लखनऊ: यूपी की सियासत में पंचायत चुनाव को लेकर हलचल तेज़ हो गई है। भाजपा ने 2026 के पंचायत चुनाव को 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मानकर पूरी ताकत झोंकने की तैयारी शुरू कर दी है। लेकिन इस बार भाजपा के सामने सिर्फ सपा, बसपा और कांग्रेस ही नहीं, बल्कि एनडीए के बागी सहयोगी दल भी बड़ी चुनौती बनकर उभर रहे हैं। सुभासपा, निषाद पार्टी और अपना दल (एस) के अलग चुनाव लड़ने के ऐलान से भाजपा के समीकरण बिगड़ सकते हैं। बावजूद इसके, भाजपा ने मैदान में उतरने के लिए 4 बड़ी रणनीतियां तैयार की हैं।
1. परिसीमन से साधेगी समीकरण :
गौरतलब है कि भाजपा ने सबसे बड़ा दांव परिसीमन पर खेला है। पार्टी की कोशिश है कि वार्डों की सीमाएं इस तरह तय की जाएं कि भाजपा समर्थक वोटर एक जगह केंद्रित हों। जिला और मंडल स्तर पर कमेटियां बनाकर पंचायत राज विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर यह काम शुरू हो चुका है।
2. वोटर लिस्ट में 20% नए वोट जोड़ने की तैयारी :
भाजपा ने हर बूथ पर 10 से 20% नए वोटर जोड़ने और फर्जी नाम हटवाने का मिशन चलाया है। इस पर आरएसएस की भी खास नजर है। पार्टी को उम्मीद है कि इससे मतदाता समीकरण में बढ़त मिलेगी।
3. ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत तक 'अपना आदमी' :
आपको बता दें कि हालांकि ग्राम प्रधान का चुनाव बिना सिंबल होता है, लेकिन भाजपा इस बार अपने कार्यकर्ताओं को ही ग्राम प्रधान चुनाव में उतारेगी। जीतने वाले प्रधानों को भाजपा का संरक्षण मिलेगा। इससे अगले विधानसभा चुनाव में बूथ स्तर पर नेटवर्क मजबूत होगा।
4. नई लीडरशिप तैयार करने का मौका :
जानकारी के अनुसार भाजपा इस चुनाव को युवा और महिला नेताओं को आगे लाने का जरिया बना रही है। पंचायत चुनाव से पार्टी नई लीडरशिप तैयार करना चाहती है, जो आगे चलकर विधायक और सांसद पद के लिए मैदान में उतर सके।
NDA के बागी और सीधे चुनाव से बढ़ी चुनौती :
रिपोर्ट के अनुसार भाजपा की राह में सबसे बड़ा रोड़ा एनडीए के सहयोगी दलों की बगावत है। पूर्वांचल और पश्चिम यूपी में इन दलों के अलग चुनाव लड़ने से भाजपा के कुर्मी, राजभर, बिंद, निषाद, कश्यप, जाट वोट बैंक में सेंध लग सकती है। साथ ही, सरकार ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष के सीधे चुनाव की तैयारी कर रही है। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को हर सीट पर सीधा मुकाबला करना पड़ेगा, जिससे बगावत का नुकसान और बढ़ सकता है।
2021 की पिछली हार से सबक :
आपको बता दें कि 2021 के पंचायत चुनाव में भाजपा को बड़ा झटका लगा था। 3050 जिला पंचायत वार्डों में सिर्फ 543 पर भाजपा जीत पाई थी। इस बार पार्टी वैसी स्थिति दोहराना नहीं चाहती और अभी से मोर्चाबंदी कर रही है।
भाजपा ने पंचायत चुनाव को जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है, लेकिन बागी सहयोगी और नई चुनाव प्रणाली उसकी मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। अब देखना होगा कि भाजपा का यह 'सुपर प्लान' उसे 2021 जैसी हार से बचा पाएगा या नहीं। पंचायत चुनाव को वह 2027 विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल मान रही है। कुल मिलाकर भाजपा इस बार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती।