देहरादून: उत्तराखंड सरकार ने प्रदेश में बढ़ रहे आवारा कुत्तों के खतरे और उनसे होने वाली दुर्घटनाओं पर रोकथाम के लिए एक सख्त कदम उठाया है। अब राज्य में सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खाना खिलाना प्रतिबंधित कर दिया गया है। नियम तोड़ने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेशों के बाद लिया गया है।
चौंकाने वाले आंकड़े; इस साल अब तक 24,605 लोगों को काट चुके हैं कुत्ते
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यह फैसला कोई साधारण कदम नहीं, बल्कि एक गंभीर स्वास्थ्य संकट से निपटने की कोशिश है। नेशनल हेल्थ मिशन के आंकड़े एक डरावनी तस्वीर पेश करते हैं: साल 2009 से 16 साल में अब तक उत्तराखंड में 5.4 लाख से ज्यादा लोगों को आवारा कुत्तों ने काटा है। सिर्फ 2024 में इस साल सितंबर तक ही 24,605 मामले दर्ज हो चुके हैं। अगर यही रफ्तार रही, तो साल का आंकड़ा 32,000 को पार कर सकता है। जिसमें हरिद्वार, देहरादून और नैनीताल में स्थिति सबसे ज्यादा गंभीर है।
क्या है नई गाइडलाइन? ये हैं मुख्य बातें
अब सड़कों, पार्कों और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खाना खिलाना बैन होगा। खिलाना है तो सिर्फ निर्धारित स्थानों पर ही अनुमति होगी।
शिकायत दर्ज कराने के लिए विशेष हेल्पलाइन नंबर जारी किए गए हैं।
पकड़े गए कुत्तों की नसबंदी (Sterilization) और टीकाकरण (Vaccination) किया जाएगा, जिसके बाद उन्हें उसी इलाके में छोड़ दिया जाएगा।
जो कुत्ते ज्यादा आक्रामक हैं या रैबीज से संक्रमित पाए गए हैं, उन्हें स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखा जाएगा।
पशु प्रेमी अब आवारा कुत्तों को गोद ले सकते हैं। इसके लिए संबंधित नगर निकाय में आवेदन देना होगा।
विवाद भी खड़ा: NGO ने उठाए सवाल, कहा- 'गायों पर क्यों नहीं लागू होते ये नियम?'
विदित है कि सरकार के इस फैसले पर पशु कल्याण संगठनों (NGOs) की तरफ से सवाल उठाए जा रहे हैं। देहरादून के 'दून एनिमल वेलफेयर' के फाउंडर अमित पाल ने पूछा है, "सरकार के ये नियम गायों पर लागू क्यों नहीं होते?" उन्होंने कहा, "अगर कुत्तों को खाना खिलाने पर एक्शन होगा तो सरकार इसका सॉल्यूशन भी बताए। कुत्ते बेजुबान होते हैं, उन्हें नहीं पता कि उन्हें कहां खाना मिलने वाला है।"
सुप्रीम कोर्ट का दबाव: 3 नवंबर को पेश होने हैं मुख्य सचिव -
गौरतलब है कि यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद आया है। अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि आवारा कुत्तों को पकड़ने के काम में बाधा डालने वालों पर कार्रवाई हो। कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को 3 नवंबर को व्यक्तिगत रूप से पेश होकर जवाब देने का आदेश दिया है। उत्तराखंड सरकार इसी बैठक से पहले अपनी तैयारी दिखाना चाहती है।
उत्तराखंड सरकार का यह कदम आम नागरिकों की सुरक्षा और पशु कल्याण के बीच एक नाजुक संतुलन बनाने की कोशिश है। एक तरफ जहाँ लोगों को कुत्तों के हमलों और रैबीज जैसी जानलेवा बीमारी का डर है, वहीं दूसरी तरफ पशु प्रेमी इसे जानवरों के अधिकारों पर हमला मान रहे हैं। सरकार की यह नीति कितनी कारगर साबित होती है, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि नसबंदी, टीकाकरण और शेल्टर होम जैसे उपाय कितनी गंभीरता से लागू हो पाते हैं। फिलहाल, यह स्पष्ट है कि उत्तराखंड की सड़कों पर अब 'करुणा' और 'कानून' के बीच एक नई लड़ाई शुरू हो गई है।