लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा उलटफेर तय माना जा रहा है। साल 2026 के पंचायत चुनाव अब सिर्फ गांव की राजनीति तक सीमित नहीं रह गए यह 2027 के विधानसभा चुनाव का सीधा 'सेमीफाइनल' बन चुके हैं। पंचायतों के पुनर्गठन की आड़ में सत्ता पक्ष ने गांव-गांव में अपने लिए राजनीतिक जमीन तैयार करनी शुरू कर दी है। प्रदेश में 500 नई ग्राम पंचायतें और 75 नए विकासखंड (ब्लॉक) बनाने की कवायद अब पूरी तरह तेज हो चुकी है।
क्या है पूरा प्लान? :
गौरतलब है कि राज्य के 57,695 ग्राम पंचायतों में अब 500 नई पंचायतें जोड़ी जाएंगी। साथ ही, 826 की जगह 901 ब्लॉक होंगे यानी 75 नए ब्लॉक प्रमुख का चुनाव होगा। यह सब उसी वक्त होगा जब 2026 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होंगे। 5 जून तक सभी डीएम और डीपीआरओ को रिपोर्ट सौंपनी है। शासन स्तर पर तय माना जा रहा है कि गांव की आबादी, जातीय समीकरण, और राजनीतिक वफादारी के आधार पर नई पंचायतों और ब्लॉकों की रचना की जाएगी।
राजनीति उद्देश्य या प्रशासनिक जरूरत? :
विदित है कि राज्य निर्वाचन आयोग के पूर्व आयुक्त एसके अग्रवाल की मानें तो पंचायतों का पुनर्गठन प्रशासनिक प्रक्रिया भले हो, लेकिन इसके पीछे राजनीतिक उद्देश्य भी गहरे होते हैं। राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय साफ कहते हैं, "पुनर्गठन की स्क्रिप्ट सत्ता पक्ष के प्रभावशाली विधायकों और सांसदों की कलम से लिखी जा रही है।" दरअसल, जिन ब्लॉकों में विपक्ष खासकर सपा, कांग्रेस, या रालोद का जनाधार मजबूत है, वहां पुनर्गठन कर वोट बैंक को तोड़ा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो यह पूरा खेल विपक्ष को ‘बिखेरने’ और सत्ता के अपने वफादार चेहरों को 'गढ़ने' की रणनीति है।
नए पंचायतों का पैमाना क्या होगा? :
आपको बता दें कि एक ग्राम पंचायत में न्यूनतम 1000 की आबादी तय की गई है। कई जगह पंचायतों में 3000 से ज्यादा की आबादी और कई गांव शामिल हैं। ऐसे बड़े पंचायतों को विभाजित कर नए प्रधानों के लिए रास्ता बनाया जा रहा है। 2021 के बाद 107 नई नगर पंचायतों के बनने से पहले ही 494 ग्राम पंचायतें शहरी सीमा में समाहित हो चुकी हैं। अब इनकी जगह 500 नई पंचायतें बनाई जा रही हैं यानी सरकार पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।
क्या सिर्फ सत्ता पक्ष को फायदा मिलेगा? :
गौरतलब है कि यह सवाल अब हर गांव में गूंजने लगा है। विपक्षी दल—सपा, कांग्रेस, रालोद, निषाद पार्टी, सुभासपा और यहां तक कि एनडीए की सहयोगी अपना दल (एस) तक इस पूरे पुनर्गठन में सक्रिय हो गई हैं। सभी अपने-अपने इलाकों में ऐसी पंचायतों की मांग कर रहे हैं जहां उन्हें जीतने की संभावना दिख रही हो। वहीं सूत्रों का दावा है कि सरकार का मकसद साफ है सपा के वोट बैंक को किसी एक ब्लॉक में प्रभावी नहीं होने देना। यानी हर उस समीकरण को तोड़ना, जिससे विपक्ष उभर सके।
पंचायत चुनाव बना विधानसभा की तैयारी :
यह पंचायत चुनाव 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी के तौर पर भी देखी जा रही। रिपोर्ट के अनुसार 2026 के पंचायत चुनाव में पहली बार कुछ बेहद खास होगा प्रथम चरण में ग्राम प्रधान, पंचायत सदस्य, क्षेत्र पंचायत सदस्य, जिला पंचायत सदस्य का चुनाव होगा वहीं द्वितीय चरण में ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव होगा। हर ब्लॉक, हर पंचायत राजनीतिक एजेंडे की प्रयोगशाला बनती दिख रही है। हर नवनिर्मित पंचायत, हर नया ब्लॉक एक 'सेंटर ऑफ पावर' बनकर उभरेगा, जहां 2027 की रणनीति की जड़ें मजबूत की जाएंगी।
जैसे-जैसे पंचायत चुनाव 2026 नजदीक आ रहे हैं, हर विधायक, हर सांसद और हर दल अपने-अपने वजूद की लड़ाई में उतर चुके हैं। सत्ता पक्ष ने पंचायत और ब्लॉक पुनर्गठन की चाल से पहले ही बाजी मारने की कोशिश शुरू कर दी है। 2026 पंचायत चुनाव की हलचल ने 2027 के सत्ता संग्राम की गूंज अभी से सुना दी है।