हरियाणा: हरियाणा के पानीपत ज़िले के बुआना लाखु गांव में हुआ पंचायत चुनाव अब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। वजह? सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार EVM मंगवाकर वोटों की गिनती दोबारा करवाई और ढाई साल पहले हारा उम्मीदवार जीत गया।
2022 का चुनाव और गिनती का ड्रामा
आपको बता दें कि 2 नवंबर 2022 को सरपंच चुनाव हुआ। गांव के 5,000 से ज्यादा वोटरों में से ज्यादातर ने EVM पर बटन दबाया। गिनती शुरू हुई तो पहले मोहित कुमार मलिक को विजेता बताया गया। लेकिन कुछ ही घंटे बाद नतीजा बदल के पलट गया और पीठासीन अधिकारी ने कुलदीप सिंह मलिक को जीत का सर्टिफिकेट दे दिया। गांव में बवाल मचा, आरोप लगे कि गिनती में गड़बड़ी हुई है।
हाईकोर्ट तक पहुंचा मामला
गौरतलब है कि मोहित ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। जिला अदालत ने वोटों की दोबारा गिनती का आदेश दिया, लेकिन हाईकोर्ट ने आदेश रद्द कर दिया और कुलदीप को ही सरपंच घोषित कर दिया। यहां से मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और 33 महीने लंबी कानूनी लड़ाई शुरू हुई।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश
विदित है कि 31 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया, उसने कहा कि सिर्फ एक बूथ नहीं, सभी बूथों की EVM और रिकॉर्ड मंगाए जाएं। इसके साथ ही वीडियोग्राफी के बीच वोटों की दोबारा गिनती हो। और इस प्रक्रिया के दौरान दोनों पक्षों के प्रतिनिधि मौजूद रहें। गिनती हुई तो सच सामने आ गया। मोहित को 1,051 वोट मिले और कुलदीप को 1,000। यानी 51 वोटों से असली विजेता मोहित थे।
15 अगस्त को नए सरपंच ने फ़हराया झंडा
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि तुरंत नोटिफिकेशन जारी कर मोहित को सरपंच बनाया जाए। 14 अगस्त को जिला विकास एवं पंचायत अधिकारी राजेश शर्मा ने मोहित को पद की शपथ दिलाई।
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर मोहित ने बतौर सरपंच ध्वजारोहण किया।
गिनती में गलती, 33 महीने की देरी
आपको बता दें कि असल में बूथ नंबर-69 पर पीठासीन अधिकारी ने गलती कर दी थी। मोहित के वोट कुलदीप के खाते में और कुलदीप के वोट मोहित के खाते में जोड़ दिए गए। एक मानवीय भूल ने पूरे गांव का सरपंच 2.5 वर्ष तक बदलकर रख दिया।
मोहित की पहली प्रतिक्रिया
गौरतलब है कि सरपंच पद संभालने के बाद मोहित ने कहा कि: "इतनी लंबी लड़ाई में कई बार हिम्मत टूटी, लेकिन गांव वालों ने मेरा साथ नहीं छोड़ा। अब शिक्षा, स्वास्थ्य और खेल पर सबसे ज्यादा काम करूंगा।"
मचा राजनीतिक तूफ़ान
आपको बता दें कि तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने इस केस का हवाला देते हुए कहा कि “EVM और चुनावी प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं। अगर पंचायत चुनाव का नतीजा पलट सकता है तो बड़े चुनावों में भी गड़बड़ी मुमकिन है।” विपक्ष ने इसे “लोकतंत्र के लिए चेतावनी” बताते हुए चुनाव आयोग और सरकार पर निशाना साधा।
कुल 33 माह के बाद गांव के सभी लोग आखिरकार असली चुने हुए प्रतिनिधि को सरपंच की कुर्सी पर बैठते हुए देख सके। यह मामला न सिर्फ हरियाणा राज्य, बल्कि संपूर्ण देश के लिए EVM की विश्वसनीयता और चुनावी पारदर्शिता पर बड़ा सवाल बन गया है।