दो *नाम, दो धर्म, एक खून... : पत्रकार हत्याकांड में सगे भाई मुठभेड़ में मारे गए”
 दो *नाम, दो धर्म, एक खून...

सीतापुर/उत्तर प्रदेश:
सीतापुर में पत्रकार राघवेंद्र बाजपेई की हत्या के मामले में पुलिस ने दो मुख्य आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराया। यह कोई आम आरोपित नहीं थे — दोनों सगे भाई थे, लेकिन पहचान थी जटिल: एक का नाम संजय तिवारी उर्फ अकील, दूसरा राजू तिवारी उर्फ रिजवान। मां मुस्लिम और पिता हिंदू — इनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और दोहरी पहचान ने इस घटना को और भी चौंकाने वाला बना दिया है।

क्या है पूरा मामला?
20 जुलाई की रात पत्रकार राघवेंद्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। शुरुआती जांच में मामला व्यक्तिगत रंजिश से जुड़ा लग रहा था, लेकिन जब पुलिस ने गहराई से छानबीन की, तो नाम सामने आए संजय और राजू के।

ये दोनों भाई जिले के कुख्यात अपराधियों में गिने जाते थे। इनकी पहचान भी इलाके में दोहरी थी — हिंदू समुदाय में ‘तिवारी’ और मुस्लिम पहचान में ‘अकील/रिजवान’ के नाम से जाने जाते थे। यही पहचान बदल-बदलकर वे अपराध करते और बचते रहे।

मुठभेड़ कैसे हुई?
पुलिस के मुताबिक, मुखबिर की सूचना पर एक टीम ने उन्हें घेरने की कोशिश की। दोनों ने पुलिस पर फायरिंग की, जवाबी कार्रवाई में दोनों घायल हो गए और अस्पताल ले जाने पर मृत घोषित किए गए।

एसपी सीतापुर अंकुर अग्रवाल ने बताया:

"यह एक बहुत ही योजनाबद्ध हत्या थी। पत्रकार के पास कुछ संवेदनशील जानकारी थी जो इन अपराधियों के नेटवर्क को बेनकाब कर सकती थी। हमने तकनीकी और गुप्तचर सूचनाओं के आधार पर कार्रवाई की। दोनों के खिलाफ दर्जनों मामले पहले से दर्ज हैं।"

 परिवार की कहानी: एक कोख, दो सरनेम
इस घटना में सबसे चौंकाने वाला पहलू है इन दोनों का पारिवारिक संबंध। मां मुस्लिम, पिता हिंदू — लेकिन दोनों बेटों ने अलग-अलग धर्मों की पहचान को अपने फायदे के लिए अपनाया। कभी ‘तिवारी’ बनकर समाज में सम्मानीय बनने की कोशिश, तो कभी ‘अकील-रिजवान’ बनकर अपराध की दुनिया में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ।

स्थानीय निवासी अशोक बाजपेई बताते हैं:

"ये लड़के बचपन से ही अलग-अलग पहचान में घुल-मिलकर जीते थे। स्कूल में नाम कुछ और था, मोहल्ले में कुछ और। पुलिस को भी इनकी सही पहचान में काफी समय लगा।"

जुड़े हैं और भी नाम: 'पुजारी बाबा' की एंट्री
मामले में अब एक और नाम सामने आया — एक स्वयंभू ‘पुजारी बाबा’। सूत्रों के अनुसार, राघवेंद्र ने बाबा की अवैध गतिविधियों की जानकारी जुटाई थी, जिसे उजागर करने की तैयारी चल रही थी। इसी डर से हत्या करवाई गई।

समाज में गूंज:
इस हत्या और मुठभेड़ ने सीतापुर ही नहीं, पूरे प्रदेश में हलचल मचा दी है। एक ओर जहां पत्रकार संगठनों ने पुलिस की तत्परता की सराहना की, वहीं दूसरी ओर सवाल भी उठे हैं —
क्या अपराध की जड़ें इतने गहरे हैं कि पहचान छिपाकर अपराध करना आसान हो गया है?

निष्कर्ष:
एक मां की कोख से जन्मे दो बेटे — धर्म के नाम पर दो रास्ते, लेकिन मंज़िल एक ही: जुर्म और अंत में पुलिस की गोलियां। यह केस समाज के उस चेहरे को दिखाता है, जहाँ पहचान, धर्म और सरनेम सिर्फ औजार हैं — मकसद होता है सत्ता, दबदबा और अपराध का कारोबर।

अन्य खबरे