समाज: बेंगलुरु की एक कैब में लगे छह अनोखे नियमों की तस्वीर सोशल मीडिया पर इतनी तेजी से वायरल हो रही है कि लोग अब कैब सफर की पूरी संस्कृति पर ही सवाल उठाने लगे हैं। Reddit पर एक यूज़र द्वारा शेयर की गई फोटो ने इंटरनेट पर बहस छेड़ दी “क्या ड्राइवर इतने सख्त नियम लागू कर सकते हैं?” और “क्या यात्री सच में इन्हें फॉलो करें?”
यह तस्वीर देखते ही हर कोई चौंक गया क्योंकि इन नियमों का लहजा बेहद तीखा और बेबाक है।
1. आखिर क्या हैं ये 6 सख्त नियम?
बोर्ड पर लिखे ये नियम किसी चेतावनी से कम नहीं और यही वजह है कि ये हर किसी का ध्यान खींच रहे हैं।
1️⃣ “आप इस गाड़ी के मालिक नहीं हैं।”
ड्राइवर सीधे यात्रियों को ‘जगह दिखाने’ वाली भाषा में कहता है आप सिर्फ सवार हैं, मालिक नहीं।
2️⃣ “गाड़ी चलाने वाला ही इसका मालिक है।”
सबसे साफ संदेश: ड्राइवर ही फैसले लेगा, गाड़ी उसकी है, और उसकी मर्यादा का सम्मान होना चाहिए।
3️⃣ “नरमी से बात करें और सम्मान दें।”
ड्राइवर का कहना है कि बदतमीज़ी या रुखे व्यवहार को कतई बर्दाश्त नहीं करेगा।
4️⃣ “दरवाजा जोर से न पटकें।”
यह नियम सबसे प्रैक्टिकल है क्योंकि कई यात्री दरवाज़ा इतनी ताकत से बंद करते हैं कि गाड़ी को नुकसान होने लगता है।
5️⃣ “घमंड अपने पास रखें, ज़्यादा पैसे नहीं दे रहे हैं।”
यह पॉइंट इंटरनेट पर सबसे ज्यादा चर्चा में रहा।
ड्राइवर के मुताबिक ‘हम पैसा कमाते हैं, सहायता नहीं लेते’। इसलिए यात्रियों का एटीट्यूड कंट्रोल में होना चाहिए।
6️⃣ “मुझे ‘भैया’ न कहें और तेज़ चलाने का दबाव न डालें।”
ड्राइवर का कहना ‘भैया’ कहना उसे अपमानजनक लगता है और स्पीड बढ़ाने के लिए मजबूर करना खतरनाक है।
2. नियमों के पीछे का मनोविज्ञान आखिर ड्राइवर इतना सख्त क्यों है?
विशेषज्ञों का मानना है कि रोज-रोज के बुरे अनुभवों के बाद ड्राइवरों में निराशा जम जाती है।
•कुछ लोग ड्राइवर से नौकर जैसा व्यवहार करते हैं
•कई यात्री तेज़ चलाने का दबाव बनाते हैं
•दरवाज़ा ज़ोर से बंद करते हैं
•गलत भाषा में बात करते हैं
•देर होने पर ड्राइवर को दोष देते हैं
इसी प्रक्रिया से यह “रूल बोर्ड” जन्म लेता है एक तरह का मनोवैज्ञानिक ‘सेल्फ-डिफेंस’।
3. सोशल मीडिया पर बहस तेज: सपोर्ट भी, आलोचना भी!
समर्थन करने वाले कहते हैं:
“ड्राइवर भी इंसान हैं, सम्मान मिलना चाहिए।”
“ये नियम बदतमीज़ यात्रियों के लिए ज़रूरी हैं।”
“किसी का पेशा उसकी पहचान कम नहीं करता।”
आलोचना करने वाले कहते हैं:
“लहजा बहुत रूखा है।”
“क्या ड्राइवर इस भाषा में यात्रियों से बात कर सकता है?”
“‘भैया मत बोलो’ यह हास्यास्पद मांग है।”
मज़ेदार मीम्स भी आए:
“भैया नहीं कहेंगे तो क्या बोलें? सर? बॉस? अन्ना?”
“अगर आप मालिक हैं तो गाड़ी मेरी है क्लासिक लाइन!”
बहस का कोई अंत नहीं दिख रहा।
4. भारत के दूसरे शहरों में भी ऐसे नियम देखे गए हैं
दिल्ली में कुछ ऑटो वाले लिखते हैं “तेज़ चलाने को मत बोलना।”
मुंबई में: “नकद पहले, सफर बाद में।”
कोलकाता में: “सवारी आराम से बैठें, यह स्पोर्ट्स कार नहीं है।”
ऐसे नोटिस बताते हैं कि यात्री-ड्राइवर विवाद सिर्फ बेंगलुरु की बात नहीं ये पूरे भारत की समस्या है।
5. कैब ड्राइवरों के अधिकार क्या कहते हैं?
ट्रांसपोर्ट नियमों के अनुसार ड्राइवर असुरक्षित परिस्थितियों में सफर मना कर सकता है। स्पीड बढ़ाने का दबाव देना अपराध की श्रेणी में आता है। गाली-गलौज या असम्मान पर ड्राइवर शिकायत दर्ज कर सकता है। इसलिए इनमें से कुछ नियम कानूनी रूप से भी सही हैं।
6. यात्रियों को भी इन 6 बातों का ध्यान रखना चाहिए
यह न्यूज़ को और बैलेंस्ड बनाता है:
•शांत रहें, शोर न करें
•सीट बेल्ट लगाएँ
•रास्ते में अचानक लोकेशन न बदलें
•गाड़ी के साथ तमीज़ से पेश आएँ
•बदतमीज़ी न करें
•तेज़ चलाने के लिए न कहें
ये सिर्फ नियम नहीं सुरक्षा हैं।
7. क्या कंपनियाँ (Uber/Ola) ऐसा रूल बोर्ड मानती हैं?
कंपनियाँ यात्रियों और ड्राइवर दोनों को ‘सम्मानजनक व्यवहार’ की सलाह देती हैं अनावश्यक बहस, धमकी या स्पीड का दबाव कंपनी पॉलिसी के खिलाफ है लेकिन इतने सख्त ‘व्यक्तिगत नियम’ बोर्ड पर लिखना उनका आधिकारिक हिस्सा नहीं, यानी ड्राइवर ने यह स्वयं बनाया है।
8. निष्कर्ष: यह सिर्फ छह नियम नहीं, हमारे व्यवहार का आईना है
यह घटना दिखाती है कि ड्राइवर और यात्री दोनों कभी-कभी एक-दूसरे के प्रति नाराज़गी लेकर चलते हैं। समाधान सिर्फ एक है- सम्मान। थोड़ा आचरण बदलकर, थोड़ा समझदारी दिखाकर हर सफर आरामदायक हो सकता है।