भारत का एक दूरदर्शी फैसला, घुटनों पर पाकिस्तान!: सिंधु जल संधि से आगे बढ़ी जंग...तुलबुल प्रोजेक्ट से उड़ी इस्लामाबाद की नींद?
भारत का एक दूरदर्शी फैसला, घुटनों पर पाकिस्तान!

 नई दिल्ली/इस्लामाबाद : भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से जारी कूटनीतिक खींचतान अब ‘पानी’ पर असली जंग का रूप लेती नजर आ रही है। भारत ने जिस सिंधु जल संधि को अप्रैल 2025 में आधिकारिक रूप से स्थगित किया था, अब उस फैसले को शब्दों से आगे बढ़ाते हुए जमीन पर 'पलटवार' शुरू कर दिया है। भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर के सोपोर में झेलम नदी पर तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट (TULBUL PROJECT) को फिर से जगाने का ऐलान कर दिया है। 1987 से अधर में लटकी यह परियोजना पाकिस्तान के लिए किसी जली हुई चिंगारी में पेट्रोल डालने जैसा असर दिखा रही है।

क्या है तुलबुल प्रोजेक्ट जो पाकिस्तान की रातों की नींद उड़ा रहा है?

आपको बता दें कि तुलबुल प्रोजेक्ट, जिसे वुलर बैराज के नाम से भी जाना जाता है, दरअसल झेलम नदी पर एक भंडारण क्षमता वाला नेविगेशन कंट्रोल स्ट्रक्चर है। इसका मुख्य उद्देश्य सर्दियों में नदी में जल प्रवाह बनाए रखना और श्रीनगर से बारामुला तक जलमार्ग परिवहन को सुलभ बनाना है।

फायदे क्या होंगे भारत को?

गौरतलब है कि श्रीनगर से बारामुला तक नेविगेशन में सुविधा होगी। हाइड्रोपावर उत्पादन की संभावनाएं होगी। स्थानीय अर्थव्यवस्था में गति मिलेगी। जिससे रणनीतिक तौर पर नियंत्रण क्षमता बढ़ेगी।

पाकिस्तान क्यों कांप रहा है?

आपको बता दें कि पाकिस्तान को डर है कि अगर भारत इस परियोजना के जरिए झेलम नदी के प्रवाह को नियंत्रित करने लगा, तो सिंधु बेसिन में पानी की कमी हो सकती है। पाकिस्तान में 90% से ज्यादा सिंचाई इसी बेसिन पर निर्भर करती है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने हाल ही में जल भंडारण बढ़ाने की अपील की है, जिसे भारत की नई नीति के डर से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल, इस्लामाबाद को यह डर सता रहा है कि अगर भारत ने “पानी के नल पर हाथ रखा”, तो पाकिस्तान की खेती-किसानी और पीने के पानी दोनों पर संकट आ सकता है।

इतिहास का सबसे लंबा पानी समझौता अब विवाद की जड़ :

गौरतलब है कि 1960 में हुई सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक ऐतिहासिक समझौता थी, जो विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी। इसके तहत भारत ने अपनी नदियों का 80% पानी पाकिस्तान को सौंप दिया, जो दुनिया में शायद ही कहीं हुआ हो। लेकिन पाकिस्तान ने बार-बार भारत के हर प्रोजेक्ट पर आपत्ति जताई, चाहे वो बगलीहार डैम हो या किशनगंगा प्रोजेक्ट। और अब तुलबुल को लेकर एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय हंगामे की भूमिका बन रही है।

भारत का तर्क: ‘हम अपने संसाधनों पर हक क्यों न जताएं?’

भारत का कहना है कि सिंधु संधि में गैर-उपभोग उद्देश्यों के लिए भंडारण और जलमार्ग का प्रावधान है। और तुलबुल प्रोजेक्ट इन्हीं दायरों में आता है। भारत अब साफ कर चुका है "अब हम नर्म नहीं पड़ेंगे"।

क्या पानी बनेगा युद्ध की वजह?

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर पाकिस्तान ने सिंधु जल पर अंतरराष्ट्रीय अदालत या संयुक्त राष्ट्र में मुद्दा उठाया, तो भारत भी अब 'सख्त जवाबी नीति' पर काम करेगा। हालात इस दिशा में बढ़ रहे हैं, जहां पानी अब कूटनीति से ज्यादा सामरिक हथियार बनता जा रहा है।

शहबाज का डर अब हकीकत बनने के करीब है। भारत ने यह साफ कर दिया है कि अब वह ‘संधि की लाचार भावना’ से नहीं, बल्कि ‘सुरक्षा और हितों की स्पष्ट रणनीति’ से फैसले लेगा। तुलबुल प्रोजेक्ट सिर्फ एक परियोजना नहीं, बल्कि संदेश है कि अब जो होगा, वो भारत के हिसाब से होगा।

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