दिल्ली में उत्तराखंड कांग्रेस के नेताओं को राहुल-खड़गे की सख्त हिदायत!: 2027 की लड़ाई में एकजुट रहने से लेकर...वही हाईलेवल मीटिंग में मिला ये अल्टीमेटम
दिल्ली में उत्तराखंड कांग्रेस के नेताओं को राहुल-खड़गे की सख्त हिदायत!

नई दिल्ली/देहरादून : दिल्ली के इंदिरा भवन में गुरुवार को उत्तराखंड कांग्रेस के आला नेताओं की एक बेहद अहम, तीखी और सख्त बैठक हुई और इस बार हाईकमान ने साफ कर दिया कि “अब अनुशासनहीनता का खेल, गुटबाजी, एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाज़ी नहीं चलेगी। 2022 विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद पहली बार हुआ है कि राहुल गांधी और पार्टी-अध्यक्ष मल्लिकार्जुन-खड़गे ने उत्तराखंड-कांग्रेस के नेताओं को दिल्ली बुलाकर सीधे कड़े लहजे में चेतावनी दी । यह बैठक रणनीतिक के साथ राजनीतिक चेतावनी से भरी रही।

राहुल गांधी का संदेश; 2027 जीतना है तो लड़ाई एकजुट होकर लड़नी होगी” :

गौरतलब है कि बैठक की शुरुआत से ही राहुल गांधी ने तेवर कड़े रखे। उन्होंने साफ-साफ कहा कि : "मैं उत्तराखंड से हर दिन कोई न कोई विवाद या बयानबाज़ी की खबर देखता हूं। यह अब कतई बर्दाश्त नहीं होगी। अगर कोई नेता सार्वजनिक तौर पर पार्टी या साथी नेताओं के खिलाफ बोलेगा तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।" राहुल गांधी ने प्रदेश नेताओं को याद दिलाया कि 2027 का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है और यदि कांग्रेस को सत्ता में लौटना है तो "हर नेता को हाईकमान के निर्देशों का पालन करना होगा, सामूहिकता के साथ काम करना होगा, और संगठन को मजबूत करना होगा।"

दिल्ली में पहुंची शिकायतों का अब हुआ हिसाब :

आपको बता दें कि असल में बीते कई महीनों से उत्तराखंड कांग्रेस में अंदरूनी कलह बढ़ती जा रही थी। बड़े नेता अपने-अपने कार्यक्रम अलग से कर रहे थे। प्रदेश अध्यक्ष को कार्यक्रमों की जानकारी तक नहीं दी जाती थी। संगठन से अलग 'गुटबाज़' कार्यक्रम होते थे। इन सब शिकायतों की फाइलें दिल्ली पहुंच चुकी थीं। आखिरकार राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन-खड़गे ने सतर्क किया कि इस पर अब रोक लगाया जाए।

कांग्रेस की ताकत गरीब, पिछड़े और अल्पसंख्यक :

रिपोर्ट के अनुसारकांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बैठक में कहा: "उत्तराखंड में कांग्रेस को वंचित, शोषित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पकड़ मज़बूत करनी है। ये हमारा मूल आधार है, इसे छोड़कर सत्ता में वापसी संभव नहीं है।" खड़गे ने चेतावनी दी कि पार्टी को 'आम आदमी की आवाज़' बनकर चुनाव लड़ना होगा, न कि सिर्फ नेताओं के पोस्टर या निजी प्रचार के सहारे।

संगठनात्मक गतिविधियों पर चली हाईकमान की 'जांच' :

आपको बता दें कि बैठक के दौरान राहुल गांधी और खड़गे ने यह भी पूछा कि उत्तराखंड में संगठन की क्या स्थिति है। कांग्रेस के धरातल पर कितने कार्यक्रम हो रहे हैं? नेता कितना सक्रिय हैं? जनता तक कांग्रेस की आवाज़ कितनी पहुँच रही है? प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने रिपोर्ट दी कि नव संकल्प शिविर के बाद पार्टी ज़मीन पर पहले से ज्यादा सक्रिय है और केदारनाथ, बागेश्वर उपचुनाव में मत प्रतिशत बढ़ा है।

गढ़वाल-कुमाऊं में संतुलन की मांग :

गौरतलब है कि बैठक में यह मुद्दा भी उठा कि गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में संगठनात्मक संतुलन बिगड़ा हुआ है। कई वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि दोनों क्षेत्रों में नेतृत्व और टिकट वितरण को लेकर न्यायपूर्ण संतुलन जरूरी है। इस पर राहुल गांधी ने भरोसा दिलाया कि चुनावी रणनीति में क्षेत्रीय संतुलन का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

राहुल गांधी ने पूछा 'नेता कहां, कार्यकर्ता कहां?' :

आपको बता दें कि बैठक के एक हिस्से में राहुल गांधी ने यह भी पूछ लिया कि “नेता तो बहुत हैं, लेकिन जमीनी कार्यकर्ता कहां हैं? उनकी कितनी ट्रेनिंग हुई है?” इस सवाल ने कई नेताओं को असहज कर दिया। सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी ने इस पर जल्द एक जिला स्तर के प्रशिक्षण शिविरों की रूपरेखा तैयार करने को कहा।

कौन-कौन रहे बैठक में मौजूद? :

इस महत्त्वपूर्ण बैठक में उत्तराखंड कांग्रेस के लगभग सभी प्रमुख चेहरे मौजूद रहे जिसमें प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा, प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा, पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, गणेश गोदियाल, विधायक, फ्रंटल संगठनों के अध्यक्ष, और वरिष्ठ पदाधिकारी शामिल रहें। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष करण माहरा ने राहुल गांधी और खड़गे को उत्तराखंड के दौरे का न्योता भी दिया जिस पर राहुल गांधी ने जल्दी ही दौरा करने का आश्वासन दिया।

इस बैठक से यह स्पष्ट संकेत निकला कि कांग्रेस अब उत्तराखंड में 2027 के लिए फोकस मोड में आ गई है। गुटबाजी, अनुशासनहीनता और आपसी लड़ाई पर अब हाईकमान सीधे नजर रखेगा। उत्तराखंड कांग्रेस के लिए यह बैठक एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है। अगर वाकई हाईकमान की हिदायतों को अमल में लाया गया तो पार्टी के लिए 2027 में सत्ता वापसी का रास्ता खुल सकता है और अगर नहीं, तो फिर एक और सियासी हार के लिए तैयार रहना होगा।

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