धर्म और संस्कृति: कांवड़ यात्रा एक धार्मिक पदयात्रा है जो सावन महीने में होती है। इस यात्रा में लाखों शिवभक्त जिन्हें कांवड़िए कहा जाता है, गंगा नदी से पवित्र जल भरकर, उसे भगवान शिव के मंदिरों में ले जाकर जलाभिषेक करते हैं। वे अपने कंधे पर लकड़ी की बनी कांवड़ रखते हैं, जिसके दोनों ओर बर्तन में गंगाजल होता है। यह यात्रा नंगे पैर और पूरी श्रद्धा के साथ की जाती है।
इसकी शुरुआत और पौराणिक मान्यता क्या है?
आपको बता दें कि समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी मान्यता: जब समुद्र मंथन हुआ, तो उसमें से एक भयंकर विष (हलाहल) निकला। उस विष से ब्रह्मांड को बचाने के लिए भगवान शिव ने उसे पी लिया। विष को गले में रोकने के कारण उनका गला नीला पड़ गया, तभी से वे "नीलकंठ" कहलाए। कहा जाता है कि विष के असर को कम करने के लिए देवताओं ने उन्हें गंगाजल चढ़ाया। उसी समय से यह परंपरा शुरू हुई।
कांवड़ यात्रा का इतिहास किन-किन से जुड़ा है?
कहते हैं कि रावण भगवान शिव का परम भक्त था। उसने भी शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाया। साथ ही भगवान परशुराम के लिए भी कहा जाता है कि उन्होंने भी गंगाजल लाकर सावन में शिव की पूजा की। वहीं एक मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीराम ने सुल्तानगंज (बिहार) से जल लाकर देवघर (झारखंड) में बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाया था।
कांवड़ यात्रा कहां से शुरू होती है?
विदित है कि हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख (उत्तराखंड) से सबसे ज्यादा कांवड़िए जल भरते हैं। साथ ही प्रयागराज, वाराणसी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश) और सुल्तानगंज (बिहार) से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु जल भरते हैं।
जल लेकर कहां जाते हैं कांवड़िए?
गौरतलब है कि वे गंगाजल लेकर अलग-अलग मंदिरों में जाते हैं जैसे बाबा बैद्यनाथ धाम (देवघर, झारखंड), काशी विश्वनाथ (वाराणसी), औघड़नाथ मंदिर (मेरठ), लोधेश्वर महादेव (बाराबंकी), दुधेश्वरनाथ (गाजियाबाद) और क्षीरेश्वर महादेव (अयोध्या)।
कांवड़ यात्रा कैसे होती है?
आपको बता दें कि कांवड़िए नंगे पैर चलते हैं। साथ ही एक बार गंगाजल लेने के बाद कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता। इसलिए कई लोग टोली बनाकर यात्रा करते हैं ताकि जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे की मदद कर सकें। कहीं-कहीं पर ट्रकों या गाड़ियों पर डेकोरेटेड कांवड़ भी दिखाई देती हैं।
सुरक्षा के क्या इंतजाम हैं?
इस बार सरकार ने बड़े स्तर पर तैयारी की है, 70 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं। CCTV कैमरे, ड्रोन, मेडिकल कैंप, जल सेवा केंद्र बनाए गए हैं। हाईवे पर अलग लेन सिर्फ कांवड़ियों के लिए बनाई गई है।
यह केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि श्रद्धा, समर्पण और तपस्या की प्रतीक है। इससे भक्तों को आध्यात्मिक शांति और आत्मिक शुद्धि मिलती है। यह यात्रा बताती है कि ईश्वर के लिए कठिनाइयों को झेलना ही सच्ची भक्ति है।