समाज: उत्तर प्रदेश में जातिगत पहचान के नाम पर होने वाले भेदभाव, दिखावा और विभाजन पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस आदेश के बाद राज्य सरकार ने तत्काल अमल शुरू कर दिया है। अब न तो FIR और पुलिस रिकॉर्ड में किसी कैदी या आरोपी की जाति लिखी जाएगी न ही वाहनों पर जाति के नाम के स्टिकर मिलेंगे। यहां तक कि जाति के नाम पर आयोजित राजनीतिक रैलियाँ और सार्वजनिक प्रदर्शन भी पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिए गए हैं।
आदेश की पृष्ठभूमि...
इलाहाबाद हाई कोर्ट की बेंच (न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर) के सामने यह मामला लंबे समय से उठ रहा था कि क्यों पुलिस रिकॉर्ड, सार्वजनिक बोर्ड और यहां तक कि गाड़ियों तक पर जाति का उल्लेख किया जाता है। कोर्ट ने माना कि यह प्रथा संविधान द्वारा दिए गए समानता और भाईचारे के मूल्यों के खिलाफ है। अदालत ने इसे Identity Profiling करार देते हुए कहा कि जाति का महिमामंडन या प्रचार राष्ट्र-विरोधी माना जाएगा।
क्या-क्या बदलेगा?
1. पुलिस दस्तावेज़ों में बदलाव...
•अब FIR, गिरफ्तारी/संपत्ति जब्ती मेमो, पंचनामे, और अन्य पुलिस कागजात में किसी भी आरोपी, गवाह या शिकायतकर्ता की जाति नहीं लिखी जाएगी।
•केवल SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम जैसे मामलों में ही जाति लिखना अनिवार्य रहेगा।
•पहचान के लिए नाम, माता-पिता का नाम, पता, जन्म तिथि, पहचान चिन्ह, मोबाइल नंबर और आधार जैसी जानकारी पर्याप्त होगी। न
•पुलिस थानों में लगे बोर्डों और नोटिसों से भी जाति कॉलम हटा दिया जाएगा।
2. वाहनों पर जाति लिखने पर कार्रवाई...
•अब किसी वाहन पर ‘यादव’, ‘जाट’, ‘गुर्जर’, ‘ब्राह्मण’, ‘राजपूत’ जैसे स्टिकर, स्लोगन या प्रतीक नहीं लिखे जा सकेंगे।
•यदि कोई ऐसा करता पाया गया तो मोटर व्हीकल एक्ट और सेंट्रल मोटर व्हीकल रूल्स (CMVR) के तहत भारी चालान और कानूनी कार्रवाई होगी।
•यह कदम जातिगत श्रेष्ठता या भेदभाव का सड़क पर दिखावा रोकने के लिए लिया गया है।
3. सार्वजनिक स्थानों पर रोक...
गांव, मोहल्लों और कॉलोनियों में जाति-आधारित नाम वाले बोर्ड, दीवार लेखन या प्रतीक अब मान्य नहीं होंगे।
सोशल मीडिया पर भी जाति को बढ़ावा देने या गौरव दिखाने वाले कंटेंट पर निगरानी रखी जाएगी।
4. जातिगत रैलियों पर प्रतिबंध...
•राजनीतिक पार्टियाँ अब जाति के नाम पर रैलियाँ, जुलूस या सार्वजनिक सभा नहीं कर पाएंगी।
•ऐसे किसी भी आयोजन को अनुमति नहीं दी जाएगी, और उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई होगी।
अदालत की दलीलें और तर्क...
•अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) जातिगत भेदभाव को प्रतिबंधित करते हैं।
•जाति को महिमामंडित करना भाईचारे और सामाजिक सौहार्द को तोड़ता है।
•पहचान के लिए जाति लिखना न तो कानूनी आवश्यकता है और न ही तार्किक। इसके बजाय आधुनिक पहचान साधन (आधार, मोबाइल, जन्मतिथि आदि) पर्याप्त हैं।
•कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक जाति को सरकारी रिकॉर्ड और सार्वजनिक जीवन से हटाया नहीं जाएगा तब तक सच्चे अर्थों में सामाजिक समानता स्थापित नहीं हो सकती।
संभावित प्रभाव क्या है?
•यह आदेश जातिगत भेदभाव और सामाजिक विभाजन को कम करने की दिशा में क्रांतिकारी माना जा रहा है।
•पुलिस और प्रशासनिक कार्यप्रणाली में जाति की भूमिका खत्म होगी, जिससे निष्पक्षता बढ़ेगी।
•सड़क और सार्वजनिक स्थलों पर जातिगत दिखावा कम होगा।
•राजनीतिक पार्टियों को जाति आधारित वोट बैंक की राजनीति पर पुनर्विचार करना पड़ेगा।
•सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भी जाति-सूचक कंटेंट के खिलाफ निगरानी और नियंत्रण बढ़ेगा।
कुल मिलाकर यह फैसला उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में जाति-मुक्त प्रशासन और सामाजिक समरसता की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।