन एक युग का अंत है, और भारतीय राजनीति में उनकी याद लंबे समय तक बनी रहेगी।