ज्योतिष: 7–8 सितंबर 2025 की रात आसमान एक दुर्लभ खगोलीय घटना का साक्षी बनेगा। इस दिन पूर्ण चंद्रग्रहण लगेगा, जब चांद लालिमा लिए हुए ‘ब्लड मून’ के रूप में दिखाई देगा।विस्तार- सात अगस्त को साल का दूसरा चंद्रग्रहण है। साथ ही कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर श्राद्ध भी शुरू हो जाएंगे। खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार, यह ग्रहण लगभग 82 मिनट तक पूर्ण रूप से दिखाई देगा और कुल अवधि तीन घंटे से अधिक रहेगी। भारत समेत एशिया, यूरोप, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के करोड़ों लोग इस नजारे को देख पाएंगे। आचार्य डॉ. सुशांत राज ने बताया कि साल का दूसरा चंद्रग्रहण रविवार को भारत में दिखेगा।
कब और कैसे दिखेगा ग्रहण?...
भारत में चंद्रग्रहण का आरंभ 7 सितंबर रात 9:58 बजे होगा।
•आंशिक चरण: 10:09 बजे
•पूर्ण ग्रहण: 11:01 बजे से
•अधिकतम ग्रहण: 11:41 बजे
•पूर्णता का अंत: 12:22 बजे (8 सितंबर)
•ग्रहण समाप्त: 1:26 बजे रात
वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रग्रहण को नंगी आंखों से देखना पूरी तरह सुरक्षित है। किसी चश्मे या उपकरण की आवश्यकता नहीं है।
मंदिरों में बंदी, सूतक काल लागू...
•ग्रहण के कारण सूतक काल दिन में ही शुरू हो जाएगा। उत्तराखंड से लेकर आंध्र प्रदेश तक कई बड़े मंदिर बंद रहेंगे।
•तिरुमाला मंदिर (आंध्र प्रदेश) लगभग 12 घंटे बंद रहेगा और ग्रहण समाप्त होने के बाद शुद्धिकरण अनुष्ठान किए जाएंगे।
•अन्य मंदिर भी दोपहर से ही बंद होकर अगले दिन तड़के खोले जाएंगे।
पितृ पक्ष का आरंभ...
विशेष बात यह है कि इसी दिन से पितृ पक्ष भी शुरू हो रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, ग्रहण और पितृ पक्ष का संगम धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। मान्यता है कि इस समय पूर्वजों की आत्माओं को तृप्त करने और दान-पुण्य करने से पुण्यफल कई गुना बढ़ जाता है।
क्या करें और क्या न करें...
•सूतक काल और ग्रहण के दौरान भोजन पकाना, पूजा-पाठ और मूर्ति स्पर्श वर्जित।
•गर्भवती महिलाओं को सावधानी बरतने की सलाह।
•ग्रहण समाप्त होने के बाद स्नान, गंगाजल छिड़कना और पितरों के नाम से दान करना शुभ माना जाता है।
•ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस दौरान महामृत्युंजय मंत्र या अपनी राशि के अनुसार मंत्र जप लाभकारी रहेगा।
वैज्ञानिक और सांस्कृतिक नजरिया....
वैज्ञानिक दृष्टि से यह घटना तब होती है जब पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है और पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इस दौरान चांद लालिमा लिए रक्त चंद्रमा जैसा दिखता है।
सांस्कृतिक दृष्टि से यह ग्रहण न सिर्फ धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है बल्कि लोकमान्यताओं और आध्यात्मिक मान्यताओं में भी गहरा प्रभाव डालता है।
आमजन के लिए खास कार्यक्रम...
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र (UCOST) ने इस ग्रहण को लेकर विशेष कार्यक्रम की घोषणा की है। देहरादून के झाझरा परिसर में आम जनता के लिए शाम 7 बजे से रात 1 बजे तक टेलिस्कोप से लाइव अवलोकन कराया जाएगा।
इस तरह 7 सितंबर की रात न केवल खगोल प्रेमियों बल्कि धार्मिक आस्थावानों के लिए भी ऐतिहासिक होगी—जब खून से रंगा चांद पितृ पक्ष की आहट के साथ आसमान में नजर आएगा।
ब्लड मून (Blood Moon) क्या है?.....
ब्लड मून का मतलब
जब चंद्रग्रहण (Lunar Eclipse) के दौरान पृथ्वी सूरज और चंद्रमा के बीच आ जाती है, तो सूर्य की किरणें सीधे चंद्रमा तक नहीं पहुँच पातीं। इस समय केवल पृथ्वी के वायुमंडल से होकर गुज़री लाल रंग की किरणें ही चंद्रमा तक पहुँचती हैं। यही कारण है कि ग्रहण के समय चंद्रमा लालिमा लिए दिखाई देता है, जिसे "ब्लड मून" कहा जाता है।
वैज्ञानिक कारण...
चंद्रग्रहण में पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है। सूर्य की सफेद रोशनी जब पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरती है, तो नीली किरणें बिखर जाती हैं। लाल रंग की किरणें सीधी होकर चंद्रमा तक पहुँचती हैं। इसी वजह से चंद्रमा लाल या तांबे (Copper) जैसा दिखने लगता है।
कितने प्रकार होते हैं...
पूर्ण चंद्रग्रहण (Total Lunar Eclipse) – जब चंद्रमा पूरी तरह पृथ्वी की छाया में आ जाए।
आंशिक चंद्रग्रहण (Partial Lunar Eclipse) – जब चंद्रमा का कुछ हिस्सा ही छाया में हो।
उपछाया चंद्रग्रहण (Penumbral Eclipse) – इसमें चंद्रमा हल्का धुंधला दिखता है, रंग परिवर्तन बहुत कम होता है।
ब्लड मून केवल पूर्ण चंद्रग्रहण के समय ही साफ़ दिखाई देता है।
धार्मिक मान्यता....
•हिंदू धर्म में चंद्रग्रहण को शुभ नहीं माना जाता।
•ग्रहण के दौरान मंदिरों के दरवाज़े बंद रहते हैं।
•ग्रहण के बाद स्नान, दान और पूजा का विशेष महत्व होता है।
•7 सितम्बर 2025 को पड़ने वाला ब्लड मून खास है क्योंकि इसी दिन पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) की शुरुआत भी हो रही है।
कुछ रोचक तथ्य जानते हैं....
•ब्लड मून साल में हर बार नहीं दिखता, बल्कि विशेष परिस्थितियों में ही बनता है।
•2025 का यह ब्लड मून भारत सहित कई देशों में दिखाई देगा।
•इस घटना को "सुपर ब्लड मून" भी कहा जा सकता है, अगर उसी समय चंद्रमा अपनी कक्षा में पृथ्वी के सबसे नज़दीक हो।