ढाका: ट्रिब्यूनल का 453 पेज का फैसला, 1,400 छात्रों की मौत का जिम्मेदार ठहराया गया; भारत में रह रहीं हसीना बोली “यह सियासी बदला है”
बांग्लादेश की राजनीति में सोमवार को सबसे बड़ा झटका तब लगा, जब इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने देश की पूर्व प्रधानमंत्री और अवामी लीग प्रमुख शेख हसीना को “मानवता के खिलाफ अपराध” और 1,400 छात्र प्रदर्शनकारियों की मौत के लिए उकसाने का दोषी ठहराते हुए मौत की सज़ा सुनाई।
यह फैसला 453 पेज की विस्तृत जजमेंट के बाद दिया गया, जिसे अदालत ने “अत्यंत गंभीर अपराध” करार दिया।
फैसला बेहद असामान्य इसलिए भी है क्योंकि यह पूरी सुनवाई in absentia (ग़ैर-हाजिरी में) हुई, शेख हसीना इस समय भारत में रह रही हैं और खुद को निर्वासित मानती हैं।
क्या हैं आरोप? अदालत ने क्या कहा?
ट्रिब्यूनल ने हसीना को कुल 5 गंभीर आरोपों में दोषी माना, जिनमें मुख्य रूप से शामिल हैं:
छात्र आंदोलन को हिंसक बनाने के लिए उकसाना
अदालत ने कहा कि 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हसीना के भाषण, आदेश और सरकारी निर्देश सीधे तौर पर हिंसा की ओर ले गए, जिनमें 1,400 छात्रों की मौत हुई और हजारों घायल हुए।
पुलिस और सुरक्षा बलों को ‘घातक हथियार’ इस्तेमाल करने का आदेश
ट्रिब्यूनल ने अपने फैसले में लिखा कि हसीना ने अधिकारियों को “लेथल वेपन, ड्रोन और हेलिकॉप्टर” तक लगाने का आदेश दिया था, जिससे नुकसान बढ़ा। कई घायल छात्रों को अस्पताल पहुंचाने में भी बाधाएँ डालने के आरोप प्रमाणित हुए।
अपराध को रोकने में विफलता और आदेशों का दुरुपयोग
उन्होंने विरोध बढ़ते देख भी कार्रवाई रोकने के बजाय दमन तेज करवाया अदालत के अनुसार यह “मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन” है।
संस्थानों का दुरुपयोग
फैसले में कहा गया कि सरकारी एजेंसियों का राजनीतिक दमन के लिए इस्तेमाल किया गया।
संवैधानिक पद का गलत उपयोग
प्रदर्शनकारियों को “राज्य-विरोधी” ठहराकर उनके खिलाफ कार्रवाई में तेजी लाई गई।
पहले भी मिली थी सजा… हसीना के खिलाफ पुराने मामले
जुलाई 2025 में उन्हें कोर्ट की अवमानना के मामले में भी 6 महीने की जेल हुई थी। यह फैसला उस लीक ऑडियो क्लिप पर आधारित था, जिसमें कथित तौर पर हसीना कहती सुनी गई थीं “मेरे ऊपर 227 केस हैं, इसलिए मुझे 227 लोगों को मारने का लाइसेंस है।” फॉरेंसिक जांच में क्लिप की प्रामाणिकता की पुष्टि हुई थी।
क्या हसीना अपील कर पाएंगी? क्या उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है?
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, चूंकि ट्रिब्यूनल का फैसला in absentia हुआ है, इसलिए अपील की गुंजाइश सीमित है। हसीना को अपील के लिए अदालत में स्वयं उपस्थित होना पड़ेगा। बांग्लादेश की सरकार भारत से उनका प्रत्यर्पण भी मांग सकती है। अगर प्रत्यर्पण मंजूर हुआ तो सज़ा तुरंत लागू की जा सकती है।
हसीना की प्रतिक्रिया: "यह राजनीतिक बदला है"
भारत में रह रहीं 76 वर्षीय शेख हसीना ने इंडिया टुडे और अन्य चैनलों को प्रतिक्रिया देते हुए कहा:
“मुझे निष्पक्ष मुकदमे का अवसर नहीं दिया गया।”
“यह सत्ता में बैठे अस्थिर और गैर-निर्वाचित लोगों की साजिश है।”
“यह फैसला राजनीतिक रूप से प्रेरित है, न्याय नहीं।”
उनके बेटे सजीब वाज़ेद ने कहा “अगर हमारी पार्टी अवामी लीग पर लगे प्रतिबंध नहीं हटे, तो हम 2026 के चुनाव का बहिष्कार करेंगे।”
देश में तनाव क्यों बढ़ा? सड़कें क्यों बंद?
फैसले के बाद पूरे ढाका में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है:
• भारी पुलिस तैनाती
• पानी की बौछार वाली गाड़ियाँ
• अर्धसैनिक बल
• कई जगह बैरिकेडिंग और चेकपॉइंट
ट्रिब्यूनल परिसर के बाहर तनाव बढ़ गया है, कई जगह छोटी-मोटी झड़पें और विरोध प्रदर्शन हुए हैं। हसीना समर्थकों ने बंद और हड़ताल की धमकी दी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: क्या दक्षिण एशिया में अस्थिरता बढ़ेगी?
कई मानवाधिकार संगठनों ने इस मामले पर चिंता जताई है, इन-एब्सेंटिया ट्रायल वकील चुनने की सीमित आज़ादी, कानूनों में बदलाव कर मुकदमा चलाना, दूसरी ओर, कुछ अंतरराष्ट्रीय संस्थान इसे “पीड़ित परिवारों के लिए न्याय” बताते हैं।
भारत के लिए भी यह फैसला संवेदनशील है क्योंकि हसीना भारत में रह रही हैं, ढाका ने भारत से “हसीना की राजनीतिक गतिविधियों को सीमित करने” की मांग की है, इससे दोनों देशों के रिश्तों पर असर पड़ सकता है।
2024–2025 की पूरी घटनाक्रम टाइमलाइन (संक्षेप में)
• जून 2024: छात्र आंदोलन शुरू
• जुलाई 2024: पुलिस फायरिंग में हिंसा बढ़ी
• अगस्त 2024: हसीना सरकार पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप
• जनवरी 2025: हसीना बांग्लादेश छोड़कर भारत आईं
• जुलाई 2025: कोर्ट अवमानना में सजा
• अक्टूबर 2025: ट्रिब्यूनल की सुनवाई तेज
• नवंबर 2025: 453-पेज के फैसले में मौत की सजा
इस फैसले का महत्व, क्यों इसे ऐतिहासिक कहा जा रहा है?
बांग्लादेश के इतिहास में पहली बार किसी पूर्व प्रधानमंत्री को मौत की सजा, छात्र आंदोलन को “राष्ट्रीय त्रासदी” माना गया, इस फैसले से देश की राजनीति दो धड़ों में बंट गई है, यह दक्षिण एशिया में आने वाले वर्षों का राजनीतिक भविष्य बदल सकता है।