ग्रेटर नोएडा/दनकौर : जमीन के लालच में इंसान कहां तक गिर सकता है, इसका ताजा उदाहरण ग्रेटर नोएडा के दनकौर क्षेत्र में सामने आया है। यहां आरोपियों ने कनाडा में रह रहे 70 वर्षीय व्यक्ति को कागजों में "मरा हुआ" साबित कर दिया और उसकी 50 बीघा की बेशकीमती जमीन हड़पने के लिए फर्जी वसीयतनामा तक तैयार कर लिया। पीड़ित जिले सिंह के मुताबिक, उन्होंने साल 1996 में दिल्ली निवासी राहुल सोनी से बेला खुर्द गांव, दनकौर नोएडा में जमीन खरीदी थी। बैनामा और पॉवर ऑफ अटॉर्नी कराने के बाद राहुल कनाडा चला गया। लेकिन उसकी गैरमौजूदगी का फायदा उठाकर चार राज्यों के 13 लोगों ने मिलकर एक खतरनाक साजिश रची।
जानें कैसे रची गई साजिश?
आपको बता दें कि पहले आरोपियों ने पंजाब से राहुल का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया। फिर राहुल का फर्जी बेटा-बेटी तैयार कर दिए और उनके नाम से वसीयतनामा बनवाया। अट्टा फतेहपुर के कुछ आरोपियों ने सरकारी दफ्तरों में जाकर इन फर्जी दस्तावेजों की पुष्टि तक करवा दी। इसके बाद जमीन के रिकार्ड में आरोपियों के नाम दर्ज कराए गए। यानी पूरा खेल प्लानिंग के साथ खेला गया ताकि करोड़ों की जमीन पर कब्जा किया जा सके।
पुलिस और कोर्ट की दखल :
गौरतलब है कि जिले सिंह का कहना है कि उन्होंने जब इस धोखाधड़ी का पता लगाया तो सबसे पहले दनकौर पुलिस से शिकायत की। लेकिन वहां से उन्हें कोई मदद नहीं मिली। मजबूर होकर उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया।
4 राज्यों के 13 लोग पर मुकदमा :
आपको बता दें कि कोर्ट के आदेश पर दनकौर पुलिस ने आखिरकार सभी 13 आरोपियों पर मुकदमा दर्ज कर लिया। इन आरोपियों में उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब और हरियाणा के लोग शामिल हैं। दनकौर कोतवाली प्रभारी मुनेंद्र सिंह का कहना है कि मामला बेहद गंभीर है और इसकी गहन जांच की जा रही है।
क्यों खास है यह मामला?
विदित है यह सिर्फ जमीन हड़पने का मामला नहीं, बल्कि जिंदा इंसान को "मरा हुआ" साबित करने की गंदी साजिश है। सरकारी तंत्र का दुरुपयोग करते हुए प्रमाण पत्र और वसीयतनामा तक जाली बना दिया गया। साथ ही चार राज्यों के लोगों की संलिप्तता से साफ है कि इसमें एक बड़ा गैंग शामिल हो सकता है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि अगर अदालत ने दखल न दिया होता तो क्या राहुल सोनी को वाकई सरकारी रिकार्ड में हमेशा के लिए "मृत" घोषित कर दिया जाता?
यह केस सिर्फ एक किसान/खरीदार बनाम कब्जा गैंग का नहीं, बल्कि प्रमाण पत्र, वसीयत, राजस्व की पूरी चेन में संगठित फर्जीवाड़े का संभावित ब्लूप्रिंट है। कोर्ट की दखल के बाद एफआईआर दर्ज होना पहला बड़ा कदम है। अब असली परीक्षा फॉरेंसिक पड़ताल, रिकॉर्ड ऑडिट और कड़ी गिरफ्तारियां हैं। यहीं से तय होगा कि “जिंदा को मृत” दिखाकर जमीन हड़पने वाले नेटवर्क कितनी जल्दी बेनकाब होते हैं।