राजस्थान में तकनीक ने बचाया सरकारी खजाना, मनरेगा अटेंडेंस के नाम पर करीब 1200 करोड़ के फर्जीवाड़े का ऐसे हुआ पर्दाफाश!: इतनी हाजिरी संदिग्ध, 5000 कर्मचारी घेरे में...जानें क्या है मनरेगा और कैसे खेला गया ये पूरा खेल
राजस्थान में तकनीक ने बचाया सरकारी खजाना, मनरेगा अटेंडेंस के नाम पर करीब 1200 करोड़ के फर्जीवाड़े का ऐसे हुआ पर्दाफाश!

जयपुर: राजस्थान में मनरेगा योजना के तहत 1200 करोड़ रुपये के फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। श्रमिकों की उपस्थिति दर्ज कराने के नाम पर मेट (कार्यस्थल प्रभारी) और संबंधित कर्मचारी बड़ी चालाकी से सरकारी खजाने को चूना लगा रहे थे। लेकिन तकनीकी निगरानी और डिजिटल फोटो विश्लेषण ने इस गड़बड़ी को पकड़ लिया। अब तक 1700 मेट ब्लैकलिस्ट और इसके साथ ही 5000 से ज्यादा कर्मचारियों को नोटिस जारी कर दिया गया हैं।

कैसे किया गया फर्जीवाड़ा?

गौरतलब है कि मनरेगा (MGNREGA) में मेट की जिम्मेदारी होती है कि वे श्रमिकों को काम दिलाएं, उनकी अटेंडेंस लगाएं और मजदूरी सुनिश्चित करें। लेकिन कई मेट और कर्मचारी मिलकर भ्रष्टाचार कर रहे थे:

 1. फर्जी फोटो से उपस्थिति:  सिर्फ 1-2 मजदूरों को काम पर बुलाते और उनकी फोटो लेकर उसे कई बार इस्तेमाल करते।इसके बाद मस्टररोल (Attendance Register) में 10-20 मजदूरों की उपस्थिति दर्ज कर दी जाती थी।

 2. एक ही फोटो का बार-बार इस्तेमाल: एक ही फोटो को अलग-अलग तारीखों या मस्टररोल में अपलोड कर दिया जाता था। जिससे दिखता कि अलग-अलग दिन काम हो रहा है, जबकि वास्तव ऐसा नही था।

3. सुबह और दोपहर के फोटो में अंतर:
– सुबह के फोटो में कुछ मजदूर दिखते, लेकिन दोपहर बाद गायब। फिर भी पूरी उपस्थिति दर्ज।

4. दूसरे मोबाइल की फोटो अपलोड: किसी और के मोबाइल की फोटो को स्क्रीन पर दिखाकर उससे फोटो लेकर अपलोड कर देते।

कैसे हुआ भंडाफोड़?

आपको बता दे कि NMMS (National Mobile Monitoring System) नामक तकनीक ने यह फर्जीवाड़ा पकड़ने में अहम भूमिका निभाई। अक्टूबर 2024 से विभाग ने फोटो अपलोडिंग का डिजिटल विश्लेषण (Image Analytics) शुरू किया। पाया गया कि एक ही लोकेशन, एक जैसे फोटो, दोहराव, और फोटो में मजदूरों की गिनती की तुलना मस्टररोल से की गई। उसके बाद AI आधारित विश्लेषण से शक वाले मामलों को ऑडिट किया गया और गड़बड़ी सामने आई।

कितना नुकसान रोका गया?

आपको बता दे कि वर्ष 2023-24 में 3751 लाख मानव दिवसों का भुगतान हुआ था, वहीं वर्ष 2024-25 में यह घटकर 3155 लाख रह गया – यानी 5.85 करोड़ मानव दिवस का फर्जीवाड़ा टला। इसके साथ ही प्रति मानव दिवस 281 रुपए के हिसाब से लगभग 1200 करोड़ रुपए की बचत हुई।

कुछ उदाहरण देखें:

 श्रीगंगानगर (16एस पंचायत): फोटो में सिर्फ 1 श्रमिक था, लेकिन अटेंडेंस में 8 दिखाए गए।

 जैसलमेर : एक ही फोटो दो बार अलग-अलग मस्टररोल में अपलोड कर 10-10 मजदूर दिखाए गए।

 उदयपुर (घाटा पंचायत): दूसरे मोबाइल से स्क्रीन की फोटो लेकर अपलोड की गई।

सरकार ने क्या कदम उठाए?

गौरतलब है कि विभाग द्वारा भविष्य में फेशियल रिकग्निशन तकनीक और GPS आधारित ट्रैकिंग की योजना है। वहीं मेट की भूमिका की समीक्षा और जिम्मेदारों पर सख्त कार्यवाही की जा रही है। इसके साथ ही NMMS का उपयोग और कठोर बनाया जा रहा है।

बिलकुल, यहां मनरेगा (MGNREGA) के बारे में एक छोटा और सटीक परिचय दिया गया है, जिसे आप न्यूज़ में शामिल कर सकते हैं:

मनरेगा क्या है?

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) भारत सरकार की एक प्रमुख योजना है, जिसे 2005 में लागू किया गया था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हर परिवार को साल में 100 दिनों का रोज़गार गारंटी के साथ देना है। इसमें मज़दूरों को पंचायत स्तर पर काम (जैसे तालाब खुदाई, सड़क मरम्मत, वृक्षारोपण आदि) दिया जाता है। यह योजना ग्रामीण आजीविका और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए शुरू की गई थी।यह घोटाला सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, बल्कि गरीब श्रमिकों के अधिकारों का हनन भी है। तकनीक ने इस बार बड़ी चतुराई से पकड़ा, लेकिन यह साफ करता है कि ग्रामीण विकास योजनाओं में निगरानी और पारदर्शिता बेहद जरूरी है।

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