नोएडा-ग्रेनो : यूपी सरकार का सबसे बड़ा औद्योगिक सपना कहीं कागजों में ही न अटक जाए। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र में करीब 4 लाख हेक्टेयर जमीन अधिसूचित है। लेकिन हकीकत ये है कि अब तक सिर्फ 40 हजार हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण हो पाया है। यानी कुल भूमि का केवल 10 % हिस्सा ही विकास की राह पर है। इन्वेस्ट यूपी की ओर से दिए गए प्रजेंटेशन में ये चौंकाने वाला सच सामने आया। सवाल अब ये है कि जब जमीन ही खाली नहीं होगी, तो निवेशक आएंगे कहाँ से और फैक्ट्रियां लगेंगी कैसे?
धीमी रफ्तार ने रोकी विकास की गाड़ी :
● अधिसूचित जमीन – 4 लाख हेक्टेयर
● मास्टर प्लान तैयार – 1.50 लाख हेक्टेयर
● वास्तव में अधिग्रहीत – 40 हजार हेक्टेयर
बाकी जमीन या तो किसानों के कब्ज़े में है या कानूनी पेचों में उलझी हुई है। नतीजा ये कि न तो बड़े उद्योग आ पा रहे हैं और न ही रोजगार के अवसर बन रहे हैं और न ही निवेशकों को भरोसा मिल रहा है।
अधिग्रहण की मौजूदा रफ्तार पर चेतावनी :
गौरतलब है कि प्रजेंटेशन में साफ कहा गया कि जिस स्पीड से जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है, उसी तरह चलता रहा तो पूरी अधिसूचित जमीन को हाथ में लेने में कई दशक लग जाएंगे। इसका सीधा मतलब है कि ज़मीन खाली न होने तक मास्टर प्लान हवा में ही रहेगा। और नोएडा-ग्रेटर नोएडा के विकास की रफ्तार थम जाएगी।
निवेशकों की सबसे बड़ी शिकायत :
आपको बता दें कि निवेशक कहते हैं कि : “हम निवेश करने आते हैं लेकिन जमीन की क्लियर पोज़िशन ही नहीं मिलती। नक्शे पास कराने में भी अड़चनें हैं। ऐसे में उद्योग लगाना लगभग नामुमकिन हो जाता है।”
उदाहरण के तौर पर, अगर किसी जमीन पर प्राधिकरण की अधिसूचना से पहले भवन बन गया है और उसका नक्शा स्थानीय निकाय से पास है, तब भी दोबारा निर्माण के लिए प्राधिकरण से NOC लेनी पड़ती है। यह प्रक्रिया निवेशकों और आम नागरिकों दोनों के लिए झंझट और समय की बर्बादी बन चुकी है।
सरकार ने बनाई 6 सदस्यीय समिति :
गौरतलब है कि मामले की गंभीरता समझते हुए शासन ने 6 सदस्यों की एक हाई-लेवल समिति बना दी है। इसमें निम्नलिखित सदस्य हैं।
अध्यक्ष: अपर मुख्य सचिव/ प्रमुख सचिव (नियोजन विभाग, यूपी)
सदस्य:
अपर मुख्य-सचिव/ मुख्य सचिव (आवास औऱ शहरी नियोजन डिपार्टमेंट)
सीईओ इन्वेस्ट यूपी
सीईओ यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण
मुख्य नगर एवं ग्राम नियोजक, यूपी
न्याय विभाग से नामित अधिकारी
क्या है समिति का काम :
विदित है कि इस समिति का निम्नलिखित काम है।
● देश के अन्य राज्यों की भूमि अधिग्रहण नीतियों का अध्ययन।
● यूपी में उद्योग और निवेश बढ़ाने के लिए नए विकल्प तलाशना।
● अधिसूचित लेकिन अविकसित क्षेत्र को “अनलॉक” करने की रणनीति बनाना।
15 दिन में देनी होगी रिपोर्ट :
आपको बता दें कि समिति को 15 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशें सरकार को सौंपनी होंगी। इसके आधार पर ही तय होगा कि जमीन अधिग्रहण की रफ्तार कैसे तेज़ होगी, साथ ही निवेशकों को भरोसा कैसे मिलेगा और नोएडा-ग्रेटर नोएडा का सपना सच्चाई में कैसे बदलेगा।
क्यों है ये मामला अहम?
आपको बता दें कि यूपी का सपना है खुद को देश का औद्योगिक हब बनाना। साथ ही नोएडा-ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे क्षेत्र इसके इंजन माने जाते हैं। लेकिन जमीन की इस धीमी प्रक्रिया ने पूरे विकास मॉडल पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
कुल मिलाकर, सरकार के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि “जमीन खाली नहीं तो निवेश कैसे होगा?” अब सबकी नज़रें बनी हुई हैं 15 दिनों बाद आने वाली समिति की रिपोर्ट पर। यही तय करेगी कि यूपी का औद्योगिक भविष्य कैसा रहेगा।