दिल्ली: राजधानी में प्राइवेट स्कूलों द्वारा लगातार बढ़ाई जा रही फीस, छुपे हुए चार्ज और कैपिटेशन फीस की शिकायतों के बीच अब दिल्ली सरकार ने बड़ा और सख्त कदम उठाया है।
सरकार ने “दिल्ली स्कूल एजुकेशन (फीस तय करने और रेगुलेशन में ट्रांसपेरेंसी) एक्ट, 2025” को आधिकारिक रूप से लागू कर दिया है। इस कानून का सीधा मकसद है, फीस व्यवस्था को पारदर्शी बनाना, अभिभावकों को राहत देना और शिक्षा को व्यापार बनने से रोकना।
फीस की मनमानी पर सीधी रोक
नए कानून के तहत अब कोई भी प्राइवेट स्कूल मनचाहे नाम से फीस नहीं वसूल सकेगा। स्कूल केवल सरकार द्वारा तय किए गए हेड्स जैसे रजिस्ट्रेशन फीस, एडमिशन फीस, ट्यूशन फीस, एनुअल चार्ज और डेवलपमेंट फीस के अंतर्गत ही शुल्क ले सकेंगे। किसी भी प्रकार की हिडन फीस, एक्स्ट्रा चार्ज या अनावश्यक मद को गैरकानूनी माना जाएगा।
कैपिटेशन फीस पर पूरी तरह बैन
कानून का सबसे अहम प्रावधान है कैपिटेशन फीस पर पूर्ण प्रतिबंध। एडमिशन के नाम पर मोटी रकम लेना, डोनेशन मांगना या किसी और नाम से पैसा वसूलना अब सीधा अपराध माना जाएगा। अगर कोई स्कूल ऐसा करता पाया गया, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई तय है।
फीस की सीमा भी तय
इस कानून में फीस की अधिकतम सीमा भी स्पष्ट की गई है।
रजिस्ट्रेशन फीस: ₹25 से अधिक नहीं
एडमिशन फीस: ₹200 तक सीमित
काउशन मनी: ₹500 (ब्याज सहित रिफंड योग्य)
डेवलपमेंट फीस: ट्यूशन फीस का 10% से अधिक नहीं
इससे अभिभावकों पर आर्थिक बोझ कम होने की उम्मीद है।
हर खर्च का देना होगा हिसाब
अब स्कूलों को यह बताना अनिवार्य होगा कि ली गई फीस का इस्तेमाल कहां और कैसे किया जा रहा है। फाइनेंशियल रिकॉर्ड, खर्च का पूरा विवरण, फिक्स्ड एसेट रजिस्टर रखना जरूरी होगा। किसी भी खर्च को बिना सबूत के फीस बढ़ाने का कारण नहीं बनाया जा सकेगा।
फीस रेगुलेशन कमिटी में पेरेंट्स की एंट्री
हर प्राइवेट स्कूल में अब फीस रेगुलेशन कमिटी बनेगी, जिसमें स्कूल मैनेजमेंट के साथ-साथ शिक्षा निदेशालय का प्रतिनिधि और माता-पिता के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। यह कमिटी अगले तीन शैक्षणिक वर्षों की फीस तय करेगी।
यह पहली बार है जब पेरेंट्स को फीस तय करने की प्रक्रिया में कानूनी भूमिका दी गई है।
फीस न देने पर छात्र को सज़ा नहीं
कानून साफ कहता है कि अगर कोई छात्र समय पर फीस नहीं दे पाता, तो उसे क्लास से नहीं निकाला जा सकता, रिजल्ट नहीं रोका जा सकता, टीसी देने से इनकार नहीं किया जा सकता यानी अब बच्चों की पढ़ाई को दबाव का हथियार नहीं बनाया जा सकेगा।
सर्विस फीस भी अब ‘नो प्रॉफिट’
बस, एसी, स्मार्ट क्लास या अन्य सुविधाओं के नाम पर अब स्कूल मुनाफा नहीं कमा सकेंगे। सर्विस फीस केवल उन्हीं छात्रों से ली जा सकेगी, जो उस सुविधा का इस्तेमाल करते हैं और वह भी नो-प्रॉफिट, नो-लॉस आधार पर।
कानून तोड़ा तो कड़ी सज़ा
अगर कोई स्कूल नियमों का उल्लंघन करता है, तो भारी जुर्माना, गलत वसूली गई फीस की वापसी, बार-बार उल्लंघन पर स्कूल की मान्यता तक रद्द की जा सकती है।
सरकार बनाम स्कूल प्रबंधन
इस कानून को लेकर जहां अभिभावकों ने राहत की सांस ली है, वहीं कुछ प्राइवेट स्कूल संगठनों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि इससे स्कूलों की स्वायत्तता प्रभावित होगी। हालांकि सरकार का साफ कहना है “शिक्षा सेवा है, व्यापार नहीं।”
क्यों अहम है यह कानून?
यह कानून न सिर्फ दिल्ली के लाखों अभिभावकों को राहत देगा, बल्कि देश के अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल बन सकता है। शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने की दिशा में इसे एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है।
अब सवाल साफ है, फीस स्कूल तय करेंगे या कानून?