सर्दी में संसद की गर्मी!: 1 दिसंबर से शुरू होगा संसद का शीतकालीन सत्र; जानें क्या होता हैं शीतकालीन सत्र और क्या हो सकते हैं इस बार सियासी मंथन के मुख्य मुद्दे?
सर्दी में संसद की गर्मी!

नई दिल्ली: देश की संसद का शीतकालीन सत्र इस वर्ष 1 दिसंबर से 19 दिसंबर 2025 तक चलेगा, जिसमें कुल 15 बैठकें होंगी। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद के इस सत्र के शेड्यूल को औपचारिक मंजूरी दे दी है।

यह सत्र बेहद अहम माना जा रहा है क्योंकि यह लोकसभा चुनाव 2026 से पहले का अंतिम शीतकालीन सत्र होगा। ऐसे में इसे सरकार और विपक्ष, दोनों के लिए राजनीतिक रणनीति तय करने वाला सत्र कहा जा रहा है।


शीतकालीन सत्र क्या होता है?

भारत की संसद वर्ष में तीन प्रमुख सत्रों में काम करती है-
 बजट सत्र (फरवरी–अप्रैल)
मानसून सत्र (जुलाई–अगस्त)
 शीतकालीन सत्र (नवंबर–दिसंबर)

इनमें से शीतकालीन सत्र साल के अंत में आयोजित होता है और इसे "वर्ष का समापन सत्र" भी कहा जाता है। इस दौरान सरकार बीते वर्ष की नीतियों और अधूरे विधेयकों पर चर्चा पूरी करती है, साथ ही आगामी वर्ष की योजनाओं का संकेत भी देती है। यही कारण है कि शीतकालीन सत्र को नीतिगत और राजनीतिक दृष्टि से सबसे निर्णायक सत्र माना जाता है।


इतिहास: शीतकालीन सत्र कब और क्यों शुरू हुआ

स्वतंत्र भारत में 1952 में पहली लोकसभा के गठन के बाद संसदीय कार्य को व्यवस्थित करने के लिए साल में तीन बार सत्र बुलाने की परंपरा शुरू हुई। शीतकालीन सत्र की शुरुआत इसी क्रम में हुई ताकि साल के अंत में समीक्षा और नए साल की दिशा तय की जा सके।

पहले यह सत्र नवंबर के पहले सप्ताह में शुरू होता था, लेकिन पिछले एक दशक में चुनावी व्यस्तता के कारण इसे दिसंबर में आयोजित किया जाने लगा है। यह सत्र आमतौर पर 18 से 20 दिनों तक चलता है और इसमें औसतन 12 से 15 बैठकें होती हैं।


संसद का स्वरूप और नई शुरुआत

इस वर्ष का शीतकालीन सत्र नए संसद भवन में आयोजित होगा। यह भवन आधुनिक सुविधाओं से लैस है, पेपरलेस वर्क सिस्टम, डिजिटल वोटिंग, और प्रत्येक सांसद को टैबलेट के ज़रिए कार्य करने की सुविधा। यह तकनीकी रूप से भारत की संसदीय परंपरा में डिजिटल युग की नई शुरुआत माना जा रहा है।


इस साल का सत्र क्यों है खास

यह लोकसभा चुनाव 2026 से पहले का आखिरी शीतकालीन सत्र होगा। सरकार चाहेगी कि वह विकास, महिला सशक्तिकरण और डिजिटल गवर्नेंस के मुद्दों पर अपनी छवि मज़बूत करे।

विपक्ष हर मुद्दे पर सरकार को घेरने की पूरी तैयारी में है विशेषकर बेरोजगारी, महंगाई, MSP और डेटा प्राइवेसी जैसे विषयों पर। यह सत्र संसद की कार्यक्षमता और लोकतांत्रिक संवाद की परख का सबसे बड़ा मौका होगा।


कौन-कौन से प्रमुख मुद्दे और विधेयक होंगे चर्चा में

डेटा सुरक्षा एवं निजता विधेयक (Data Protection Bill 2.0)
इस विधेयक का उद्देश्य नागरिकों के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा, सोशल मीडिया और टेक कंपनियों पर जवाबदेही सुनिश्चित करना है। विपक्ष का आरोप है कि यह सरकार को नागरिकों की निगरानी का अधिकार देगा। इस पर संसद में तीखी बहस की संभावना है।

 एकल नागरिक संहिता (Uniform Civil Code - UCC)
समान नागरिक कानून पर सरकार अब ठोस कदम उठाने की तैयारी में है। विपक्ष इसे भारत की सांस्कृतिक विविधता पर प्रहार बता रहा है, जबकि सरकार का दावा है कि यह समानता और न्याय की दिशा में बड़ा सुधार है।

जनसंख्या नियंत्रण नीति प्रस्ताव
तेजी से बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए सरकार नई नीति पर चर्चा करा सकती है। इस पर सामाजिक संगठनों और धार्मिक समूहों के बीच बहस तेज हो सकती है।

महिला आरक्षण कानून के क्रियान्वयन पर चर्चा
हाल ही में पास हुए महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने के लिए आवश्यक परिसीमन (Delimitation) प्रक्रिया और समय-सीमा पर रिपोर्ट पेश की जा सकती है।

 कृषि सुधार और MSP गारंटी बिल
किसानों की लंबे समय से चली आ रही मांग, MSP की कानूनी गारंटी, एक बार फिर चर्चा का केंद्र बनेगी। विपक्ष सरकार से ठोस कानून की मांग करेगा।

रोजगार और शिक्षा सुधार
NEET-UG में हुई गड़बड़ी, नई शिक्षा नीति की स्थिति और बेरोजगारी के बढ़ते आंकड़ों पर विपक्ष सरकार से जवाब मांगेगा।

राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमाई विवाद
चीन और पाकिस्तान सीमा पर हालिया घटनाओं, आतंकवाद विरोधी नीति और रक्षा खरीद सौदों पर भी संसद में गंभीर चर्चा हो सकती है।


राजनीतिक माहौल: सर्द हवाओं में सियासी गर्मी

सत्र शुरू होने से पहले सर्वदलीय बैठक होगी, जिसमें प्रधानमंत्री और संसदीय कार्य मंत्री विपक्ष से सहयोग की अपील करेंगे। वहीं विपक्ष पहले ही साफ कर चुका है कि वह महंगाई, भ्रष्टाचार, रोजगार, महिला सुरक्षा और पेपर लीक जैसे मुद्दों पर सरकार को नहीं छोड़ने वाला।

राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अरविंद कुमार के अनुसार, “यह सत्र केवल विधायी नहीं, बल्कि चुनावी रणनीतियों की झलक भी देगा। संसद में उठने वाले मुद्दे ही आने वाले लोकसभा चुनाव का नैरेटिव तय करेंगे।”


पिछले सत्रों की पृष्ठभूमि:

पिछले शीतकालीन सत्रों में कई बड़े विवाद देखने को मिले, 2021 में कृषि कानूनों की वापसी, 2022 में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हंगामा, 2023 में संसद भवन उद्घाटन पर विपक्ष का बहिष्कार, हर बार की तरह इस बार भी देश की नज़र संसद के माहौल पर रहेगी, क्या इस बार भी हंगामा होगा या फिर कामकाज बढ़ेगा?


जनता की उम्मीदें

देशभर में लोग उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार सत्र में हंगामे से ज़्यादा कामकाज देखने को मिले। सोशल मीडिया पर ट्रेंड चल रहा है #WinterSession2025, लोग लिख रहे हैं “अब संसद में बहस जनता की समस्याओं पर होनी चाहिए, आरोप-प्रत्यारोप पर नहीं।”


सारांश और निष्कर्ष

शीतकालीन सत्र हमेशा से देश की राजनीति का आईना रहा है। यह वह समय होता है जब सरकार और विपक्ष दोनों अपने-अपने एजेंडे जनता के सामने रखते हैं। इस बार का सत्र और भी खास है क्योंकि यह आने वाले लोकसभा चुनाव की दिशा तय कर सकता है।

“सर्दी की ठंडी हवाओं के बीच संसद की गरमागरम बहसें, तय करेंगी कि आने वाले साल में देश का सियासी तापमान कितना बढ़ेगा।”

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