राजस्थान के सरकारी स्कूलों के शैक्षणिक सत्र में बड़े बदलाव की तैयारी!: अब जुलाई नहीं, इस महीने से होगा सत्र शुरू...जानें इस बदलाव के पीछे की वजह और मौजूदा चुनौतियाँ
राजस्थान के सरकारी स्कूलों के शैक्षणिक सत्र में बड़े बदलाव की तैयारी!

जयपुर : राजस्थान में सरकारी स्कूलों के शैक्षणिक सत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव की तैयारी हो रही है। शिक्षा विभाग ने सरकारी स्कूलों का सत्र जुलाई के बजाय 1 अप्रैल से शुरू करने पर विचार शुरू कर दिया है। इसका मकसद निजी स्कूलों के साथ कदमताल करना और छात्रों के कोर्स को समय पर पूरा कराना बताया जा रहा है।

क्यों हो रहा है यह बदलाव? सरकार की ये हैं मजबूरियां -

आपको बता दें कि सूत्रों के मुताबिक, यह कदम मुख्य रूप से निजी स्कूलों के साथ प्रतिस्पर्धा में टिके रहने के लिए उठाया जा रहा है। फिलहाल, राजस्थान में निजी स्कूलों का सत्र अप्रैल में शुरू हो जाता है, जबकि सरकारी स्कूलों में मार्च में परीक्षाएं खत्म होने के बाद जुलाई तक का लंबा गैप रहता है। इस लंबे अंतराल का फायदा निजी स्कूल उठाते हैं और कई बच्चों को सरकारी स्कूलों से खींचकर अपने यहां दाखिला दिला लेते हैं। नए सिस्टम में सत्र पहले शुरू होने से यह 'एडमिशन वार' कम होने और सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या स्थिर रखने की उम्मीद है।

क्या है पूरी एक्शन प्लान? यहां समझें बिंदुवार -

गौरतलब है कि शिक्षा विभाग के सचिव कृष्ण कुणाल की अगुआई में हुई एक हालिया बैठक में इस बदलाव की रूपरेखा तैयार की गई। बैठक में कई अहम फैसले हुए:

नया शैक्षणिक कैलेंडर: शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत अप्रैल से करने के लिए शिविरा पंचांग में बदलाव पर चर्चा हुई।
कोर्स पूरा करने का लक्ष्य: सुझाव दिया गया कि 15 अप्रैल से 1 मई के बीच कम से कम 20% कोर्स पूरा कर लिया जाए, बशर्ते किताबों की आपूर्ति समय पर हो सके।
सीबीएसई के साथ तालमेल: राज्य बोर्ड की परीक्षा समय-सारणी को सीबीएसई के साथ सिंक्रोनाइज करने का प्रस्ताव है। इसके लिए इंटरनल असेसमेंट घटाने और सभी विषयों की परीक्षाएं 15 मार्च तक खत्म करने जैसे उपायों पर विचार हो रहा है।

बड़ी चुनौतियां: किताबों का संकट और बजट की दिक्कत -

गौरतलब है कि हालांकि, यह रास्ता आसान नहीं है। इस प्रस्ताव के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं:

  1. किताबों का संकट: राजस्थान के सरकारी स्कूलों में नई किताबों और कॉपियों की प्रिंटिंग का काम अभी जुलाई तक चलता है। अप्रैल तक सभी किताबें उपलब्ध करवाना एक बहुत बड़ा लॉजिस्टिक चैलेंज होगा।

  2. बजट की समस्या: इतनी बड़ी संख्या में किताबें पहले प्रिंट करवाने के लिए बजट भी पहले चाहिए। यह फंड केंद्र सरकार के समग्र शिक्षा अभियान से आता है। राज्य सरकार को केंद्र से अग्रिम रूप से बजट जारी करने की मांग करनी होगी।

  3. ग्रामीण वास्तविकता: शिक्षक संगठनों का कहना है कि अधिकांश ग्रामीण इलाकों के छात्र जुलाई से पहले स्कूल नहीं आते। गर्मी की छुट्टियों और कृषि कार्यों में परिवार की मदद करने जैसे कारणों से अप्रैल में स्कूल शुरू करना व्यावहारिक नहीं लगता।

अतीत में विफल रहे हैं प्रयास, शिक्षक संगठन संशय में -

आपको बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब ऐसे बदलाव की कोशिश की जा रही है। आल राजस्थान स्कूल शिक्षक संघ के अध्यक्ष रामकृष्ण अग्रवाल ने बताया कि "पूर्व में भी यह प्रयास हुए लेकिन सफल नहीं हुए।" पूर्व शिक्षक प्रकाश मिश्रा जैसे विशेषज्ञों का मानना है कि बिना ठोस बुनियादी ढांचा और तैयारी के यह योजना जमीन पर उतर पाना मुश्किल है।

साफ है कि राजस्थान सरकार सरकारी शिक्षा व्यवस्था में बड़े सुधार की इच्छुक है। अप्रैल में सत्र शुरू करना एक साहसिक कदम है जिससे छात्रों को फायदा हो सकता है। लेकिन, किताबों की सप्लाई, बजट और ग्रामीण सामाजिक ढांचे जैसी चुनौतियों पर काबू पाए बिना यह प्रस्ताव सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह सकता है। पूरा राज्य देख रहा है कि क्या इस बार शिक्षा विभाग इतिहास रचने में सफल हो पाएगा, या फिर यह योजना भी पुराने फाइलों का हिस्सा बनकर रह जाएगी।

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