अरावली पर्वत; जानें क्यों हैं चर्चा में: सोशल मीडिया पर ट्रेंड हुआ #SaveAravali, आखिर क्या है SC का आदेश जिसके कारण सड़कों पर उतरे लोग_एक नजर
अरावली पर्वत; जानें क्यों हैं चर्चा में

दिल्ली/हरियाणा/राजस्थान : देश की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक 2.5 अरब साल पुरानी अरावली आज सिर्फ एक पहाड़ नहीं, बल्कि पर्यावरण, राजनीति और उद्योग की जंग का मैदान बन चुकी है।
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले ने इस आग में घी डाल दिया है और विवाद की वजह है “100 मीटर” वाला नियम। सोशल मीडिया पर भी पिछले कई दिन से #SaveAravali ट्रेंड कर रहा है। आइये जानते है पूरे विवाद की कहानी कहाँ से शुरू हुई।

जानें क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि -

●100 मीटर से कम ऊँचाई वाली अरावली पहाड़ियां अपने-आप ‘जंगल’ नहीं मानी जाएंगी।
●कोई भी जमीन सिर्फ इस आधार पर संरक्षित नहीं होगी कि वह अरावली क्षेत्र में आती है।
●निर्णय जमीन के रिकॉर्ड, अधिसूचना और वास्तविक स्थिति के आधार पर होगा।
यानी ईकोलॉजी का फैसला सिर्फ भूगोल तय नहीं करेगा। कागज और रिकॉर्ड भी उतने ही महत्वपूर्ण होंगे।

खतरा कितना बड़ा है? विशेषज्ञों की चेतावनी

गौरतलब है कि ‘सेव अरावली ट्रस्ट’ के पर्यावरण विशेषज्ञों ने कहा कि हरियाणा में सिर्फ 2 पहाड़ियां ही 100 मीटर से ऊपर हैं तो क्या बाकी अरावली संरक्षण से बाहर हो जाएंगी? इससे पूरा इकोसिस्टम ढह सकता है। थार का रेगिस्तान और आगे बढ़ सकता है। और दिल्ली की हवा और जहरीली हो जाएगी। उनके मुताबिक, अगर संरक्षण कमजोर हुआ, तो:

  • धूल और स्मॉग में बढ़ोतरी

  • भूजल का तेजी से गिरना

  • तेज गर्मी, हीटवेव

  • बोरवेल सूखना

  • सांस की बीमारियाँ बढ़ना

  • कई जिलों में रहने लायक हालात का खत्म होना जैसी समस्याओं से सामना करना पड़ेगा। अरावली दिल्ली-NCR की प्राकृतिक डस्ट-शिल्ड है। इसका कमजोर होना, दिल्ली के फेफड़ों पर सीधा वार है।

दिल्ली को राजधानी क्यों बनाया गया था?

विशेषज्ञों के अनुसार ब्रिटिशों ने राजधानी कोलकाता से हटाकर दिल्ली इसलिए लाई क्योंकि दिल्ली दो प्राकृतिक सुरक्षा कवचों से घिरी थी अरावली और यमुना। एक धूल रोकती है दूसरी नमी और जल-जीवन देती है। आज वही अरावली दबाव में है, कट रही है, टूट रही है।

“Save Aravali” ने छेड़ा जनआंदोलन :

विदित है कि 150 जिलों में डीएम को ज्ञापन दिया। 41 हज़ार लोग ऑनलाइन पिटीशन पर साइन किये हैं। सुप्रीम कोर्ट फैसले के दुरुपयोग को रोकने की मांग की जा रही है। उनका कहना है कि “अगर अरावली गई, तो NCR का भविष्य खत्म होगा।”

अरावली क्यों इतनी खास है?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 800 किमी की पर्वत श्रृंखला हैं। यह 4 राज्यों के 29 जिलों में फैली है। तेंदुआ, लकड़बग्घा, पक्षियों का प्रमुख कॉरिडोर है। यह बनास, लूनी, साबरमती जैसी नदियों का उद्गम है। यह हरियाणा–राजस्थान के भूजल का रिचार्ज स्रोत है। यह दिल्ली के प्राकृतिक एयर फिल्टर के तौर पर कार्य करता है। यह राजस्थान के थार रेगिस्तान को रोकने की आखिरी दीवार है।

विवाद का असली जड़ 2010 vs 2025 की परिभाषा :

गौरतलब है कि पूरा विवाद सिर्फ एक तकनीकी शब्द पर आधारित है 2010 में Polygon Line और 2025 में Contour Line

2010 - Polygon Line (कांग्रेस काल की रिपोर्ट)

Polygon line का मतलब दो 100-मीटर पहाड़ियों के बीच की छोटी पहाड़ियाँ भी अरावली मानी जाएंगी। पूरा क्षेत्र एक संरक्षित इकाई मानी जायेगी। यहाँ खनन लगभग असंभव होगा।
उदाहरण के तौर पर मालवीय नगर, झालाना, विद्याधर नगर पूरा क्षेत्र “एक पॉलिगॉन” है तो यहाँ खनन बंद होगा।

2025: Contour Line (केंद्र/राजस्थान सरकार की नई रिपोर्ट)

आपको बता दें कि कंटूर लाइन का मतलब है कि सिर्फ 100 मीटर की मुख्य चोटी संरक्षित की जाएगी। बीच की 40-80 मीटर की पहाड़ियों को संरक्षण नहीं होगा। खनन कई जगहों पर संभव हो जाएगा। और संरक्षण का दायरा घट गया है। उदाहरण के तौर पर मालवीय नगर (50–60m) में खनन संभव हो जाएगा। वहीं विद्याधर नगर (100m) संरक्षित रहेगा। सिर्फ एक शब्द पॉलिगॉन और कंटूर ने पूरी भू-सीमा बदल दी।

राजस्थान में सियासत गरम; कौन सही, कौन गलत?

गौरतलब है कि कांग्रेस (अशोक गहलोत) का दावा है कि “हमने रोजगार के लिए 100-मीटर की परिभाषा सुझाई थी पर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में ही खारिज कर दी। तो 2024 में मौजूदा सरकार ने इसे क्यों समर्थन दिया? किसके दबाव में रिपोर्ट बदली गई?” वहीं भाजपा (राजेंद्र राठौड़) का जवाब दिया है कि “विरोध भ्रम फैलाने के लिए है। 100 मीटर की परिभाषा पहले से अधिक सख्त है। दो 100-मीटर चोटियों के बीच 500 मीटर तक की भूमि भी संरक्षण में रहेगी।”

अगर नया नियम लागू हुआ, तो क्या होगा?

पर्यावरणविदों का अनुमान दिल्ली में PM10/PM2.5 बढ़ सकते हैं और NCR की स्मॉग समस्या दोगुनी हो चुकी है। गर्मी में 3-4°C की उछाल भी सम्भव है। तेंदुआ, हिरण, पक्षियों का कॉरिडोर टूट सकता है। एवं रेगिस्तान गुरुग्राम-दिल्ली की ओर बढ़ सकता है। भूजल 50-200 फीट और नीचे जा सकता है। इससे NCR रहने लायक नहीं बचेगा।

यह विवाद सिर्फ 100 मीटर का नहीं है यह विकास बनाम पर्यावरण, राजनीति बनाम विज्ञान, उद्योग बनाम जनता, और पेड़-पहाड़ बनाम मुनाफा का है। एक शब्द बदलने से पूरे उत्तर भारत पर असर पड़ा है।

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