उत्तराखंड आंदोलनकारियों पर मेहरबान सरकार!: पेंशन में भारी वृद्धि से लेकर पुष्प वर्षा...जानें धामी सरकार की 7 बड़ी घोषणाएं?
उत्तराखंड आंदोलनकारियों पर मेहरबान सरकार!

देहरादून: उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य आंदोलनकारियों के लिए इतिहास रच देने वाली घोषणाएँ कीं।

राजधानी देहरादून के परेड ग्राउंड में आयोजित समारोह में आंदोलनकारियों पर हेलिकॉप्टर से फूलों की वर्षा कर उन्हें सम्मानित किया गया। यह दृश्य सिर्फ एक समारोह नहीं, बल्कि उन संघर्षशील दिनों की याद थी जब हजारों लोगों ने “अलग राज्य” के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था।

 पेंशन में भारी बढ़ोतरी, अब 6,000 रुपये तक मिलेगी सहायता

सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों की मासिक पेंशन को ₹3,100 रुपये से बढ़ाकर ₹4,500–₹6,000 रुपये तक करने का बड़ा फैसला लिया है। जिन आंदोलनकारियों ने जेल की सजा काटी थी या लंबे समय तक आंदोलन में सक्रिय रहे, उन्हें उच्च श्रेणी में रखा जाएगा।

मुख्यमंत्री धामी ने मंच से कहा “उत्तराखंड का अस्तित्व उन्हीं लोगों की बदौलत है जिन्होंने सड़कों पर संघर्ष किया। यह पेंशन सिर्फ आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि हमारे राज्य के निर्माताओं के प्रति कृतज्ञता है।”

शहीद आंदोलनकारियों के परिवारों को विशेष पारिवारिक पेंशन

राज्य निर्माण में शहीद हुए आंदोलनकारियों के परिवारों के लिए विशेष परिवारिक पेंशन योजना की घोषणा की गई।
विधवाओं और आश्रित बच्चों को भी इसमें शामिल किया गया है। अब हर वर्ष राज्य स्थापना दिवस पर इन परिवारों को सम्मानित किया जाएगा।

 जेल में बिताए गए दिनों को मिलेगा सरकारी मान्यता का दर्जा

उत्तराखंड आंदोलन के दौरान सैकड़ों आंदोलनकारियों को जेल जाना पड़ा था। अब सरकार ने घोषणा की है कि 7 दिन या उससे अधिक जेल में बिताने वालों को “विशेष सम्मान वर्ग” में रखा जाएगा। पहले उन्हें ₹5,000 रुपये पेंशन मिलती थी, जो अब ₹6,000 रुपये हो गई है।

फूलों की वर्षा, आंसुओं और गर्व का संगम

जैसे ही मुख्यमंत्री मंच पर पहुँचे, आसमान से हेलिकॉप्टर द्वारा फूलों की वर्षा शुरू हुई। पूरा परेड ग्राउंड ‘जय उत्तराखंड’ और ‘आंदोलनकारी अमर रहें’ के नारों से गूंज उठा। बुजुर्ग आंदोलनकारी मंच पर खड़े होकर एक-दूसरे को गले लगाते रहे, कई की आँखों में आँसू थे।

“यह सम्मान हमारे संघर्ष की जीत है,” 70 वर्षीय आंदोलनकारी रामकृष्ण रावत ने भावुक होकर कहा। “पहली बार महसूस हुआ कि राज्य ने हमें याद किया।”

नई सूची बनेगी, सिर्फ असली आंदोलनकारियों को मिलेगा लाभ

सरकार ने ऐलान किया है कि अब हर जिले में आंदोलनकारियों की नई और प्रमाणित सूची तैयार होगी।
पहले की सूचियों में कई गड़बड़ियाँ थीं, जिनकी वजह से असली आंदोलनकारी वंचित रह जाते थे। इस बार जिला प्रशासन को सख्त निर्देश दिए गए हैं कि सत्यापन अभियान चलाकर सही पात्र लोगों को ही लाभ दिलाया जाए।

 DBT से पेंशन ट्रांसफर, पारदर्शिता और सुविधा दोनों

अब पेंशन राशि सीधे DBT (Direct Benefit Transfer) के ज़रिए आंदोलनकारियों के बैंक खातों में भेजी जाएगी। पहले महीनों की देरी और तकनीकी परेशानियाँ होती थीं, अब यह प्रक्रिया पूरी तरह डिजिटल और पारदर्शी होगी। सरकार का कहना है कि इस व्यवस्था से किसी भी बिचौलिये की भूमिका खत्म हो जाएगी।

 आंदोलनकारियों के नाम पर स्मारक और गौरव दिवस की घोषणा

मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य के सभी जिलों में आंदोलनकारियों की याद में स्मारक, चौक और पार्क बनाए जाएंगे। साथ ही, हर वर्ष 9 नवंबर को “आंदोलनकारी गौरव दिवस” के रूप में मनाया जाएगा। यह निर्णय उन सभी लोगों को स्थायी सम्मान देने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।

महिलाओं की भूमिका, आंदोलन की रीढ़

उत्तराखंड आंदोलन में महिलाओं का योगदान सबसे अधिक रहा। गाँव-गाँव की महिलाएँ सड़कों पर उतरीं, जेल गईं और पहाड़ों की आवाज़ बनीं।

मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से इन महिला आंदोलनकारियों का उल्लेख करते हुए कहा “उत्तराखंड की महिलाएँ इस राज्य की आत्मा हैं। उनका संघर्ष और साहस हम सबके लिए प्रेरणा है।”

इतिहास की झलक, कैसे शुरू हुआ आंदोलन?

उत्तराखंड राज्य की मांग 1994 में जोर पकड़ने लगी जब पहाड़ी इलाकों के लोग रोजगार, शिक्षा और प्रशासनिक उपेक्षा से परेशान थे।

मुजफ्फरनगर कांड के बाद आंदोलन तेज़ हुआ और 1994 से 2000 के बीच हजारों लोग सड़कों पर उतरे। सैकड़ों ने गिरफ्तारियाँ दीं, कई घायल हुए और कुछ ने बलिदान दिया। अंततः 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वाँ राज्य बना।

भविष्य की योजनाएँ — बनेगा “आंदोलनकारी कल्याण बोर्ड”

सरकार ने संकेत दिए हैं कि जल्द ही ‘राज्य आंदोलनकारी कल्याण बोर्ड’ बनाया जाएगा, जो पेंशन, चिकित्सा सहायता, सम्मान समारोह और अन्य कल्याणकारी योजनाओं की निगरानी करेगा। धामी सरकार का कहना है कि इसका उद्देश्य है “संघर्ष की विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना।”

विपक्ष और समाज की प्रतिक्रियाएँ

विपक्षी दलों ने भी इन घोषणाओं का स्वागत किया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इन्हें जमीन पर लागू करने में देरी न हो। सामाजिक संगठनों ने इसे “आंदोलनकारियों के स्वाभिमान की वापसी” बताया।

“यह निर्णय केवल एक नीति नहीं, बल्कि एक भावनात्मक पुनर्स्थापना है,” कहा समाजसेवी हरीश बिष्ट ने।

संवेदनात्मक अंत, संघर्ष से सम्मान तक की यात्रा

25 साल पहले जिन लोगों ने लाठी-डंडे खाए थे, आज वे उसी राज्य के मंच पर फूलों की वर्षा में नहाए। यह सिर्फ सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक इतिहास की भावनात्मक वापसी थी जहाँ आंदोलन की चिंगारी अब सम्मान की लौ बन चुकी है।

“हमारे बलिदान व्यर्थ नहीं गए,” भावुक होकर बोलीं महिला आंदोलनकारी सुशीला देवी, “आज हमारी मिट्टी ने हमें पहचान दी है।”

निष्कर्ष:

धामी सरकार की ये घोषणाएँ सिर्फ आर्थिक पैकेज नहीं, बल्कि सम्मान का संकल्प हैं। उत्तराखंड के आंदोलनकारियों को अब सिर्फ याद नहीं किया जा रहा, बल्कि उन्हें वह आदर और पहचान दी जा रही है जिसके वे सच्चे हकदार हैं। यह दृश्य हमेशा याद रहेगा, जब संघर्ष के नायकों पर फूल बरसे, और इतिहास ने खुद उन्हें सलाम किया।

अन्य खबरे