अब US टैरिफ की ऐसे होगी भरपायी!: भारत-चीन बॉर्डर से व्यापार फिर से होगा शुरू, हर साल इतने अरब डॉलर के होंगे फायदें...मगर ये खतरा फिर भी?
अब US टैरिफ की ऐसे होगी भरपायी!

बीजिंग/दिल्ली : भारत और चीन के रिश्ते भले ही कड़वाहट से भरे हों, लेकिन कारोबार की दुनिया में दोनों देश अब हाथ मिलाने जा रहे हैं। दशकों से ठप पड़ा सीमा व्यापार फिर से शुरू होगा। एशियन डेवलपमेंट बैंक और वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि इस कदम से दोनों देशों को हर साल 5 से 6 अरब डॉलर तक का फायदा हो सकता है।

कहां-कहां से खुलेगा रास्ता?

आपको बता दें कि नई सहमति के तहत हिमालय के पुराने व्यापारिक दर्रे फिर से गुलजार होंगे। ये दर्रे होंगे-

शिपकी ला (हिमाचल)
सनाथुला (सिक्किम)
बोमडिला (अरुणाचल)

इन मार्गों से न सिर्फ पारंपरिक व्यापार लौटेगा, बल्कि नई आर्थिक साझेदारियां भी बनेंगी।

भारत देगा उर्वरक, चीन देगा दुर्लभ खनिज :

गौरतलब है कि भारत चीन को फॉस्फेट और पोटाश आधारित उर्वरक भेजेगा। तो वहीं चीन भारत को दुर्लभ धातुएं (Rare Earths Metals) देगा, जो इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र के लिए बेहद जरूरी हैं। इससे भारत की विनिर्माण क्षमता मजबूत होगी और चीन की फूड सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी को सहारा मिलेगा।

US टैरिफ का असर होगा कम :

विदित है कि भारत के लिए यह डील सिर्फ कारोबार नहीं बल्कि रणनीतिक राहत भी है। अमेरिकी टैरिफ से भारत को हर साल 3-5 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है। चीन से खनिज और मध्यवर्ती वस्तुओं के आयात से उत्पादन लागत घटेगी और यह नुकसान काफी हद तक संतुलित हो सकेगा।

मगर खतरा भी बड़ा…

आपकी जानकारी को बता दें कि ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) ने चेतावनी दी है कि भारत को चीन पर निर्भरता घटानी होगी। आज भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 100 अरब डॉलर के पार है। इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम आयात का 57% हिस्सा चीन से आता है। मशीनरी, हार्डवेयर, रसायन और दवाइयों में भी चीन की हिस्सेदारी बढ़ती जा रही है।

ऐतिहासिक रास्ते, नया कारोबार :

गौरतलब है कि यह वही रास्ते हैं जहां सदियों पहले सिल्क रूट से ऊन, मसाले और कपड़े का व्यापार होता था।
नाथू ला दर्रा 1962 के युद्ध के बाद बंद हुआ था, 2006 में फिर खुला। लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड) भी व्यापार का हिस्सा रहा है। अब नए समझौते के साथ हिमालय फिर कारोबार का सेतु बनेगा।

भारत-चीन के बीच यह व्यापार बहाली फिलहाल आर्थिक राहत का सौदा लग रहा है। भारत को सस्ता कच्चा माल मिलेगा। वहीं चीन को उर्वरक से खाद्य सुरक्षा, साथ ही दोनों देशों को अरबों डॉलर का फायदा होगा। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या भारत इस मौके को सिर्फ फायदे का सौदा बनाएगा या फिर चीन पर घातक निर्भरता और बढ़ेगी?

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