मेरठ: सेंट्रल मार्केट में बुलडोजर की बेरहमी
मेरठ के सेंट्रल मार्केट में रविवार को लगातार दूसरे दिन प्रशासन का बुलडोजर बेरहम तरीके से चलता रहा। 35 साल से कारोबार का सहारा बनीं 22 दुकानों को दूसरे दिन भी ढहाया जा रहा है। शनिवार को 7 घंटे चली कार्रवाई में करीब 40% हिस्सा मलबे में बदल चुका था लेकिन इस बार किसी के आँसू, किसी की चीख… यहाँ तक कि महिलाओं की गुहार भी प्रशासन का दिल नहीं पिघला पाई।
“बस एक आखिरी नजर डालने दो…” - भावुक महिलाओं की पुलिस से भिड़ंत
आपको बता दें कि दुकानों के सामने ही रोती-बिलखती महिलाएँ बार-बार अफसरों के पास जाकर बोलीं कि “हमें अपनी दुकान आखिरी बार तो देख लेने दो… हमारी जिंदगी यहीं थी!” मगर सुरक्षा के नाम पर पुलिस ने किसी को पास नहीं आने दिया।
एक महिला की दरोगा से तीखी नोकझोंक भी हुई, लेकिन हालात में कोई बदलाव नहीं आया।
पूरा मार्केट बना किला; ड्रोन निगरानी और भारी फोर्स तैनात
गौरतलब है कि पूरे इलाके में बैरिकेडिंग चालू है, PAC और कई थानों की फोर्स लगी हुई है। ATS के ड्रोन से पल-पल की निगरानी की जा रही है। यह नज़ारा किसी फिल्मी ऑपरेशन से कम नहीं था। लोग बोल रहे थे कि "मार्केट नहीं, दिल तोड़ा जा रहा है!"
मामला पहुँचा था सुप्रीम कोर्ट; आदेश हुआ, अब एक्शन भी अंतिम!, जानें पूरा मामला
आपकी जानकारी के लिये बता दें कि यह जमीन मूल रूप से आवासीय उपयोग के लिए थी। लेकिन 1990 में पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिए कमर्शियल कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दिया गया। इसके बाद कानूनी लड़ाई डेढ़ दशक तक चलती रही… आखिरकार 17 दिसंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने 3 महीने में ध्वस्तीकरण का आदेश दिया। इसलिए प्रशासन ने कहा कि “अब एक इंच भी बचने नहीं देंगे”
मलबा देखने रात में पहुंचे लोग — जिसे कभी कहते थे ‘दिल का बाजार’, आज खंडहर!
विदित है कि शनिवार रात को शहरभर से लोग टूटे हुए शटर और बिखरी हुई यादें देखने आए। जिस जगह कभी पैर रखने की जगह नहीं होती थी, आज वहां मौत-सी खामोशी थी। एक बुजुर्ग दुकानदार ने आंसू पोंछते हुए कहा कि “जहाँ हमारी दुनिया बसी थी, वही आज दफन हो गई…”
22 दुकानें आज, 90 और कल; दुकानदारों में दहशत - “अब हमारी बारी?”
गौरतलब है कि अधिकारियों ने साफ कर दिया कि सेंट्रल मार्केट के 31 और प्रतिष्ठान भी रूल-वायलेशन में हैं। लगभग 90 दुकानों पर अब बुलडोजर की तलवार लटक गई है! लोग अपने दस्तावेज़ लेकर अफसरों के पीछे दौड़े जा रहे हैं ताकि पता चले कि “हम भी अगली लिस्ट में हैं क्या?”
अदालत और प्रशासन का कठोर संदेश - "अवैध पर कोई रहम नहीं!"
दूसरी तरफ टूटे दिलों की पुकार कि इतनी देर से ये कानून याद आया कानून?” यह मामला सिर्फ एक इमारत का नहीं 35 साल पुराने संघर्ष, उम्मीद और बाजार की धड़कनों का है, जो अब ईंटों के ढेर में दबी पड़ी हैं।