मथुरा/वृंदावन: जहां एक ओर यूपी सरकार मथुरा के ऐतिहासिक बांके बिहारी मंदिर के आसपास 500 करोड़ की लागत से भव्य कॉरिडोर बनाने को लेकर पूरी ताकत से आगे बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर गोस्वामी परिवार इसे अपनी आस्था, परंपरा और अधिकारों पर हमला बता रहा है। एक ओर सरकार की दलील है कि “श्रद्धालुओं की सुविधा और सुरक्षा सर्वोपरि”, दूसरी ओर सेवायतों की पुकार है कि “ठाकुरजी हमें दे दो, मंदिर भी ले लो, पैसा भी!” अब यह टकराव आस्था, परंपरा, राजनीति और प्रशासनिक संकल्प का रूप ले चुका है।
क्या है असल टकराव? :
आपको बता दें कि धर्मार्थ कार्य विभाग का दावा है कि गोस्वामी परिवार सिर्फ सेवायत नहीं, बल्कि दान-पैसे के नियंत्रण की चिंता कर रहा है। मंदिर में हर महीने करोड़ों की चढ़ावे की राशि आती है। कॉरिडोर बनने से यह राशि सीधे स्वामी हरिदास ट्रस्ट के अधिकार में आ जाएगी, जिससे कुछ सेवायत परिवारों का प्रभाव घटेगा। विभाग साफ कह चुका है – “मंदिर लाखों श्रद्धालुओं का है, किसी खास परिवार का नहीं!”
क्या होगा कॉरिडोर में? :
विदित है कि 500 करोड़ से ज्यादा की लागत से कॉरिडोर तैयार होगा।साथ ही कुंज गलियों को यथासंभव संरक्षित रखने का दावा किया गया है। 22 गलियों के मुख्य रास्ते से मंदिर तक कॉरिडोर पहुँचेगा। यह कॉरिडोर कोर्ट की हरी झंडी मिलते ही 2-3 साल में बनकर तैयार हो जाएगा।
सरकार का पक्ष :
आपको बता दें कि धर्मार्थ कार्य विभाग के अफसरों के मुताबिक काशी विश्वनाथ और विंध्यवासिनी धाम कॉरिडोर की तरह बांके बिहारी कॉरिडोर से भी क्षेत्र का कायाकल्प होगा। दर्शन दिव्य और इंतजाम भव्य होंगें। भीड़ के दौरान मौतें रुकेंगी। उनका कहना है कि सेवादारों को हटाया नहीं जाएगा, यह अफवाह है। बल्कि सभी के अधिकार और कामकाज विधेयक में सुरक्षित रहेंगे।
गोस्वामी परिवार का क्या है कहना :
आपको बता दें कि वरिष्ठ सेवायत गोपी गोस्वामी ने कहा कि : "हमारा दान से कोई लेना-देना नहीं। 1939 से स्कीम बनी है, पैसा सीधा बैंक जाता है। हम पर कोई आरोप नहीं, लेकिन सरकार मंदिर और ठाकुरजी को भी लेना चाहती है। सारा पैसा ले लो, मंदिर भी ले लो, बस ठाकुरजी हमें दे दो। हम लेकर चले जाएंगे।” उनका दावा है कि 350 करोड़ की FD मंदिर की है, जो हम इकट्ठा करते आए हैं। मंदिर 180 साल पुराना है, भावनाओं से जुड़ा है, इसे कोई कॉरिडोर निगल नहीं सकता।
कोर्ट में अब क्या? :
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में 29 जुलाई को रिव्यू पिटीशन की सुनवाई होगी। सरकार मानसून सत्र में इस पर विधेयक भी लाएगी। नियमावली बनेगी, जिसमें सेवायतों, ट्रस्ट और धर्मार्थ विभाग के बीच कार्य-विभाजन होगा।
प्रधानमंत्री का संकेत और विधायक की मंशा पहले से ही :
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नवंबर 2023 में पीएम मोदी ने कहा था कि : "अयोध्या का लोकार्पण हो गया, मथुरा अब दूर नहीं!” वहीं भाजपा विधायक श्रीकांत शर्मा ने मांग की थी कि मदन मोहन मंदिर से केसी घाट तक बड़ा कॉरिडोर बने, जिससे पुरातन गलियों की शान बची रहे। पर सरकार ने सिर्फ बांके बिहारी के आस-पास ही कॉरिडोर का फैसला लिया है।
मंदिर से आस्था जुड़ी है, लेकिन भीड़ में जान का जोखिम भी है। बांके बिहारी कॉरिडोर सरकार की दृष्टि में श्रद्धालुओं की सुरक्षा और विकास का संकल्प है, तो सेवायतों के लिए यह भावनात्मक विरासत की दीवार पर हथौड़ा है। अब फैसला सुप्रीम कोर्ट और मानसून सत्र में होगा कि क्या मथुरा को एक नया धाम मिलेगा या ठाकुरजी के नाम पर उठे सवालों में विकास की गति उलझ जाएगी?