यूपी में नेता बनाम अफसर की तकरार बढ़ी!: 2 महीने में 4 विधायक अफसरो से भिड़े...आखिर क्यों बढ़ रहे हैं ऐसे मामले? समाधान वक्त की जरूरत
यूपी में नेता बनाम अफसर की तकरार बढ़ी!

उत्तर-प्रदेश : उत्तर प्रदेश में जनप्रतिनिधि यानी विधायक और अफसरों के बीच टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है। बीजेपी के कई विधायक सरकार के ही अफसरों पर आरोप लगा रहे हैं कि वे फोन नहीं उठाते, जनसमस्याओं को अनदेखा करते हैं और मनमानी करते हैं। जानकारों का मानना है कि अगर यह सिलसिला यूं ही चला, तो सरकार को अंदर से ही झटका लग सकता है आइए, पहले जानते हैं हाल के 4 बड़े मामले:

 1. बांदा विधायक की अफसर को धमकी 

आपको बता दें कि 11 जुलाई को बांदा के बीजेपी विधायक प्रकाश द्विवेदी ने एसडीएम रजत वर्मा को फोन पर डांट लगाई। उन्होंने कहा कि : 'मनमानी करोगे तो हम आकर ठीक कर देंगे, नौकरी करना सिखा देंगे।"

दरअसल, एसडीएम ने जर्जर सरकारी भवन को गिरवा दिया था, जिससे लोग नाराज थे और विधायक से शिकायत करने पहुंचे।

 2. देवरिया में मीटिंग छोड़कर चले गए विधायक 

गौरतलब है कि 3 जुलाई को बीजेपी विधायक दीपक मिश्रा एक प्रशासनिक बैठक में शामिल थे। वहां अधिकारियों से बहस हो गई, जिससे नाराज होकर वे मीटिंग बीच में ही छोड़कर चले गए।

 3. अलीगढ़ की महिला विधायक ने CMO पर लगाए आरोप 

विदित है कि मुक्ता राजा, विधायक अलीगढ़, ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) पर आरोप लगाया कि वे सरकारी अस्पतालों में हो रही दलाली की शिकायतें नजरअंदाज कर रहे हैं। उन्होंने अफसर के तबादले की मांग भी की।

 4. बुलंदशहर विधायक बोले- अफसर फोन नहीं उठाते 

गौरतलब है कि सिकंदराबाद से बीजेपी विधायक ठाकुर लक्ष्मीराज सिंह ने कहा कि बिजली विभाग के अफसर जनता की समस्या पर ध्यान नहीं देते और फोन तक नहीं उठाते।

और भी विधायक हैं नाराज :

आपको बता दें कि इन् मामलों के बीच नंदकिशोर गुर्जर (लोनी विधायक) ने यहां तक कह दिया कि ये “अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार” है। वहीं नंदी बनाम मुख्य सचिव विवाद इतना बढ़ा कि मामला मुख्यमंत्री तक पहुंच गया। साथ ही पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने भी सोशल मीडिया पर प्रशासन की लापरवाही की खुलकर आलोचना की।

क्या इसका असर सरकार पर होगा?

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक ये कोई नया मुद्दा नहीं है। पहले भी योगी सरकार 1.0 के समय 200 से ज़्यादा बीजेपी विधायक सदन में धरने पर बैठ गए थे, जब अफसरों की मनमानी पर नाराजगी जताई गई थी। अगर अब भी विधायकों की बात नहीं सुनी गई, तो ये मामला आंदोलन या बगावत का रूप ले सकता है।

विधानसभा अध्यक्ष ने चेताया था :

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने कहा था कि अफसरों को विधायकों का फोन उठाना चाहिए, उनकी समस्याएं सुननी चाहिए। लेकिन अभी भी नीचे से लेकर ऊपर तक कई अफसर इन निर्देशों को नहीं मान रहे हैं।

क्या है विशेषज्ञों की राय :

गौरतलब है कि पूर्व मुख्य सचिव आर.के. तिवारी का कहना है कि नेता और अफसर के बीच संवाद की कमी है। अब दोनों एक-दूसरे से खुलकर बात करें, तो झगड़े नहीं होंगे। वहीं पूर्व विधानसभा अध्यक्ष हृदयनारायण दीक्षित कहते हैं कि : "जनता ने विधायकों को चुना है, अफसरों को नहीं। लोकतंत्र में अफसरों को जनप्रतिनिधियों का सम्मान करना चाहिए।"

अगर सरकार अपने ही विधायकों की बात नहीं मानी, अफसरों की मनमानी चलती रही, और संवाद नहीं बढ़ा, तो आने वाले समय में यह अंदरूनी कलह सरकार के लिए बड़ी राजनीतिक चुनौती बन सकती है।सरकार को चाहिए कि तुरंत समाधान निकाले नहीं तो ये तकरार, विद्रोह में बदल सकती है। दोनों पक्षों को समन्वयता के साथ कार्य करके जनता की मदद को आगे आना चाहिए।

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