अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बहुप्रतीक्षित मुलाकात अलास्का के एंकरेज स्थित अमेरिकी सैन्य अड्डे पर संपन्न हुई। करीब ढाई घंटे तक चली इस वार्ता में दोनों नेताओं ने यूक्रेन युद्धविराम, वैश्विक सुरक्षा और द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की। हालांकि, ठोस समाधान या समझौते पर सहमति नहीं बन सकी।
बैठक की प्रमुख बातें
वार्ता का मुख्य एजेंडा यूक्रेन में चल रहा संघर्ष था। ट्रंप ने बैठक के बाद कहा कि चर्चा "सार्थक और खुली" रही और वे जल्द ही नाटो सहयोगियों और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की से संवाद करेंगे। वहीं, पुतिन ने दावा किया कि अगर 2022 में ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति होते तो यह युद्ध कभी शुरू ही नहीं होता।
पुतिन का रुख
पुतिन ने शांति वार्ता को आगे बढ़ाने पर जोर दिया और कहा कि स्थायी समाधान तभी संभव है जब "जंग की मूल वजहों को समाप्त किया जाए।" उन्होंने यह भी दोहराया कि यूरोपीय देशों को इस प्रक्रिया में "अनावश्यक हस्तक्षेप" नहीं करना चाहिए। पुतिन ने अमेरिका और रूस को "करीबी पड़ोसी" बताते हुए अलास्का के ऐतिहासिक संबंधों का उल्लेख किया और अगली बैठक मॉस्को में करने का प्रस्ताव रखा।
ट्रंप की प्रतिक्रिया
ट्रंप ने पुतिन को "स्मार्ट व्यक्ति" बताते हुए कहा कि उनके साथ हमेशा अच्छे रिश्ते रहे हैं। लेकिन उन्होंने चेतावनी दी कि अगर रूस युद्धविराम की दिशा में कदम नहीं बढ़ाता तो उसे "गंभीर आर्थिक परिणामों" का सामना करना पड़ सकता है।
आलोचना और सवाल
ट्रंप के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने बैठक पर सवाल उठाए और कहा कि "पुतिन को कूटनीतिक बढ़त मिल गई, जबकि ट्रंप को कोई ठोस उपलब्धि हासिल नहीं हुई।" आलोचकों का मानना है कि यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को बैठक में आमंत्रित न करना एक बड़ी चूक रही।
सुरक्षा और ऐतिहासिक पहलू
बैठक के दौरान अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह पहली बार है जब किसी रूसी राष्ट्रपति ने अमेरिकी सैन्य अड्डे का दौरा किया। इस मुलाकात ने न केवल वैश्विक कूटनीति को नई दिशा दी है बल्कि आने वाले महीनों में अमेरिका-रूस संबंधों की दिशा भी तय कर सकती है।
अलास्का शिखर वार्ता ने शांति वार्ता की एक नई शुरुआत तो की है, लेकिन यूक्रेन में युद्धविराम और स्थायी समाधान पर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है। दोनों नेताओं के बयानों से साफ है कि संवाद जारी रहेगा, लेकिन असली चुनौती जमीन पर संघर्ष को रोकने की होगी।