अंतर्राष्ट्रीय संबंध: पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग (HRCP) की ताज़ा रिपोर्ट “Streets of Fear: Freedom of Religion or Belief in 2024/25” ने यह साफ कर दिया है कि धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों को लेकर हालात बेहद चिंताजनक हैं। रिपोर्ट बताती है कि हिंदू और ईसाई समुदाय विशेष रूप से निशाने पर हैं और उनकी लड़कियों का जबरन धर्मांतरण तथा कम उम्र में विवाह अब एक आम समस्या बन चुकी है।
जबरन धर्मांतरण और विवाह के मामले:
रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान के कई हिस्सों में अल्पसंख्यक परिवार लगातार भय में जी रहे हैं। हिंदू और ईसाई समुदाय की नाबालिग लड़कियों को अगवा कर उनका जबरन धर्मांतरण कराया जाता है और फिर उन्हें मुस्लिम पुरुषों से विवाह करने पर मजबूर किया जाता है। कई बार पुलिस और प्रशासन भी इन मामलों में पीड़ित परिवारों को न्याय दिलाने में असफल रहते हैं।
ईशनिंदा के आरोप और न्यायेतर हत्याएं:
रिपोर्ट का सबसे गंभीर पहलू यह है कि ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग बढ़ गया है। किसी भी व्यक्ति पर ईशनिंदा का आरोप लगते ही भीड़ हिंसक हो जाती है। कई मामलों में आरोपितों को अदालत तक पहुंचने का मौका भी नहीं मिला और भीड़ ने मौके पर ही उनकी हत्या कर दी। दो ऐसे उदाहरण सामने आए, जहां आरोपी स्वयं पुलिस सुरक्षा मांग रहे थे, लेकिन कानून-व्यवस्था के अभाव में भीड़ ने उन्हें मार डाला।
नफरत फैलाने वाले भाषण:
मानवाधिकार आयोग ने यह भी बताया कि पिछले वर्ष नफरत फैलाने वाले भाषणों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। चरमपंथी संगठनों और नेताओं ने यहां तक कि पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी धमकियां दीं। इस तरह के माहौल ने समाज में भय का वातावरण और गहरा दिया है। यहां तक कि कुछ वकील संगठन भी धार्मिक कट्टरपंथी समूहों का समर्थन करते हुए दिखाई दिए।
बाल यौन शोषण के बढ़ते मामले:
पाकिस्तान में नाबालिग बच्चों के साथ यौन अपराध भी तेजी से बढ़ रहे हैं। संसद में प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 2021 से जून 2025 तक इस्लामाबाद में 567 यौन शोषण के मामले दर्ज किए गए। इनमें से लगभग 200 मामले बच्चों से जुड़े थे। पीड़ितों में 93 लड़के और 108 लड़कियां शामिल थीं।
न्याय व्यवस्था पर सवाल:
गृह मंत्रालय ने बताया कि इन मामलों में 222 आरोपितों को गिरफ्तार किया गया। हालांकि, केवल 12 को ही दोषी ठहराया जा सका है, जबकि 163 मामलों में मुकदमा अभी जारी है। 15 आरोपित बरी हो चुके हैं और 26 अब भी फरार हैं। ये आँकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि न्याय व्यवस्था कमजोर है और अपराधियों को सजा दिलाना बेहद कठिन हो गया है।
अल्पसंख्यकों की असुरक्षा:
कुल मिलाकर, रिपोर्ट यह दर्शाती है कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय लगातार भय और असुरक्षा के बीच जी रहा है। चाहे वह जबरन धर्मांतरण का मामला हो, ईशनिंदा का आरोप हो या फिर बच्चों के खिलाफ अपराध—हर जगह कानून-व्यवस्था और न्यायिक तंत्र की विफलता स्पष्ट झलकती है। मानवाधिकार आयोग ने सरकार से तत्काल और ठोस कदम उठाने की अपील की है ताकि पाकिस्तान अपने नागरिकों को धर्म और जीवन की स्वतंत्रता दिला सके।