नई दिल्ली : अरावली को लेकर पिछले एक महीने से उठे भारी विवाद, विरोध प्रदर्शनों, सोशल मीडिया की आग और पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनियों के बीच सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए अपने ही आदेश पर रोक लगा दी है। जिससे पर्यावरण प्रेमियों के बीच खुशी की लहर है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश :
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के नए आदेश के अनुसार अब :
●100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों में खनन की अनुमति वाला आदेश अब स्थगित
●पूरी अरावली में खनन 21 जनवरी 2026 तक पूर्णत: बंद
●नई हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी बनेगी, पूरी जांच करेगी
यह वही आदेश है जिसने राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली-NCR में तूफान मचा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों रोका अपना ही आदेश?
गौरतलब है कि 20 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की सलाह मानते हुए कहा था कि सिर्फ 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अरावली माना जाए इसका मतलब हुआ कि राजस्थान-हरियाणा की हजारों छोटी-मोटी पहाड़ियां अरावली संरक्षण क्षेत्र से बाहर हो जातीं, और खनन कंपनियों के लिए रास्ते खुल जाते। बस यहीं से विरोध की आग भड़क उठी -
●उदयपुर, अलवर, जयपुर, गुरुग्राम में बड़े प्रदर्शन हुए।
●पूर्व CM अशोक गहलोत खुलकर समर्थन में आये।
●वकीलों, सामाजिक संस्थाओं, NSUI, कांग्रेस—सड़क पर
●केंद्र को नई खनन रोक लगाने पर मजबूर होना पड़ा
और अब सुप्रीम कोर्ट को खुद आगे आकर यू-टर्न लेना पड़ा।
CJI सूर्यकांत ने कहा - “गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं, रिपोर्ट पर अब रोक”
विदित है कि CJI सूर्यकांत की वेकेशन बेंच ने सख्त लहजे में कहा कि -
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को लेकर गलत अर्थ निकाले जा रहे हैं
सामाजिक भ्रम और गलतफहमी दूर किए बिना कोई आदेश लागू नहीं होगा
अभी कोई भी सिफारिश लागू न की जाए
यानी, 100 मीटर वाली विवादित परिभाषा फिलहाल ठप है और खनन पर पूरी रोक जारी और निष्पक्ष और स्वतंत्र मूल्यांकन जरूरी है।
हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी बनेगी, ये सवाल जांचेगी :
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि नए सवालों पर गहरी जांच जरूरी है -
क्या अरावली को सिर्फ 100 मीटर तक सीमित करने से संरक्षण क्षेत्र छोटा हो जाएगा?
क्या इससे नॉन-अरावली क्षेत्रों में खनन का दायरा बढ़ जाएगा?
अगर दो 100 मीटर के पहाड़ी समूहों के बीच 700 मीटर का गैप हो, तो क्या वहाँ खनन कानूनी हो जाएगा?
क्या इसमें पारिस्थितिक निरंतरता टूट जाएगी?
क्या वर्तमान परिभाषा में नियामक खालीपन है?
ये मुद्दे इतने गंभीर हैं कि कोर्ट ने कहा कि “स्पष्टीकरण के बिना आदेश लागू नहीं हो सकता.”
समझिए पूरा विवाद; कैसे फूटा ‘अरावली आंदोलन’?
20 नवंबर - कोर्ट ने 100 मीटर वाली परिभाषा स्वीकार की
16–27 दिसंबर - राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली में बड़े विरोध
25 दिसंबर - केंद्र ने नई खनन लीज़ पर रोक लगाई
27 दिसंबर - सुप्रीम कोर्ट ने Suomoto संज्ञान लिया
29 दिसंबर - कोर्ट ने आदेश पर रोक लगा दी
यह किसी जन आंदोलन जैसा माहौल बन गया। आम लोग, वकील, छात्र, राजनीतिक दल, पर्यावरण कार्यकर्ता सभी एक मुद्दे पर एकजुट हो गए।
अरावली क्यों इतना बड़ा मुद्दा है?
गौरतलब है कि अरावली सिर्फ पहाड़ नहीं ये NCR का “प्राकृतिक एयर प्यूरिफायर” है। राजस्थान में इसका 80% हिस्सा है, यह रेगिस्तान को दिल्ली-एनसीआर तक बढ़ने से रोकती है और भूजल बढ़ाने की लाइफलाइन है। साथ ही 20 से ज्यादा नदियों का जन्मस्थान है। यह जैव विविधता का विशाल घर है यानी, अरावली जाएगी तो NCR की हवा और पानी दोनों खतरे में आ जायेगी।
फिलहाल स्थिति क्या है?
गौरतलब है कि फिलहाल 21 जनवरी 2026 तक खनन पूरी तरह बंद है। 100 मीटर की परिभाषा लागू नहीं होगी। नई कमेटी रिपोर्ट देगी, उसके बाद फैसला होगा। केंद्र और चार राज्यों को नोटिस भेजा जा चुका है
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि “अरावली की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता है, पूरा सहयोग देंगे।”
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अरावली को बड़ी राहत मिली है। यह आदेश सिर्फ एक पर्यावरण केस नहीं, बल्कि भारत के सबसे पुराने पर्वतों को बचाने की लड़ाई का टर्निंग पॉइंट है। पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने जनता के दबाव, गलतफहमियों और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को देखते हुए अपने ही आदेश पर रोक लगाई है। अब गेंद एक्सपर्ट कमेटी के पाले में है, यह तय करेगी कि अरावली की सीमा कैसे तय होगी और खनन कहां तक हो सकता है।