शनि जयंती: हिंदू धर्म में शनिवार का दिन भगवान् शनिदेव के लिए समर्पित माना गया है। इसलिए यह दिन उनकी कृपा प्राप्ति के लिए भी सबसे उत्तम माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार शनि देव सूर्य के पुत्र हैं तथा उन्हें “न्याय का देवता” कहा जाता है। इसके साथ ही वह “कर्मफल दाता” भी कहलाते हैं क्योंकि वह सभी को उनके कर्मों के मुताबिक ही फल देते हैं।
गौरतलब है कि शनिदेव, जिन्हें न्याय का देवता तथा कर्मफल दाता माना जाता है, उन्हें हिंदू धर्म में “छाया पुत्र” के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। दरअसल उनकी कृपा एवं प्रकोप दोनों ही व्यक्ति के जीवन को काफी गहराई से प्रभावित करते हैं। इसलिए शनिदेव के प्रति भक्तों के लिए आस्था रखना बेहद खास हो जाता है।
शनिदेव के भक्तो के लिए बेहद खास होता है शनिवार का दिन:
दरअसल ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को कर्मफल दाता कहा गया है। वहीं शनिदेव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूर्ण होती है। साथ ही उसका करियर एवं कारोबार में मनमुताबिक सफलता भी मिलती है। शनि जयंती पर न्याय के देवता की पूरे भक्ति भाव से पूजा की जाती है। साथ ही दान-पुण्य भी किया जाता है और इस शुभ अवसर पर मंदिरों में शनिदेव की विशेष पूजा भी की जाती है।
आपको बता दें कि ज्योतिष शास्त्र में भी शनि ग्रह एक बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है। गौरतलब है कि जो लोग शनि दोष से पीड़ित होते हैं, उनके लिए यह शनिवार का दिन बेहद खास माना जाता है। इसलिए आपको इस दिन पर कुछ खास बातों का ख्याल अवश्य रखना चाहिए, ताकि आपको किसी भी प्रकार का कोई कष्ट न झेलना पड़े।
शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाना माना जाता है शुभ:
गौरतलब है कि आपको शनिवार के दिन भगवान शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए, क्योंकि इससे शनिदेव खुश होकर अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। साथ ही ऐसे कई काम हैं जो हमें शनिवार को नहीं करने चाहिए, अन्यथा इससे शनिदेव हमसे नाराज भी हो सकते हैं।
इसलिए शनिदेव को खुश करने एवं उनकी नकारात्मक दृष्टि से बचने के लिए कई तरह के उपाय किए जाते हैं, जिनमें से एक प्रमुख उपाय के रूप में माना जाता है, उन्हें सरसों का तेल अर्पित करना है। तो आइए जानते हैं कि आखिर दंडनायक शनि को सरसों का तेल क्यों चढ़ाया जाता है?
सरसों का तेल चढ़ाने के पीछे की क्या है वजह?
दरअसल ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्री राम की सेना लंका तक जाने के लिए पुल बना रही थी, तब भगवान हनुमान जी पुल की सुरक्षा का कार्यभार संभाल रहे थे। और इसी दौरान शनिदेव हनुमान जी के बल एवं कीर्ति से प्रभावित होकर उनसे युद्ध करने के लिए आए थे। हालांकि हनुमान जी भगवान राम की भक्ति में लीन थे तथा उन्होंने शनिदेव को समझाने का प्रयास किया, लेकिन शनिदेव उनसे युद्ध करने पर अड़े रहे।
इसके पश्चात हनुमान जी तथा शनिदेव के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें हनुमान जी के द्वारा शनिदेव को पराजित कर दिया गया था। युद्ध में घायल होने के कारण शनिदेव को असहनीय पीड़ा भी हो रही थी। तब हनुमान जी के द्वारा उनकी पीड़ा कम करने के लिए उनके शरीर पर सरसों का तेल लगाया गया था। सरसों के तेल की तासीर गर्म होती है, इससे शनिदेव को काफी आराम मिला तथा उनकी पीड़ा भी शांत हुई।
इस प्रकार इस घटना के पश्चात शनिदेव के द्वारा यह कहा गया कि ''जो भी भक्त उन्हें भक्ति भाव के साथ में सरसों का तेल अर्पित करेगा, उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और उनकी कृपा उस पर हमेशा बनी रहेगी। तभी से शनिदेव को सरसों का तेल चढ़ाए जाने की परंपरा शुरू हुई थी।
आइए अब जानते हैं कि शनिवार के दिन हमें कौन-से काम नहीं करने चाहिए:
1)इन दिशाओं में यात्रा करने से बचना चाहिए:
दरअसल शनिवार के दिन जितना हो सके पूर्व, दक्षिण अथवा फिर ईशान दिशा (उत्तर-पूर्व दिशा) में हमें यात्रा करने से बिल्कुल बचना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि इससे आपके जीवन की परेशानियां काफी बढ़ सकती हैं। वहीं अगर यात्रा करना जरूरी है, तो ऐसे में सबसे पहले 5 कदम उल्टे चलें, उसके बाद ही अपनी यात्रा शुरू करें।
2)मांस, मदिरा का सेवन करने से बचना चाहिए:
इसी प्रकार शनिवार के दिन मांस-मदिरा आदि का सेवन करने से भी बहुत दूर रहना चाहिए, वरना आपको न्याय के देवता की नाराजगी भी झेलनी पड़ सकती है। जिससे आपके जीवन में मुसीबत बढ़ने लगती हैं। इसी क्रम में इस दिन आपको किसी प्रकार का झूठ भी नहीं बोलना चाहिए। इससे भी न्याय के देवता आपसे नाराज हो जाते हैं।
3)जीव को परेशान और बाल, नाखून काटने से बचना चाहिए:*
वहीं शनिवार के दिन अपने बाल तथा नाखून काटना भी शुभ नहीं माना जाता है। दरअसल शनिवार के दिन अथवा किसी और दिन भी कमजोर, असहाय व्यक्ति, महिला अथवा फिर किसी जीव को परेशान नहीं करें और न ही उनका अपमान करें। ऐसा करने से भी आपको शनिदेव का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इससे आपको जीवन में अशुभ परिणाम मिलने लगते हैं। जिससे आप काफी परेशान हो सकते हैं।
4)शनिवार के दिन बिल्कुल भी नहीं खरीदें ये चीजें:
इसी क्यों में शनिवार के दिन आपको कुछ चीजों को खरीदने की भी मनाही होती है जैसे नमक, लोहे से बनी चीजें तथा चमड़ा, जूते समेत काले तिल, काली उड़द , झाड़ू, तेल एवं लकड़ी से बनी चीजें आदि। साथ ही शनि देव को सरसों का तेल जरूरी रूप से चढ़ाया जाना चाहिए, लेकिन शनिवार के दिन इन वस्तुओं का खरीदना बिल्कुल भी शुभ नहीं माना जाता है।
साल के ज्येष्ठ माह की अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है शनि जयंती:
आपको बता दें की हर साल ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि पर ही शनि जयंती मनाई जाती है। इस दिन न्याय के देवता शनिदेव की विधि विधान पूर्वक पूजा की जाती है। इसके साथ ही मनचाहा वरदान पाने के लिए शनिदेव के लिए निमित्त व्रत भी रखा जाता है। दक्षिण भारत में तो यह पर्व वैशाख अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है।
सनातन शास्त्रों में निहित है कि ज्येष्ठ महीने की अमावस्या ही तिथि पर सूर्य देव के पुत्र शनिदेव का जन्म हुआ था। इस शुभ अवसर पर हर वर्ष ज्येष्ठ महीने में शनि जयंती मनाई जाती है। अतः शनिदेव की पूजा-भक्ति करने से साधक को सभी क्षेत्रों में सफलता प्राप्त होती है। साथ ही आर्थिक तंगी से मुक्ति भी मिलती है।
आइए जानतें हैं शनि जयंती की सही तारीख और शुभ मुहूर्त क्या है?
दरअसल वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ महीने की अमावस्या तिथि यानि 26 मई को दोपहर 12 बजकर 11 मिनट पर शनिदेव जयंती शुरू होगी तथा अगले दिन अर्थात 27 मई की तारीख को सुबह 08 बजकर 31 मिनट पर यह समाप्त होगी। इसलिए उदया तिथि के अनुसार, 27 मई की तारीख को पूरे भक्तिभाव के साथ भगवान शनिदेव का जयंती मनाई जाएगी।
ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि पर बन रहे हैं कई योग:
आपको बता दें कि ज्येष्ठ अमावस्या की तिथि पर सुकर्मा योग का भी निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण रात 10 बजकर 54 मिनट तक हो रहा है। साथ ही सर्वार्थ सिद्धि योग का भी संयोग बन है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 05 बजकर 25 मिनट से लेकर 05 बजकर 32 मिनट तक का है।
इसके अतिरिक्त शनि जयंती पर शिववास योग भी बना हुआ है। आपको बात दें कि शिववास योग के दौरान भगवान सुबह 08 बजकर 31 मिनट तक कैलाश पर्वत पर मां गौरी के साथ में रहेंगे।
अस्वीकरण: इस लेख में बताए गए उपाय/लाभ/सलाह अथवा कथन केवल सामान्य सूचना के लिए ही हैं। NCR पत्रिका इस लेख में लिखी गई बातों का समर्थन नहीं करता है। इस लेख में निहित जानकारी को विभिन्न माध्यमों, ज्योतिषियों, पंचांग, प्रवचनों, मान्यताओं, धर्मग्रंथों तथा दंतकथाओं से संग्रहित की गई हैं। इसलिए पाठकों से अनुरोध है कि लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा बिल्कुल न मानें एवं अपने विवेक का भी उपयोग करें।