सावधान! कहीं आप भी तो नहीं कर रहे मैदा का अत्यधिक सेवन: जानें क्यों धीमा जहर हैं मैदा और आटा क्यों हैं अमृत के समान?
सावधान! कहीं आप भी तो नहीं कर रहे मैदा का अत्यधिक सेवन

हेल्थी लाइफस्टाइल: हमारे रोज़मर्रा के भोजन में आटा और मैदा दोनों का खूब प्रयोग होता है। रोटी, पराठा, पूरी और फुल्का बनाने के लिए आटे का उपयोग किया जाता है, वहीं नान, भटूरा, हलवा, पेस्ट्री, केक, बिस्कुट और समोसे जैसी व्यंजनों में मैदे का अधिक प्रयोग होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दोनों ही गेहूँ से बनने के बावजूद स्वास्थ्य पर इनका प्रभाव बिल्कुल अलग होता है?

आटा गेहूँ के पूरे दाने—चोकर, अंकुर और बीच के हिस्से—को पीसकर तैयार किया जाता है। इस कारण इसमें भरपूर मात्रा में रेशा (फाइबर), प्रोटीन, विटामिन और खनिज बने रहते हैं। दूसरी ओर मैदा बनाने के लिए गेहूँ से चोकर और अंकुर अलग कर दिए जाते हैं और केवल बीच का हिस्सा बारीक पीसा जाता है। यही कारण है कि मैदा मुलायम तो होता है लेकिन इसमें सेहत के लिए ज़रूरी पोषक तत्व काफी हद तक नष्ट हो जाते हैं।

पोषण स्तर की तुलना
यदि पोषण की दृष्टि से तुलना करें तो आटे में 100 ग्राम में लगभग 10 से 12 ग्राम तक रेशा पाया जाता है, जबकि मैदे में यह घटकर केवल 2 से 3 ग्राम ही रह जाता है। इसी प्रकार आटे में प्रोटीन और खनिज पर्याप्त मात्रा में होते हैं, जबकि मैदा केवल अधिक कैलोरी और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है। मैदे का शर्करा सूचकांक (ग्लाइसेमिक इंडेक्स) भी अधिक होता है, अर्थात यह रक्त में शर्करा को बहुत तेज़ी से बढ़ाता है। यही कारण है कि मधुमेह और मोटापे जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

पाचन तंत्र पर प्रभाव
आटे का रेशा पाचन क्रिया को दुरुस्त रखता है, पेट को देर तक भरा महसूस कराता है और आंतों के लिए लाभकारी जीवाणुओं के लिए भोजन का कार्य करता है। वहीं मैदा जल्दी पचकर तुरंत भूख पैदा करता है, जिससे बार-बार और ज़्यादा भोजन करने की आदत पड़ सकती है। यही कारण है कि लगातार मैदे से बनी वस्तुएँ खाने से मोटापा, उच्च शर्करा और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।

विशेषज्ञ की राय
विशेषज्ञ मानते हैं कि दैनिक आहार में आटे को प्राथमिकता देनी चाहिए। गेहूँ के आटे की रोटी, पराठा और चपाती संतुलित भोजन का हिस्सा हैं। वहीं मैदा केवल कभी-कभार ही उचित है—जैसे त्योहार, दावत या विशेष अवसरों पर। बाहर भोजन करते समय भी साबुत अनाज से बने विकल्पों को अपनाना सेहत के लिए लाभकारी है।

आगे की राह
निष्कर्ष यही है कि आटा हमारी सेहत का अमृत है, जबकि मैदा यदि बार-बार खाया जाए तो धीरे-धीरे जहर बन सकता है। इसलिए समझदारी इसी में है कि आटे को रोज़मर्रा के भोजन में शामिल करें और मैदे को सीमित मात्रा में ही रखें।

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