लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बिजली का निजीकरण एक बार फिर बड़ा विवाद बन गया है।
राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ ने रविवार को लखनऊ में आयोजित मंथन शिविर में सरकार के खिलाफ आर-पार की लड़ाई का बिगुल फूंक दिया। अभियंताओं ने साफ कहा - “निजीकरण किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं! जब तक प्रस्ताव वापस नहीं लिया जाता, आंदोलन जारी रहेगा।”
लेकिन इसी बीच एक बड़ा ऐलान — दिवाली पर उपभोक्ताओं को भरपूर बिजली देने का वादा भी किया गया, ताकि जनता को असुविधा न हो।
निजीकरण पर “नो कॉम्प्रोमाइज” मूड :
आपको बता दें कि मंथन शिविर में प्रदेशभर से आए अभियंताओं ने एक सुर में कहा कि बिजली व्यवस्था को निजी हाथों में देने का प्रस्ताव पूरी तरह जनविरोधी है। अभियंताओं का आरोप है कि पावर कॉर्पोरेशन उपभोक्ताओं के हितों को ताक पर रखकर निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाने की साजिश कर रहा है।
कॉर्पोरेशन पर गंभीर आरोप लगाते हुए अभियंताओं ने कहा कि - “कभी स्मार्ट मीटर के नाम पर शोषण, तो कभी निजीकरण के नाम पर कर्मचारियों की उपेक्षा, अब बर्दाश्त नहीं होगी!”
ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने बताया कि पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत निगमों के निजीकरण को लेकर कर्मचारियों को दिए गए तीनों प्रस्ताव सर्वसम्मति से खारिज कर दिए गए हैं।
अब हर जिले में गरजेगी निजीकरण के खिलाफ आवाज़ :
गौरतलब है कि अभियंता संघ ने 16 अक्तूबर को सभी जिलों में आमसभा बुलाने का ऐलान किया है। इसमें हर जिले में निजीकरण विरोधी आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी। संघ के महासचिव जितेंद्र सिंह गुर्जर, आलोक श्रीवास्तव, और जगदीश पटेल ने कहा कि, लखनऊ की बिजली व्यवस्था फ्रेंचाइजी मॉडल से चलाना जनता के साथ धोखा है। इसे हर कीमत पर रोका जाएगा।
“स्मार्ट प्रीपेड मीटर” पर भी फूटा गुस्सा :
विदित है कि सिर्फ निजीकरण ही नहीं, बल्कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने को लेकर भी पूरे प्रदेश में विरोध के सुर तेज हो गए हैं। अभियंताओं के साथ अब राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद भी मैदान में उतर आई है।
परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा कि “विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 47(5) के अनुसार उपभोक्ता को प्रीपेड या पोस्टपेड मीटर चुनने का अधिकार है। लेकिन बिजली कंपनियां जबरन प्रीपेड मीटर लगा रही हैं, जो कानून का खुला उल्लंघन है।” प्रदेश में अब तक 43.44 लाख स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जा चुके हैं, जिनमें से लगभग 20.69 लाख मीटर बिना अनुमति के प्रीपेड मोड में बदल दिए गए हैं।
दिवाली पर बिजली संकट की आशंका :
हालांकि अभियंताओं ने साफ किया है कि वे जनता को अंधेरे में नहीं छोड़ेंगे, लेकिन आंदोलन की तीव्रता देखकर यह अंदेशा जताया जा रहा है कि दिवाली पर बिजली आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। ऊर्जा विभाग की भी हालत खस्ता बताई जा रही है, एक तरफ सरकार सुधार की बात कर रही है, दूसरी ओर अभियंता संगठन आर-पार की जंग की तैयारी में हैं।
“सुधार” के नाम पर “शोषण”?
विदित है अभियंताओं का कहना है कि सरकार “विद्युत सुधार” के नाम पर निजी कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है, जबकि आम उपभोक्ता को न तो राहत मिल रही है और न ही बिलों में पारदर्शिता। प्रीपेड मीटर से उपभोक्ता के अधिकार छीने जा रहे हैं, और चेक मीटर घोटाले की जांच तक नहीं कराई जा रही।
जनता बनाम सरकार: अब सियासत में भी महसूस होगा आंदोलन :
गौरतलब बिजली कर्मचारियों के इस आंदोलन ने योगी सरकार के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। एक ओर सरकार ‘निजीकरण से दक्षता’ की बात कर रही है, तो दूसरी ओर अभियंता और उपभोक्ता संगठन ‘निजीकरण से शोषण’ का आरोप लगा रहे हैं। यदि यह विवाद जल्द नहीं सुलझा, तो दिवाली की रोशनी पर “बिजली विवाद की छाया” पड़ना तय है।
यूपी की सियासत में अब बिजली सिर्फ रोशनी का नहीं, विरोध की चिंगारी का मुद्दा बन गई है।
अभियंता मैदान में हैं, सरकार सख्त, और बीच में आम जनता जो सिर्फ यही चाहती है कि दिवाली में घर रोशन रहे, सियासत न हो।