गंगा एक्सप्रेस-वे: पहलगाम में हुए आतंकी हमले का “ऑपरेशन सिंदूर” से बदला लेने के पश्चात भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है। जिस वजह से दोनों देशों की तैयारियां भी तेज हो गई हैं। वहीं इस स्थिति में हाल ही में यूपी के शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेस-वे का महत्व और अधिक बढ़ गया है। दरअसल यहां बीती 2 मई की तारीख को पहली बार नाइट लैंडिंग करके भारतीय वायुसेना के द्वारा एक रिकॉर्ड कायम किया गया था। आपको बता दें कि यह नाइट लैंडिंग का सिर्फ एक अभ्यास ही नहीं था, बल्कि युद्ध के समय काफी बड़ा गेमचेंजर भी साबित हो सकता है।
युद्ध जैसे हालात में गंगा एक्सप्रेस-वे एयरफोर्स के लिए होगा काफी फायदेमंद:
आपको बता दें कि यह परीक्षण सैन्य तैयारियों, इमरजेंसी ऑपरेशन तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से काफी अहम था। राफेल से लेकर C-130J सुपर हरक्यूलिस तक सभी इस अभ्यास में शामिल रहे हैं। वहीं रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, पाकिस्तान से बने युद्ध के जैसे हालात में गंगा एक्सप्रेस-वे एयरफोर्स के लिए काफी बड़ा उपयोगी होगा।
यहां से पाकिस्तान बॉर्डर की दूरी महज 800 किलोमीटर है। ऐसे में आपके भी मन में यह सवाल कौंध रहा होगा कि एयरफोर्स के द्वारा फाइटर प्लेन की नाइट लैंडिंग करके हमने क्या हासिल किया? आखिर यह कैसे गेमचेंजर साबित हो सकता है? वहीं पहलगाम आतंकी हमले का बदला लेने के पश्चात इस ट्रॉयल का कितना रणनीतिक महत्व माना जा रहा है? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब।
नाइट लैंडिंग करके भारत चुनिंदा देशों में हुआ शामिल:
गौरतलब है कि वायुसेना के द्वारा यूपी के शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेस-वे पर रात दिन दोनों समय फाइटर जेट की लैडिंग की प्रैक्टिस की गई थी। दिन में जहां एक हेलिकॉप्टर सहित करीब 16 विमान शामिल हुए थे। वहीं रात के समय 9 से 10 बजे के बीच में एक हेलिकॉप्टर समेत करीब 15 विमान लैंडिंग में शामिल हुए थे।
इस अभ्यास में लड़ाकू विमानों में राफेल तथा सुखोई समेत मिराज-2000, मिग-29, जगुआर एवं परिवहन विमान में C-130J सुपर हरक्यूलिस तथा AN-32 भी शामिल रहे। वहीं वायुसेना के द्वारा MI-17 V5 हेलिकॉप्टर का परीक्षण भी इस रनवे पर दिन-रात की लैंडिंग में किया गया था।
आपको बता दें कि यह अभ्यास भारत को उन कुछ चुनिंदा देशों में शामिल करता है, जो एक्सप्रेस-वे पर नाइट लैंडिंग भी कर सकते हैं। वहीं 250 सीसीटीवी एवं कड़े सुरक्षा इंतजामों के साथ में यह हवाई पट्टी युद्ध अथवा आपदा में सेना के लिए रणनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी।
वॉर टाइम रनवे के रूप में भी किया जा सकेगा इस्तेमाल:
दरअसल गंगा एक्सप्रेस-वे को एक “वॉर टाइम रनवे” के रूप में तैयार किया गया है। वहीं नाइट लैंडिंग से यह भी साबित हो गया कि भारतीय वायुसेना अंधेरे में भी काफी सटीक ऑपरेशन करने में सक्षम है। वहीं अगर किसी एयरबेस पर दुश्मनों का हमला होता है, तो गंगा एक्सप्रेस-वे जैसे ऑप्शनल रनवे भी सेना के लिए तेजी से काम कर सकते हैं।
रणनीतिक लोकेशन का मिलेगा काफी फायदा:
बता दें कि शाहजहांपुर जैसी मध्यवर्ती लोकेशन से दुश्मन देश पाकिस्तान तथा चीन की सीमाओं तक तुरंत ही एयर सपोर्ट भेजा जा सकता है। वहीं उत्तर प्रदेश का यह एक्सप्रेस-वे उत्तर भारत की सुरक्षा चेन में भी एक मजबूत कड़ी बनकर उभरा है। आपको बता दें कि यहां से पाकिस्तान बॉर्डर की दूरी महज 800 किलोमीटर तथा चीनी बॉर्डर की दूरी सिर्फ 250 किलोमीटर ही है।
आपदा प्रबंधन तथा राहत ऑपरेशन में होगी उपयोगिता:
इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदा तावा मानवीय संकट की स्थिति में भी गंगा एक्सप्रेस-वे पर एयरक्राफ्ट तथा हेलिकॉप्टर उतारे जा सकेंगे। साथ ही राहत सामग्री, दवाइयां एवं जवान भी तेजी से भेजे जा सकेंगे।
नाइट विजन तथा ग्राउंड कोआर्डिनेशन की भी परीक्षा:
गौरतलब है कि इस ऑपरेशन में नाइट विजन गॉगल्स (NVG) तथा इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS) समेत इंफ्रारेड कैमरे, रनवे फ्लड लाइटिंग तथा ग्राउंड कंट्रोल यूनिट का समन्वय जांचा गया। बता दें कि यह एक रियल टाइम युद्धाभ्यास ही था।
भारतीय वायुसेना की तकनीकी शक्ति का भी हुआ प्रदर्शन:
दरअसल यह अभ्यास भारतीय वायुसेना की तकनीकी उन्नति एवं रणनीतिक तैयारियों का बेहतर प्रमाण है, जो इसे वैश्विक स्तर पर कुछ चुनिंदा वायुसेनाओं के समकक्ष खड़ा करता है। भारतीय वायुसेना (IAF) के द्वारा गंगा एक्सप्रेस-वे पर नाइट लैंडिंग रिहर्सल के समय उन्नत तकनीकों का भी प्रदर्शन किया गया। इसमें खास बात यह रही कि वायुसेना का परीक्षण उसके मानकों पर बिल्कुल खरा उतरा। एयरफोर्स इस परीक्षण से जो भी परखना चाहती थी, वह सारा डेटा उसे मिल गया है।
यही मुख्य वजह है कि 2 दिन का यह अभ्यास सिर्फ एक दिन में ही समाप्त कर दिया गया। दरअसल गंगा एक्सप्रेस-वे पर रिहर्सल की तारीख तो पहलगाम हमले के काफी पहले से ही तय थी। लेकिन जिस माहौल में यह हुआ, उससे कहीं न कहीं पाकिस्तान को भी एक संदेश दिया गया है। यह संदेश था कि हमारी वायुसेना किसी भी चुनौती एवं परिस्थिति से निपटने के लिए एकदम तैयार है।
लड़ाकू विमानों की क्षमता:
राफेल, मिग-29, सुखोई-30, जगुआर तथा सुपर हरक्यूलिस जैसे विमानों के द्वारा नाइट लैंडिंग एवं टच एंड गो ऑपरेशन किए गए। यह विमान अत्याधुनिक रडार, नेविगेशन सिस्टम तथा नाइट विजन तकनीकों से लैस हैं। यह कम रोशनी में सटीक लैंडिंग एवं युद्धक मिशन को संभव बनाते हैं।
नाइट विजन एवं इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS):
नाइट लैंडिंग के लिए सभी विमानों में नाइट विजन गॉगल्स (NVG) एवं उन्नत ILS का उपयोग किया गया है। यह रात में हवाई पट्टी की सटीक स्थिति एवं दूरी का आकलन करता है।
हवाई पट्टी की तकनीक:
गंगा एक्सप्रेस-वे की करीब 3.5 किमी लंबी हवाई पट्टी को बेहद विशेष रूप से डिजाइन किया गया है। इसमें रनवे की मजबूती, सिग्नलिंग तथा अस्थायी लाइटिंग सिस्टम शामिल हैं। साथ ही यह इमरजेंसी में ऑप्शनल रनवे के रूप में भी काम कर सकती है।
सुरक्षा तथा निगरानी:
250 सीसीटीवी एवं ड्रोन-आधारित निगरानी के द्वारा ऑपरेशन की सुरक्षा सुनिश्चित की गई। रियल-टाइम डेटा विश्लेषण एवं कमांड सेंटर के साथ समन्वय के द्वारा तकनीकी दक्षता को बढ़ाया गया है।
रणनीतिक युद्धक तकनीक:
विमानों के द्वारा युद्धक परिदृश्यों का प्रदर्शन किया गया, जैसे हाई-स्पीड टेकऑफ, लो-लेवल फ्लाइंग एवं टैक्टिकल मैन्यूवर्स, जो वायुसेना की मल्टी-रोल कॉम्बैट क्षमता को भी दर्शाते हैं।
गंगा एक्सप्रेस-वे ऑपरेशन में चौथी बार किया गया नाइट विजन तकनीक का इस्तेमाल:
बता दें कि नाइट विजन तकनीक भारतीय वायुसेना को रात में भी संचालन करने की क्षमता देती है। वहीं यह दुश्मन के लिए अप्रत्याशित हो सकता है तथा रणनीतिक फायदा प्रदान करता है। वहीं गंगा एक्सप्रेस-वे पर नाइट लैंडिंग रिहर्सल के दौरान वायुसेना के द्वारा चौथी बार नाइट विजन गॉगल्स (NVG) एवं इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम (ILS) का उपयोग किया गया।
इसी की मदद से पायलटों के द्वारा करीब 3.5 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी पर सटीक लैंडिंग की गई, जो आपातकाल में ऑप्शनल रनवे के रूप में एक्सप्रेस-वे का उपयोग करने की क्षमता दिखाता है। यह तकनीक आपदा राहत मिशन तथा युद्ध के दौरान रात में उड़ान भरने में भी मदद करती है, जैसे कि सीमा पर निगरानी एवं लक्ष्य अधिग्रहण।
जाट हैं कि क्या है नाइट विजन तकनीक?
आपको बता दें कि रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक नाइट विजन तकनीक (Night Vision Technology) कम रोशनी अथवा अंधेरे में भी दृश्यता प्रदान करती है। इससे रात में सटीक तथा सुरक्षित मिशन संभव होते सकते हैं।
नाइट विजन डिवाइस (NVD) कम रोशनी (जैसे चांदनी अथवा तारों की रोशनी) को इलेक्ट्रॉन में बदलकर उसे काफी बढ़ाते हैं तथा दृश्यमान छवि बनाते हैं। नाइट विजन तकनीक मुख्य रूप से 2 तरीकों इमेज इंटेंसिफिकेशन तथा थर्मल इमेजिंग से काम करती है।
इमेज इंटेंसिफिकेशन:
दरअसल यह तकनीक पर्यावरण में उपलब्ध कम मात्रा में प्रकाश (जैसे चांदनी अथवा तारों की रोशनी) को इलेक्ट्रॉनों में बदलकर बढ़ाती है और फिर साफ इमेज पैदा करती है। आमतौर पर यह नाइट विजन गॉगल्स में उपयोग किया जाता है। वहीं यह पायलटों को रात में हवाई पट्टी, इलाके तथा अन्य जेडीएस विमानों की स्थिति को भी साफ रूप से दिखाते हैं।
थर्मल इमेजिंग:
यह तकनीक वस्तुओं से उत्सर्जित ऊष्मा यानि गर्मी को पकड़ती है एवं इसे दृश्यमान छवि में परिवर्तित करती है। यह तकनीक रात को भी, कोहरे, धुएं अथवा पूर्ण अंधेरे में काम कर सकती है। वहीं इससे यह सैन्य संचलनों के लिए विशेष रूप से काफी उपयोगी है।
वायुसेना नाइट विजन तकनीक का पहले भी कर चुकी है इस्तेमाल:
भारतीय वायुसेना के द्वारा 3 बार पहले भी रात में विमानों की लैंडिंग एवं बचाव मिशनों में नाइट विजन तकनीक का इस्तेमाल किया जा चुका है। पहली बार 23 मई, 2024 को वायुसेना के द्वारा पूर्वी क्षेत्र में एक उन्नत लैंडिंग ग्राउंड पर सी-130जे विमान को NVG का प्रयोग करके सफलतापूर्वक उतारा गया था।
फिर अप्रैल, 2023 में सूडान की राजधानी खार्तूम से सभी भारतीय नागरिकों की निकासी के दौरान NVG, थर्मल इमेजर्स तथा लेजर रेंज फाइंडरों (लेजर से दूरी नापना) का उपयोग किया गया था। वहीं इस ऑपरेशन में C-130J सुपर हरक्यूलिस के द्वारा खार्तूम के पास एक अर्धनिर्मित रनवे पर बिना अप्रोच लाइट्स के रात में ही लैंडिंग की थी।
इसी प्रकार तीसरी बार साल 2025 की शुरुआत में, भारतीय वायुसेना के द्वारा लद्दाख क्षेत्र में कारगिल एयरस्ट्रिप पर इसी तकनीक की सहायता से रात में लैंडिंग की गई थी।