उत्तर प्रदेश: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ट्रैक्टरों की कई मंडियां लगती हैं। वहीं इन मंडियों में नए-नए ट्रैक्टर आधे से भी बेहद कम रेट पर बिकते हैं। हालांकि यह सुनने में आपको थोड़ा अटपटा जरूर लग सकता है, लेकिन यह 100 फीसदी बिल्कुल सच है। दरअसल यह ट्रैक्टर उन लोगों के होते हैं, जिनकी कुछ महीने पहले ही मौत हो चुकी होती है। उन लोगों के द्वारा बैंक से लोन लेकर यह ट्रैक्टर खरीदे गए थे।लेकिन मौत के बाद पुलिस रिपोर्ट में यह ट्रैक्टर चोरी दिखा दिए गए तथा फिर फर्जी RC बनवाकर बेच दिए जाते हैं। इसी प्रकार नॉर्थ ईस्ट के राज्यों से भी ऐसे तमाम ट्रैक्टर वेस्ट यूपी में लाकर बेचे जा रहे हैं। पुलिस के द्वारा अब तक ऐसे करीब 25 ट्रैक्टर की रिकवरी करके कई आरोपियों को जेल भेजा जा चुका है।
सबसे पहले समझिए 2 केस स्टडी:
केस 1- व्हीकल लोन कराने के 1 महीने बाद हुई मौत:
यूपी के संभल जिले में बहजोई थाना क्षेत्र के मौजूद गांव बहरौली ताहरपुर का निवासी दिनेश 2 साल पहले TB की बीमारी से बेहद ग्रसित थे। इंश्योरेंस कराने वाले गैंग के द्वारा दिनेश के नाम पर सोनालिका ट्रैक्टर तथा बाइक लोन से निकाली गई थी। ट्रैक्टर का डाउन पेमेंट करीब डेढ़ लाख रुपए फ्रॉड गैंग के द्वारा ही दिया गया, जबकि 6 लाख रुपए का लोन LNT इंश्योरेंस कंपनी के द्वारा किया गया।
वहीं ट्रैक्टर खरीदने के लगभग एक महीने बाद ही दिनेश की मौत हो जाती है। इसके बाद दिनेश का मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर उनका पूरा बैंक लोन माफ करा लिया गया। इधर, जालसाजों के द्वारा 2 लाख 40 हजार रुपए में यह ट्रैक्टर किसी अन्य व्यक्ति को बेच डाला गया। वहीं उस परिवार को पता भी नहीं था कि यह सब फ्रॉड हो रहा है।
केस 2- पिता मरणासन्न स्थिति में आए तो बेटे के द्वारा 3 वाहन लोन से निकाले गए:
संभल पुलिस के द्वारा फर्जी पॉलिसी गैंग से जुड़े एक आरोपी विनोद सिंह को 6 मार्च की तारीख को गिरफ्तार किया गया। विनोद ने बताया है कि उसके पिता पंचम सिंह बीमारी की वजह से मरणासन्न अवस्था में आ गए थे। इसलिए उसने अपने पिता के नाम पर उन्होंने एक ट्रैक्टर, एक बाइक तथा एक स्कूटी का लोन पास करा लिया।
यह लोन श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी से इंश्योर्ड किया गया था। पिता की मौत के बाद विनोद के द्वारा किसी तरह से लोन माफ कराकर ट्रैक्टर और बाइक दोनों बेच दी गई। जबकि लोन वाली स्कूटी खुद ही चला रहा था। पुलिस के द्वारा स्कूटी जब्त कर ली गई है। वहीं पूछताछ में विनोद ने कबूला है कि उसने ऐसा अपने पिता के साथ ही नहीं किया बल्कि तमाम लोगों के साथ में किया है। वह इस फ्रॉड गैंग के नेटवर्क का ही एक हिस्सा है। विनोद का बेटा भी इसी गैंग में जुड़कर ऐसे कई फ्रॉड करता है।
ASP ने कहा की असम, बिहार और छत्तीसगढ़ से भी बिकने आते हैं ट्रैक्टर:
इस महाफ्रॉड केस का सुपरविजन कर रहीं संभल की अपर पुलिस अधीक्षक अनुकृति शर्मा के द्वारा यह बताया गया है कि फ्रॉड गैंग ऐसे लोगों के नाम पर वाहन का लोन पास कराता है, जो बीमार हों तथा मौत की आखिरी स्टेज में हों। दरअसल मार्केट में सामान्यतः ट्रैक्टर की कीमत निर्मल 7-8 लाख रुपए होती है। लोन पास कराकर 1 लाख रुपए का डाउन पेमेंट देकर यह गैंग बीमार व्यक्ति के नाम पर ट्रैक्टर खरीद लेता है।
वहीं जब भी बीमार व्यक्ति की मौत होती है तो उसका मृत्यु प्रमाण पत्र लगाकर पूरा लोन माफ करा लिया जाता है। फिर यह गैंग उस ट्रैक्टर को मात्र 3 से 4 लाख रुपए में आसानी से बेच देता है। कई बार यह ट्रैक्टर फर्जी ढंग से RC बनाकर भी बेचे जाते हैं।ASP ने आगे बताया कि संभल और अमरोहा जिले के बॉर्डर पर एक चौहदपुर जगह है। यहां पर सप्ताह में एक बार ऐसे ट्रैक्टर बाकायदा मंडी लगाकर बेचे गए थे। ऐसी ही कई मंडियां अमरोहा जिले के सैदनंगली तथा बदायूं जिले के देहगवां में भी लगती हैं।
आरोपियों में दो भाकियू नेता भी हैं शामिल:
आपको बता दें कि इस गैंग में जो आरोपी पकड़े गए हैं, उसमें से 2 लोग किसान संगठनों से भी जुड़े हुए पाए गए हैं। संभल में बनियाठेर का निवासी आरोपी राकेश तो भारतीय किसान यूनियन (टिकैत गुट) का तहसील अध्यक्ष है। जबकि दूसरा आरोपी धनारी संभल निवासी विनोद कुमार भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) का एक नेता है। राकेश का साथी छत्रपाल भी गिरफ्तार हुआ है। संभल पुलिस ने बीमा पॉलिसी फ्रॉड गैंग से अब तक जो करीब 25 आरोपी अरेस्ट किए हैं, यह भी उसी गैंग का हिस्सा हैं।आइए अब इस लोन माफी की प्रक्रिया को एक एक्सपर्ट के माध्यम से समझने की कोशिश करते हैं:
डेथ सटिर्फिकेट तथा एक शपथ पत्र देकर माफ हो जाता है व्हीकल लोन:
दरअसल इस पूरे मामले में बैंकिंग लोन सेक्टर से जुड़े प्रदीप गर्ग ने मीडिया से बातचीत की। मीडिया का सवाल था कि अगर व्हीकल लोन लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाए तो लोन माफी की पूरी प्रक्रिया क्या है? इस पर वह बताते हैं कि सिर्फ 2 डॉक्यूमेंट्स ही बैंक को दिए जाते हैं।
इसमें पहला- डेथ सर्टिफिकेट तथा दूसरा- एक शपथ पत्र होता है।
जिस पर फैमिली यह लिखकर देगी कि हमारी आर्थिक स्थिति अब लोन जमा करने की नहीं है। फैमिली में कमाई का कोई अनु साधन नहीं है। फिर इन दोनों डॉक्यूमेंट्स के आधार पर ही बैंक इंश्योरेंस कंपनी से उस वाहन का पैसा क्लेम कर लेता है। यानि इंश्योरेंस कंपनी वाहन का पूरा पैसा बैंक में जमा कर देती है।
वाहन खरीदने के साथ में एक्सीडेंटल कवर मिलता है फ्री:
इसी क्रम में दूसरा सवाल था कि क्या ऐसे केस में वाहन रिकवरी नहीं किए जाते हैं? इस पर प्रदीप गर्ग बताते हैं कि जब हम कोई भी वाहन खरीदते हैं तो उसके साथ में हमें एक्सीडेंटल कवर फ्री मिलता है। चूंकि जिस व्यक्ति के द्वारा वाहन लोन लिया गया था, उसकी मौत हो चुकी है। इसलिए बैंक अथवा फाइनेंस कंपनी के द्वारा वाहन को रिकवर करने का कोई प्रावधान नहीं होता है।एक अन्य प्रश्न था कि ऐसे वाहन सस्ते में कैसे बेच दिए जाते हैं? इस पर उन्होंने आगे बताते हुए कहा कि इस तरह के ज्यादातर केस में डेथ की मुख्य वजह एक्सीडेंटल दिखाई जाती है। ऐसी स्थिति में वाहन का एक्सीडेंट दिखाना भी अनिवार्य होता है।
अब जानिए कैसे हुई इस पूरे मामले की शुरुआत:
दरअसल संभल पुलिस के द्वारा वाहन चेकिंग के दौरान 17 जनवरी 2024 कि तारीख को स्कॉर्पियो सवार 2 युवक पकड़े गए थे। इसमें मुख्य मास्टरमाइंड ओंकारेश्वर मिश्रा निवासी वाराणसी के मोबाइल से करीब 1 लाख अलग-अलग लोगों के फोटो तथा कई हजार डॉक्यूमेंट्स भी मिले थे। यह सभी डॉक्यूमेंट्स बीमा पॉलिसी से जुड़े हुए थे। वहीं आगे जांच हुई तो पता चला कि देश में एक ऐसा गैंग एक्टिव है जो लोगों के मरने से पहले और मरने के बाद हेल्थ बीमा कराता है। पिछले 8 वर्षों से एक्टिव इस गैंग के द्वारा अब तक करीब 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का फ्रॉड इसी तरह से किया गया है। 17 जनवरी के बाद से आज तक लगातार गिरफ्तारियां की जा रही हैं। अब तक करीब 25 आरोपी जेल भी जा चुके हैं।