देहरादून : उत्तराखंड में चुनाव आयोग अब मतदाता सूची की सबसे कड़ी और सबसे गहन जांच SIR शुरू करने जा रहा है और इसका सीधा असर पड़ेगा उन हज़ारों महिलाओं पर, जो शादी करके दूसरे राज्यों से उत्तराखंड आई हैं। मतलब साफ है कि अगर वोट बचाना है, तो मायके से कागज़ात अभी से जुटाना शुरू कर दें।
SIR की शुरुआत, मतदाता सूची में ‘बड़ी सफ़ाई’
आपको बता दें कि दिसंबर या जनवरी से राज्य में शुरू हो रहा है स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) एक ऐसी प्रक्रिया जिसमें:
●घर–घर जाकर सत्यापन
●डुप्लीकेट नाम हटाना
●मृत मतदाता हटाना
●नए और पुराने रिकॉर्ड का मिलान
सब कुछ बेहद गहराई से जांचा जाएगा।
क्यों मंगाने होंगे मायके के कागज़?
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 2003 की मतदाता सूची को आधार बनाया है। अब मामला यहां फंस रहा है—
●अगर महिला का नाम 2003 में मायके वाले राज्य की वोटर लिस्ट में था ➝ तो वह रिकॉर्ड देना अनिवार्य होगा।
●अगर उस समय नाम वोटर लिस्ट में नहीं था ➝ तो माता-पिता के 2003 वाली वोटर लिस्ट का विवरण देना पड़ेगा।
यानी शादी के बाद आई महिलाएं बिना मायके के दस्तावेज़ दिए अपना नाम लिस्ट में सुरक्षित नहीं रख पाएंगी।
क्यों लिया गया यह बड़ा निर्णय?
चुनाव आयोग के अनुसार विवाह के बाद राज्य बदलने से दोहरी वोटर एंट्री की संभावना, पते बदलने के बाद विसंगतियां, गलत/पुराने रिकॉर्ड तेजी से बढ़ रहे थे। SIR के जरिए पूरी वोटर लिस्ट को ‘फुल बॉडी स्कैन’ की तरह साफ किया जाएगा।
महिलाएं अभी से क्या तैयारी करें?
विदित है कि दूसरे राज्यों खासकर UP, बिहार, हरियाणा, राजस्थान से आई महिलाएं मायके से ये चीज़ें तुरंत मंगवाएं—
●2003 की वोटर लिस्ट की कॉपी
●उस समय का निर्वाचन क्षेत्र
●माता-पिता के नाम और ID विवरण
●पुरानी वोटर ID का डेटा (अगर मौजूद हो)
SIR शुरू होने से पहले पता अपडेट कर लें, नई एंट्री, पुराने नाम हटवाना, गलत जानकारी सुधारना सब कर लें।
चुनाव आयोग का लक्ष्य: “अगले चुनाव से पहले त्रुटिरहित वोटर लिस्ट”
चुनाव आयोग अगले चुनाव से पहले त्रुटिरहित वोटर लिस्ट निकालने के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहा है। इससे साफ संकेत है कि यह प्रक्रिया सिर्फ जांच नहीं, राज्य की वोटर लिस्ट की अब तक की सबसे बड़ी सफ़ाई है और इसका सबसे ज्यादा असर दूसरे राज्यों से आईं बहुओं पर पड़ेगा, जिन्हें अब खुद को साबित करने के लिए मायके के दस्तावेज़ पेश करने होंगे।