उत्तरकाशी : उत्तराखंड के धराली गांव में मंगलवार दोपहर बादल फटने से भयावह त्रासदी आई। मात्र 34 सेकंड में पहाड़ी नाले का पानी सैलाब बनकर उतरा और सैकड़ों घर, होटल व 1500 साल पुराना कल्प केदार महादेव मंदिर मलबे में दब गए। अब तक 4 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 50 से अधिक लोग लापता हैं। सेना के 11 जवान भी गुमशुदा हैं। जबकि 150 से ज्यादा लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है।
तबाही की दहलाने वाला मंजर :
आपको बता दें कि प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, खीर गंगा नदी का जलस्तर अचानक बढ़ा और 10 मीटर चौड़ी नदी 30 मीटर में फैल गई। और 34 सेकंड में सब कुछ बहा ले गया।150+ लोग बचाए गए, NDRF, SDRF, ITBP और सेना की संयुक्त टीमें रात-दिन रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटी हैं। हर्षिल और सुक्की में भी बादल फटने की खबर आई है आसपास के इलाकों में भी भारी नुकसान हुआ है।
पीएम मोदी ने CM धामी से की बात
गौरतलब है कि बुधवार सुबह प्रधानमंत्री ने हालात जाने और मदद का आश्वासन दिया। उन्होंने हालात को जानकर यथासम्भव मदद की बात की।
CM धामी ने किया एरियल सर्वे :
गौरतलब है कि मौके पर CM धामी ने पहुंचकर राहत कार्यों की समीक्षा की। साथ ही एरियल सर्वे करके पूरी घटनास्थल का जायजा लिया।
1500 साल पुराना प्राचीन मंदिर भी बर्बाद :
विदित है कि धराली में आने वाली आपदा ने 1500 साल पुराना कल्प केदार महादेव मंदिर भी ध्वस्त कर दिया। यह मंदिर पंच केदार परंपरा से जुड़ा था और स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केंद्र था। भागीरथी नदी के किनारे स्थित यह मंदिर अब मलबे में दफन हो चुका है।
क्यों आई इतनी भयानक तबाही?
आपको बता दें कि उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिले का धराली गांव हिमालय और ट्रांसहिमालय के तलहटी में बसा है। यहां कई टेक्टोनिक गतिविधियाँ होती रहती हैं, जिससे यह क्षेत्र भूकम्प संवेदनशील बन जाता है। धराली गंगोत्री यात्रा का प्रमुख पड़ाव है, जहां कई होटल और दुकानें थीं। पहाड़ी नालों में अचानक पानी का दबाव इतना तेज था कि लोगों को खुद को बचा सकने का मौका भी नहीं मिल पाया।
सरकार का रेसक्यू ऑपरेशन जारी :
विदित है कि लापता लोगों की तलाश जारी है, भारी मलबे के कारण रेसक्यू ऑपरेशन धीमा है। मृतकों के परिवार को मुआवजा के तौर पर सरकार ने 4 लाख रुपये देने की घोषणा की है। गंगोत्री हाईवे क्षतिग्रस्त होने से तीर्थयात्रियों को रोका गया है। यात्रा मार्ग बंद है।
उत्तराखंड एक बार फिर प्राकृतिक आपदा की मार झेल रहा है। 2013 की केदारनाथ त्रासदी के बाद यह सबसे बड़ी घटना है, जो पहाड़ों पर अतिक्रमण और मौसम चेतावनी प्रणालियों की कमजोरियों को उजागर करती है।