नई दिल्ली: तिहाड़ और मंडोली जेल से जुड़ा एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने जेल प्रशासन और अदालत की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। गैंगरेप जैसे गंभीर मामले में कोर्ट से जमानत पाने वाले आरोपी की जगह गलती से दूसरे आरोपी को रिहा कर दिया गया। यह गड़बड़ी न केवल न्याय व्यवस्था की कार्यकुशलता पर सवाल खड़े करती है, बल्कि समाज में अपराध और सजा की अवधारणाओं को भी हिला कर रख देती है।
कैसे हुआ खुलासा?
आपको बता दें कि यह मामला कड़कड़डूमा कोर्ट का है। गैंगरेप केस में आरोपी बंटी उर्फ दशरथ सिंह को अदालत ने सशर्त जमानत दी थी, लेकिन जेल प्रशासन ने गलती से रमेश कुमार नामक दूसरे आरोपी को रिहा कर दिया, जो उसी केस में सह-अभियुक्त है। ये वही रमेश है जिस पर पीड़िता के साथ गैस एजेंसी के कमरे में बलात्कार का आरोप है। आरोप है कि बंटी ने ही महिला को गैस सिलेंडर देने के बहाने वहां बुलाया था और बाहर से कुंडी लगाकर उसे फंसा दिया।
अदालत के आदेश पर जब बंटी की रिहाई होनी थी, मंडोली जेल से गलती से रमेश कुमार को छोड़ दिया गया। जब अदालत को इस गलती का पता चला, तो उसने तुरंत रमेश को सरेंडर करने का आदेश दिया, लेकिन आरोपी रमेश अब तक फरार है। वहीं बंटी अभी तक जेल से बाहर नहीं निकल पाया है।
कैसे फैली यह चूक?
गौरतलब है कि तिहाड़ प्रशासन की गलती का सिलसिला यहीं नहीं थमा। जेल नंबर 8 से एक और चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां एक अंडरट्रायल कैदी तीन मामलों में बंद था। दो मामलों में उसे पहले ही जमानत मिल चुकी थी, लेकिन तीसरे मामले में उसकी बेल कैंसिल हो चुकी थी। बावजूद इसके जेल प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं मिली और आरोपी जेल से रिहा हो गया।
बाद में जब अदालती दस्तावेजों की दोबारा जांच हुई, तब इस गंभीर लापरवाही का खुलासा हुआ। हालांकि जेल अधिकारियों ने खुद इस गलती की जानकारी अदालत को दी, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी आरोपी फिर से फरार हो चुका था।
कहीं बेल तो कहीं जेल... लेकिन कैसे?
ऐसे में ये सवाल उठता है कि जेल की दीवारों के पीछे बेल का ऑर्डर कौन देख रहा है?
बेल की प्रक्रिया कोर्ट से निकलती है, लेकिन उसका पालन जेल करता है। जब बेल ऑर्डर के अमल में ही लापरवाही हो जाए तो यह सिस्टम की सबसे कमजोर कड़ी बन जाती है।
क्या यह सिर्फ लापरवाही है या अंदरूनी मिलीभगत?
गौरतलब है कि विशेषज्ञों का कहना है कि इस स्तर की चूक सिर्फ “गलती” नहीं हो सकती, जांच होनी चाहिए कि कहीं किसी जानबूझकर की गई अदला-बदली के पीछे कोई मंशा तो नहीं?
फरार आरोपी की जिम्मेदारी कौन लेगा?
आपको बता दें कि ऐसे परिस्थिति में सवाल उठता है कि अदालत द्वारा रिहा किया गया कैदी तो जेल में है, लेकिन जिसे गलती से छोड़ा गया वह अब फरार है। क्या इसका खामियाजा एक बार फिर जनता को भुगतना होगा?
क्या बोले जेल और कोर्ट अधिकारी?
प्रशासन ने फिलहाल इसे मानव त्रुटि बताया है और कहा है कि संबंधित अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा गया है। वहीं अदालत ने इस मामले को गंभीर मानते हुए सभी जेलों को बेल ऑर्डर के क्रॉस-वेरिफिकेशन का आदेश दिया है ताकि आगे ऐसी घटना दोहराई न जाए।
यह है प्रशासन का बड़ा 'सिस्टम फेलियर':
गैंगरेप जैसे संगीन अपराध में आरोपी को कोर्ट से पहले ही रिहा कर देना, या बेल कैंसिल होने के बावजूद आरोपी का जेल से छूट जाना, यह कोई छोटी चूक नहीं, बल्कि गंभीर प्रशासनिक असफलता है। अगर आरोपी सरेंडर नहीं करता है, तो इसका मतलब सिर्फ एक ही है — सिस्टम को गुमराह कर के कानून के शिकंजे से बाहर निकलने की एक और कामयाब कोशिश।
अब देखना यह है कि क्या कोर्ट और सरकार ऐसे मामलों पर कठोर कदम उठाएगी या यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा?