शाहरुख़ का करियर का पहला नेशनल अवॉर्ड:
71वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख़ खान को पहली बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड उनकी फिल्म जवान के लिए मिला। खास बात यह रही कि यह सम्मान उन्होंने विक्रांत मैसी (12th Fail) के साथ साझा किया।
यह शाहरुख़ के लिए बेहद अहम पल था क्योंकि तीन दशकों से अधिक लंबे करियर में उन्होंने पहली बार यह प्रतिष्ठित सम्मान हासिल किया। सोशल मीडिया पर फैंस ने इसे “देर से मिला हुआ न्याय” बताया और लिखा कि “किंग खान को यह अवॉर्ड सालों पहले मिलना चाहिए था।”
रानी मुखर्जी का भी चमका सितारा:
बेस्ट एक्ट्रेस का पुरस्कार रानी मुखर्जी को उनकी फिल्म Mrs Chatterjee vs Norway के लिए मिला। यह फिल्म एक सच्ची घटना पर आधारित है जिसमें एक मां अपने बच्चों के हक़ के लिए विदेशी सिस्टम से लड़ती है। रानी ने इस किरदार को अपने करियर का सबसे भावनात्मक अनुभव बताया।
कलाकारों की प्रतिक्रियाएँ:
शाहरुख़ खान: “33 सालों की मेहनत का यह फल है। यह अवॉर्ड मेरी टीम और मेरे दर्शकों का है।”
रानी मुखर्जी: “यह भूमिका मेरे दिल के बेहद करीब है। इस सम्मान से मुझे और हिम्मत मिली है।”
विक्रांत मैसी: “12th Fail हर उस युवा की कहानी है जो संघर्ष के बाद सफलता पाता है। यह अवॉर्ड उन्हें समर्पित है।”
नए विवादों की गूंज:
1. Urvashi की नाराज़गी:
मलयालम अभिनेत्री Urvashi को Ullozhukku में बेहतरीन काम के लिए ‘सपोर्टिंग एक्ट्रेस’ कैटेगरी में रखा गया। उन्होंने कहा“ये पेंशन का पैसा नहीं है कि जो मिला ले लिया जाए। मैंने लीड रोल किया है, तो मुझे सपोर्टिंग कैसे कहा जा सकता है?”
2. The Kerala Story पर राजनीति:
केरल के मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन ने बेस्ट सिनेमैटोग्राफी का अवॉर्ड The Kerala Story को दिए जाने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि इस फिल्म का संदेश विवादास्पद है और इसे सम्मानित करना सही नहीं।
3. शाहरुख़ की फिल्म पर बहस:
कुछ समीक्षकों ने सवाल उठाए कि जवान जैसी व्यावसायिक फिल्म के लिए बेस्ट एक्टर देना क्या सही है। जबकि दूसरी ओर, कई आलोचक मानते हैं कि फिल्म में शाहरुख़ ने “स्टार और एक्टर दोनों को बराबरी से जिया” और यही इस अवॉर्ड का हक़दार बनाता है।
पुराने विवाद और बहिष्कार:
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों के इतिहास में विवादों की परंपरा पुरानी रही है।
•2015: 24 फिल्मकारों ने पुरस्कार लौटाकर सरकार के खिलाफ असहिष्णु माहौल (Intolerance Row) का विरोध किया।
•2018: 65वें नेशनल अवॉर्ड समारोह में 60 से अधिक विजेताओं ने हिस्सा नहीं लिया क्योंकि राष्ट्रपति ने केवल चुनिंदा पुरस्कार खुद दिए और बाकी मंत्री द्वारा प्रस्तुत किए गए। कलाकारों ने इसे “सम्मान का अपमान” बताया।
सिनेमा बनाम राजनीति: अवॉर्ड्स पर उठते सवाल!
भारतीय सिनेमा में अवॉर्ड्स केवल कला और प्रतिभा का आकलन नहीं बल्कि राजनीति और सत्ता के एजेंडे से भी जुड़े रहे हैं।
कुछ बार पुरस्कारों को राजनीतिक विचारधारा के अनुरूप बांटे जाने के आरोप लगे।
क्षेत्रीय सिनेमा के कलाकारों का कहना है कि बॉलीवुड की चमक के बीच उनका योगदान अक्सर “सपोर्टिंग” कैटेगरी तक सीमित कर दिया जाता है।
वहीं बड़े सितारों को देर से सही लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलना यह भी दर्शाता है कि लोकप्रिय सिनेमा और गंभीर सिनेमा के बीच की दीवार धीरे-धीरे टूट रही है।
निष्कर्ष:
शाहरुख़ खान, रानी मुखर्जी और विक्रांत मैसी की जीत भारतीय सिनेमा के लिए एक भावनात्मक और ऐतिहासिक पल है। लेकिन अधिकतम प्रयास यही रहे कि राष्ट्रीय पुरस्कार; न्यायसंगत हो पारदर्शी हो और राजनीतिक प्रभाव से परे हो ताकि प्रश्नगत कम, आम सहमति और शुचिता से ओतप्रोत ज्यादा रहें।