जानिए छठ पूजा का सम्पूर्ण रहस्य, इतिहास और आस्था!: आखिर क्यों दिया जाता हैं जल में उतरकर सूर्य को अर्घ्य? कौन हैं छठी मैय्या जिनके लिए जलता हैं हर घर का दीप और...
जानिए छठ पूजा का सम्पूर्ण रहस्य, इतिहास और आस्था!

धर्म और संस्कृति: भारत के सबसे पवित्र और कठिन व्रतों में से एक, छठ पूजा, इस वर्ष पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। यह पर्व न केवल सूर्य की उपासना का प्रतीक है बल्कि मातृत्व, त्याग, और सात्विकता का भी अनूठा उत्सव है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल तक फैले इस पर्व की गूंज अब देश-दुनिया में सुनाई देने लगी है।

छठ पूजा का महत्व, सूर्य और प्रकृति को धन्यवाद

छठ पूजा को सूर्योपासना का पर्व कहा जाता है। इसका उद्देश्य है प्रकृति, सूर्य देव और छठी मैया का आभार व्यक्त करना।

सूर्य को “जीवन का स्रोत” माना गया है उनकी किरणों से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। छठ व्रती यह पूजा इसलिए करते हैं ताकि सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया से परिवार के स्वास्थ्य, संतान-सुख, और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त हो। “यह व्रत जीवन में संयम, पवित्रता और आत्मनियंत्रण सिखाता है।”

छठी मैया कौन हैं?

छठी मैया को देवी कात्यायनी का अवतार और सूर्य देव की बहन माना जाता है। वे संतान-सुख, सुरक्षा और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं।

पुराणों में कहा गया है जब ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, तो उसे छह भागों में बांटा गया जिनमें छठा भाग “षष्ठी” कहलाया। यही छठी देवी हैं, मातृत्व और रक्षा का प्रतीक।

“छठी मैया केवल एक देवी नहीं, बल्कि हर माँ की ममता और परिवार की ढाल हैं।”

छठ पूजा की उत्पत्ति और पौराणिक कथा:

इस पूजा की जड़ें बहुत गहरी हैं। रामायण में माता सीता ने राम-राज्याभिषेक के बाद सरयू नदी के तट पर छठ पूजा की थी। महाभारत में कुंती और द्रौपदी ने संतान और राज्य की समृद्धि के लिए यह व्रत रखा था।

सूर्यवंशी राजा प्रियव्रत की कथा भी प्रसिद्ध है जिनकी संतान-प्राप्ति छठी देवी की कृपा से हुई। इसीलिए यह व्रत “संतान-सुख और जीवन-ऊर्जा” का प्रतीक माना जाता है।

चार दिन की पूजा-विधि, श्रद्धा, तप और शुद्धता का संगम

छठ पर्व चार दिनों तक चलता है और हर दिन का अपना महत्व होता है:

  1. पहला दिन, नहाय-खाय:
    व्रती शुद्ध होकर स्नान करते हैं और सात्विक भोजन (कद्दू-भात) करते हैं। इसी से व्रत की शुरुआत होती है।

  2. दूसरा दिन, खरना:
    इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को गुड़-चावल की खीर, रोटी और फल का प्रसाद बनाकर ग्रहण करते हैं।

  3. तीसरा दिन, संध्या अर्घ्य:
    महिलाएं घाटों पर सूर्यास्त के समय जल में खड़ी होकर सूर्य को अर्घ्य देती हैं। यह दृश्य आस्था और सौंदर्य का अद्भुत संगम होता है।

  4. चौथा दिन, उषा अर्घ्य:
    अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और व्रत का समापन होता है। इसी क्षण व्रती अपनी मनोकामनाएं सूर्य देव को समर्पित करते हैं।

“अर्घ्य के समय पानी में उतरकर सूर्य को नमन करना, आत्मशुद्धि और जीवन-ऊर्जा का प्रतीक है।”

छठ पूजा के प्रसाद, ठेकुआ से रसीया खीर तक

छठ पूजा की मिठास उसके प्रसाद में बसती है। व्रती अपने घरों में सात्विक प्रसाद बनाते हैं

ठेकुआ: गेहूं का आटा, गुड़ और घी से बना पारंपरिक पकवान।
रसीया खीर: गुड़ और चावल से बनी खीर, जिसे खरना के दिन बनाया जाता है।
कसार: चने के आटे से बनी मिठाई जो प्रसाद का मुख्य हिस्सा है।

पूड़ी और चना दाल, फल व गन्ना भी पूजा में उपयोग किए जाते हैं। इन सभी व्यंजनों को बिना लहसुन-प्याज और अत्यंत सात्विक वातावरण में बनाया जाता है। “छठ का प्रसाद केवल भोजन नहीं बल्कि भक्ति का स्वाद है।”

वैज्ञानिक आधार, क्यों है सूर्योपासना लाभदायक

छठ पूजा को सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सूर्य की किरणों से शरीर को विटामिन-D मिलता है। अर्घ्य देते समय पानी में खड़े रहना शरीर के ब्लड सर्कुलेशन और माइंड-कंट्रोल में मदद करता है।

सांसों की गति और ध्यान से मानसिक शांति प्राप्त होती है इसे प्राकृतिक ध्यान साधना कहा गया है। जल में सूर्य की परछाईं देखने से नेत्र और मस्तिष्क तंत्रिका को लाभ होता है। “छठ पूजा प्रकृति, योग और साइंस का सुंदर संगम है।”

लोक-संस्कृति और सामाजिक एकता

यह पर्व समाज में एकता और समानता का प्रतीक है। धनी-गरीब, महिला-पुरुष, सब एक साथ घाट पर खड़े होकर एक ही सूर्य को नमन करते हैं।

घरों में पारंपरिक गीत गूंजते हैं “केलवा जे फरेला घोघा में, ओहके केलवइया कहले…” लोकगीत, दीपक, अरघ्य और आस्था मिलकर हर गली को मंदिर बना देते हैं।

“छठ पूजा वह पर्व है, जहां धर्म नहीं, केवल भावना सर्वोपरि होती है।”

छठी मैया चालीसा और आरती का महत्व

व्रती शाम और सुबह दोनों समय छठी मैया की चालीसा और आरती करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में सुख-शांति, संतान-सुख और सफलता आती है। भजन गूंजते हैं, दीप जलते हैं और वातावरण भक्ति में सराबोर हो जाता है। “छठी मैया की आरती सुनते ही लगता है मानो पूरी प्रकृति प्रार्थना में झुक गई हो।”

निष्कर्ष “आस्था, आराधना और आत्मशक्ति का पर्व”

छठ पूजा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि यह जीवन में संयम, कृतज्ञता और प्रकृति के प्रति सम्मान का संदेश देती है।

सूर्य के अस्त होते ही भी जब दीप जलते हैं तो वह केवल रोशनी नहीं, बल्कि उम्मीद होती है कि “जब तक सूर्य की एक किरण बाकी है, तब तक जीवन में प्रकाश रहेगा।”

"आप सभी को छठ पूजा 2025 की हार्दिक शुभकामनाएं। सूर्य देव और छठी मैया आपके जीवन में सुख, समृद्धि और सन्तान-सुख की वर्षा करें।"

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