स्वास्थ्य: हर दिन भारत में अनेक महिलाएं अपनी स्तन स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर देती हैं लेकिन यह लापरवाही कभी-कभी जानलेवा साबित हो सकती है। यदि आपके स्तन में गांठ है, त्वचा-रंग-आकार में बदलाव है, निप्पल से तरल निकल रहा है या फिर बगल में मोटाई महसूस हो रही है तो यह सिर्फ संभावित संकेत नहीं, बल्कि एक प्रारम्भिक चेतावनी संकेत हो सकता है कि Breast Cancer का खटका करीब है।
शुरुआती लक्षण जिन्हें अनदेखा करना भारी पड़ सकता है
विशेषज्ञों के अनुसार, स्तन कैंसर की शुरुआत अक्सर किसी बड़ी गांठ या दर्द की गंभीर घटना से नहीं होती बल्कि बहुत ही मामूली बदलाव के रूप में सामने आ सकती है, जिसे अनदेखा करना आगे बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है। उदाहरणस्वरूप:
•ब्रेस्ट या बगल (आर्म पिट) में नई गांठ या मोटा हिस्सा महसूस होना।
•ब्रेस्ट का आकार या रंग अचानक बदल जाना, या त्वचा पर गड्ढे-छाले जैसी पपड़ी पड़ जाना।
•निप्पल (स्तन सिरा) का अंदर की ओर मुड़ जाना, उल्टा होना या निप्पल से तरल निकलना।
•स्तन में अचानक दर्द, भारीपन, जलन या असामान्य संवेदना महसूस होना।
यदि इस तरह के संकेत दिखाई दें, तो इसे हल्के में लेना खतरनाक हो सकता है क्योंकि समय रहते पहचान हो जाने पर इलाज की संभावना बहुत बेहतर होती है।
जोखिम-कारक: कौन अधिक प्रभावित हो सकता है?
किसी एक लक्षण का दिखना ज़रूरी नहीं है कि कैंसर है लेकिन कुछ कारक हैं जिनके होने पर जोखिम बढ़ जाता है। आइए जानें इन कारकों को:
अपरिवर्तनीय कारक (Non-modifiable): महिलाओं में स्तन कैंसर का जोखिम पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक है। उम्र-बढ़ना एक प्रमुख जोखिम कारक है बड़ी उम्र में यह संभावना बढ़ जाती है। यदि आपके किसी पहले-सी परिवार (माँ, बहन, बेटी) में स्तन कैंसर रहा है तो आपका जोखिम भी बढ़ जाता है।
परिवर्तनीय कारक (Modifiable): हालिया अध्ययन बताते हैं कि भारत में 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में भी लगभग 30% केस सामने आ रहे हैं, जिसका कारण माना गया है बदलती जीवनशैली, मोटापा, शराब का सेवन, देर से गर्भावस्था आदि।
इन जोखिम-कारकों को जानना इसलिए महत्वपूर्ण है कि आप अपने लिए अपनाई जाने वाली सावधानियों में सक्रिय हो सकें।
जांच एवं निदान: क्या करें और कब करवाएं?
समय-समय पर सही जांच करवाना जीवनरक्षक साबित हो सकता है नीचे दिए गए हैं प्रमुख परीक्षण:
Self Breast Examination (SBE): हर महीने खुद स्तनों की जांच करें किसी नई गांठ, आकार-रूप में बदलाव, या असामान्य संवेदना का ध्यान रखें।
Clinical Breast Examination (CBE): 30 वर्ष की उम्र के बाद हर 3 साल में, और 40 वर्ष के बाद प्रतिवर्ष एक डॉक्टर द्वारा स्तन की जांच करवाना सुझावित है।
Mammography (मम्मोग्राफी): आमतौर पर 40 वर्ष या उसके बाद हर 1-2 वर्ष में मम्मोग्राफी करवाना लाभदायक है क्योंकि यह बहुत छोटी गांठों व कैल्शिफिकेशन का पता भी लगा सकती है।
Ultrasound / MRI: यदि स्तन घने हों, या अन्य जटिलता हो, तो अल्ट्रासाउंड या एमआरआई से भी विस्तृत जांच करवाई जा सकती है।
Biopsy (बायोप्सी): यदि डॉक्टर को गांठ या कोई संदिग्ध बदलाव दिखे तो उसके नमूने लेकर परीक्षण किया जाता है यह पुष्टि करता है कि वह कैंसर है या नहीं।
इन परीक्षणों को समय रहते कराना इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कैंसर को स्थानीय अवस्था (local stage) में पकड़ने में मदद करता है और ऐसा होने पर 5-वर्ष जीवित रहने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। भारत में हालिया अध्ययन में यही देखा गया है कि स्थानीय अवस्था में पाए गए मरीजों की पांच-वर्ष जीवित रहने की दर बहुत बेहतर है।
भारत की तस्वीर: आँकड़े जो बतलाते हैं सच
भारत में अब स्तन कैंसर महिलाओं में सबसे आम कैंसर बन चुका है यह देश में महिला कैंसर के करीब 28 % से अधिक हिस्से के रूप में पाया गया है।
11 अलग-अलग जनसंख्या-आधारित रजिस्ट्रियों के डेटा के अनुसार, भारत में स्तन कैंसर से ग्रसित महिलाओं का पांच-वर्ष जीवित रहने का अनुपात 66.4 % है।
उनमें से जिनका कैंसर दूरी पर यानी दूसरे अंगों तक फैला (distant-stage) था उन्हें जीवित रहने की संभावना काफी कम थी। यानी यह स्लो चाल चल रहा है कि देर से पहचान = कम उम्मीद।
यह भी पाया गया कि ग्रामीण इलाकों, कम शिक्षा-स्तर वाले समूहों तथा सीमित स्वास्थ्य-सुविधा वाले क्षेत्रों में देर से (Stage III/IV) आने की प्रवृत्ति ज्यादा थी जो परिणाम को प्रभावित करती है।
इन आँकड़ों से स्पष्ट है समय रहते पहचान और जांच जीवन-परिवर्तनकारी हो सकती है।
वास्तविक कहानी: चेतावनी जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते
दिल्ली की 32 वर्षीय पूजा शर्मा ने जब ब्रेस्ट में हल्की गांठ अनुभव की, तो उन्होंने सोचा “थोड़ी चिंता नहीं, कुछ नहीं होगा”। कुछ महीने गुज़र गए गांठ बड़ा हुई, त्वचा में बदलाव आया, निप्पल से तरल निकलने लगा। जांच पर पता चला कि यह Stage-2 स्तन कैंसर था। डॉक्टरों ने कहा “अगर शुरुआत में जांच होती तो सिर्फ सर्जरी या हल्के इलाज से काम चल सकता था। अब किमोथैरेपी, रेडियोथेरपी और लंबी अस्पताल-यात्रा का वक्त आ गया।”
यह कहानी सिर्फ पूजा की नहीं यह हमारी उन सभी महिलाओं की है जो अपने स्वास्थ्य-सिग्नल को अनदेखा करती हैं। हमारी लड़ाई अपनी जान रखने की है, और वह लड़ाई हर दिन की छोटी-छोटी सावधानियों से शुरू होती है।
बचाव के उपाय: तुरंत शुरू करें
स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और जागरूक रहना हमारे हाथ में है नीचे दिए गए सुझावों को आप आज ही लागू कर सकते हैं:
•हर महीने खुद अपनी स्तन (SBE) जांच करना शुरू करें।
•शराब और धूम्रपान को पूरी तरह त्यागें शोध बताता है कि शराब का सेवन स्तन कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है।
•नियमित रूप से कम-से-कम 30 मिनट प्रतिदिन शारीरिक क्रिया करें चलना, योग, आसान व्यायाम।
•संतुलित आहार लें तले-भुने खाद्य पदार्थ कम करें, फलों-सब्जियों का सेवन बढ़ाएं।
•यदि मोटापा है या वजन ज्यादा है, तो उसे नियंत्रित करें विशेष तौर पर रजोनिवृत्ति (मेनोपॉज) के बाद मोटापा जोखिम बढ़ा सकता है।
•परिवार में स्तन कैंसर का इतिहास हो तो डॉक्टर से पहले-से सलाह लें और नियमित जांच करवाएं।
•अपनी वज़ह-उम्र-प्रजनन-हड्डी-स्वास्थ्य-इतिहास को डॉक्टर को बताएं ताकि औपचारिक जोखिम मूल्यांकन हो सके।
इलाज की दिशा और नई तकनीकें
आज चिकित्सा-विज्ञान में ऐसे कई नवाचार हो रहे हैं जिनकी वजह से स्थिति पहले से बेहतर नियंत्रित हो रही है। उदाहरण के तौर पर:
भारत में अध्ययन में पाया गया है कि यदि रोग स्थानीय स्तर (local stage) में पकड़ा जाए, तो पाँच-वर्ष जीवित रहने की दर 81 % तक पहुंच सकती है।
नव-प्रवर्तन में डिजिटल मम्मोग्राफी, 3D मम्मोग्राफी, अल्ट्रासाउंड तकनीकों का प्रयोग बढ़ रहा है, जिससे पहचान और निदान दोनों और सटीक हो रहे हैं।
कीमत की दृष्टि से भी “लो-कॉस्ट” विकल्प विकसित हो रहे हैं ताकि दूरदराज और सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में भी यह सुविधा पहुंच सके।
एक अध्ययन में यह पाया गया कि युवा महिलाओं में स्टेजिंग और सब-टाइप के आधार पर इलाज की सफलता दर तेजी से सुधार रही है।
सामाजिक-आर्थिक पहल और जागरूकता
सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न स्वास्थ्य-स्कीमों के तहत, गरीब एवं मध्यम-वर्गीय महिलाओं के लिए स्तन स्क्रीनिंग कैंप आयोजित किए जा रहे हैं।
सार्वजनिक-स्वास्थ्य संगठनों व एनजीओs द्वारा “स्तन कैंसर जागरूकता माह” (Awareness Month) का आयोजन किया जाता है जिसमें स्वयं-जाँच, क्लीनिकल जाँच, फ्री स्क्रीनिंग आदि होती हैं।
लेकिन अभी भी ग्रामीण-क्षेत्रों, कम-शिक्षित समाजों एवं स्वास्थ्य-सुविधा-हानि वाले इलाकों में जागरूकता बहुत कम है यह स्थिति देर से एहसास और देर से इलाज का कारण बन रही है।
इसलिए यह आवश्यक है कि हम सभी महिलाएं अपने-अपने स्तर पर इस पहल को आगे बढ़ाएं दोस्त-रिश्तेदारों को जागरूक करें, परिवार में बात करें, और समय रहते खुद-जांच तथा डॉक्टर जाँच को प्राथमिकता दें।
मिथक और सच्चाई एक बार फिर
बहुत-से मिथक आज भी अखरते हैं लेकिन सच्चाई इससे बिल्कुल उलटी है:
मिथक: “ब्रेस्ट कैंसर सिर्फ बुजुर्गों को होता है।”
सच्चाई: 25 – 40 वर्ष की उम्र की महिलाओं में भी केस सामने आ रहे हैं।
मिथक: “अगर गांठ नहीं है, तो कैंसर नहीं है।”
सच्चाई: कुछ कैंसर बिना गांठ के भी शुरू हो सकते हैं इसलिए अन्य संकेतों पर भी ध्यान देना जरूरी है।
मिथक: “मम्मोग्राफी बहुत दर्दनाक/खतरनाक है।”
सच्चाई: यह सुरक्षित परीक्षण है और कम-से-कम जोखिम में लाकर इलाज के मौके बढ़ाती है।
मिथक: “परिवार में कैंसर नहीं है तो मैं सुरक्षित हूँ।”
सच्चाई: जीवनशैली, हार्मोनल स्थिति, वजन, आदि भी मुख्य भूमिका निभाते हैं इसलिए हर महिला को नियमित जांच की आवश्यकता है।
अंत में… आपका छोटा लेकिन बड़ा संदेश
“आपके दो मिनट किसी की जिंदगी बचा सकते हैं।” इस खबर को अपनी माँ, बहन, पत्नी, सहेली तक जरूर पहुँचाएं। खुद से वादा करें हर साल एक बार स्तन जाँच ज़रूर कराऊँगी।
समय रहते उठाया गया एक कदम जांच, महसूस करना, डॉक्टर जाना यह लग सकता है मामूली, लेकिन प्रभाव बहुत बड़ा हो सकता है। बैंक-बैलेंस, घर-परिवार, व्यस्त दिनचर्या इन सब के बीच फिर से सोचें क्या आपकी ज़िंदगी इनसे ज्यादा कीमती नहीं है? आज ही एक कॉल करें, अपॉइंटमेंट लें और अपने स्वास्थ्य को प्राथमिकता दें।