क्या है नया फैसला?
अंतरराष्ट्रीय संबंध: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 19 सितंबर 2025 को एक प्रोक्लमेशन पर हस्ताक्षर किए हैं जिसके तहत H-1B वीज़ा आवेदन शुल्क को $100,000 प्रति वर्ष कर दिया गया है। इस फैसले का सीधा उद्देश्य अमेरिका की नौकरियों को पहले प्राथमिकता देना और विदेशी श्रमिकों की संख्या को सीमित करना बताया गया है।
अब कंपनियों को हर साल अपने H-1B कर्मचारियों के लिए इतना भारी शुल्क देना होगा। यदि भुगतान नहीं किया गया तो आवेदन अस्वीकृत कर दिया जाएगा। यह नीति खास तौर पर उन वर्कर्स पर लागू होगी जो अमेरिका के बाहर से आवेदन कर रहे हैं।
सरकारी विवरण और नई शर्तें:
• स्टेट डिपार्टमेंट और होमलैंड सिक्योरिटी को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया है कि आवेदन के समय भुगतान का प्रमाण मौजूद हो।
• यदि शुल्क का भुगतान नहीं होता है तो H-1B धारकों को अमेरिका में प्रवेश से रोका जाएगा।
• लेबर डिपार्टमेंट को prevailing wages (प्रचलित मजदूरी) बढ़ाने और अमेरिकी व विदेशी श्रमिकों को समान वेतन सुनिश्चित करने के लिए नियम बनाने होंगे।
• यह प्रावधान मुख्य रूप से नए आवेदनकर्ताओं और अमेरिका के बाहर से आने वाले H-1B वर्कर्स को प्रभावित करेगा।
भारतीय प्रोफेशनल्स पर असर:
• आंकड़ों के अनुसार H-1B वीज़ा धारकों में से करीब 71% भारतीय होते हैं।
• इतनी बड़ी फीस भारतीय IT कंपनियों (Infosys, Wipro, TCS आदि) और अमेरिकी टेक कंपनियों में काम कर रहे भारतीय प्रोफेशनल्स पर भारी बोझ साबित होगी।
• छोटे और मंझोले स्टार्टअप्स के लिए यह शुल्क लगभग असंभव होगा जिससे भारतीय प्रतिभाओं को अमेरिका में कम अवसर मिल सकते हैं।
• विशेषज्ञ मानते हैं कि इससे कंपनियाँ नौकरियों को अमेरिका की बजाय भारत जैसे देशों में "ऑफशोर" शिफ्ट कर सकती हैं।
कानूनी चुनौतियों की संभावना:
इस नीति को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं:
अधिकार क्षेत्र का विवाद: क्या राष्ट्रपति के पास इतनी बड़ी फीस तय करने का अधिकार है या इसके लिए कांग्रेस की अनुमति आवश्यक थी?
ड्यू प्रोसेस: यह फैसला अचानक लागू हुआ, जिससे मौजूदा आवेदकों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
संवैधानिक सवाल: Equal Protection और Administrative Procedure Act (APA) के तहत असमान प्रभाव का मुद्दा उठ सकता है।
आर्थिक प्रभाव: टेक्नोलॉजी कंपनियाँ तर्क दे सकती हैं कि यह नीति उनकी प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता और लागत ढांचे को नुकसान पहुँचाएगी।
भारत की प्रतिक्रिया और विशेषज्ञों की राय:
• पूर्व राजनयिक अनिल त्रिगुणायत ने इस फैसले को regressive step बताया है और कहा है कि इससे भारतीय प्रोफेशनल्स पर गहरा असर पड़ेगा।
• भारत सरकार ने कहा है कि H-1B कार्यक्रम दोनों देशों के लिए फायदेमंद है इसलिए इस मुद्दे पर अमेरिका से बातचीत ज़रूरी है।
• भारतीय IT कंपनियों के अमेरिकी ADRs में गिरावट दर्ज की गई क्योंकि निवेशकों को डर है कि बढ़ी हुई लागत कंपनियों की आमदनी पर असर डालेगी।
• विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय कंपनियों और प्रोफेशनल्स को वैकल्पिक वीज़ा मार्ग या अमेरिका के बाहर के अवसरों की तलाश करनी पड़ सकती है।
भविष्य की तस्वीर:
H-1B वीज़ा पर लगाया गया $100,000 सालाना शुल्क केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं बल्कि एक बड़ा आर्थिक और कूटनीतिक मसला है। जहाँ अमेरिका इसका औचित्य स्थानीय रोजगार को सुरक्षित करना बता रहा है वहीं यह फैसला भारतीय प्रोफेशनल्स, IT कंपनियों और स्टार्टअप्स के लिए गंभीर चिंता का कारण बन गया है।
आने वाले दिनों में इस पर कानूनी लड़ाइयाँ, भारत-अमेरिका कूटनीतिक वार्ताएँ और टेक इंडस्ट्री की नई रणनीतियाँ तय करेंगी कि यह कदम कितना लंबे समय तक प्रभावी रहेगा।