नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि गिरफ्तार किए जा रहे व्यक्ति को उसकी गिरफ्तारी का कारण लिखित में देना पुलिस की कानूनी जिम्मेदारी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह जानकारी ऐसी भाषा में दी जाए जिसे गिरफ्तार व्यक्ति आसानी से समझ सके।
फैसले की मुख्य बातें:
●गिरफ्तारी का कारण लिखित में देना अनिवार्य
●जानकारी गिरफ्तार व्यक्ति की समझ की भाषा में हो
●मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से कम से कम 2 घंटे पहले देना होगा लिखित कारण
●नियम न मानने पर गिरफ्तारी और रिमांड दोनों होंगे अवैध
●ऐसे मामले में व्यक्ति को तुरंत रिहा किया जा सकेगा
क्या बोले सुप्रीम कोर्ट?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि CJI बीआर गवई और जस्टिस एजे मसीह की पीठ ने 52 पन्नों के फैसले में कहा कि गिरफ्तारी का कारण बताना संविधान के अनुच्छेद 22 का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा, "अगर जानकारी उसकी समझ वाली भाषा में न दी जाए, तो यह अनुच्छेद 21 और 22 के तहत उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन है।"
क्यों आया यह फैसला?
गौरतलब है कि यह फैसला मुंबई के बीएमडब्ल्यू हिट-एंड-रन केस के आरोपी मिहिर राजेश शाह की अपील पर आया है। मिहिर ने दावा किया था कि उन्हें गिरफ्तारी का लिखित कारण नहीं दिया गया। हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रक्रियागत गलती मानते हुए भी गिरफ्तारी को सही ठहराया था।
क्या हैं नए दिशा-निर्देश?
गिरफ्तारी का कारण लिखित में बताना अनिवार्य
जानकारी व्यक्ति की समझ की भाषा में हो
मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से कम से कम 2 घंटे पहले देना होगा लिखित कारण
अगर तुरंत लिखित में नहीं दे सकते तो मौखिक रूप से बता सकते हैं
नियम न मानने पर गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी
क्या होगा अगर पुलिस नियम नहीं मानती?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर पुलिस इन नियमों का पालन नहीं करती है तो:
●गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी
●रिमांड अवैध होगा
●व्यक्ति को रिहा किया जा सकेगा
हालांकि, पुलिस मजिस्ट्रेट के पास हिरासत की अनुमति के लिए आवेदन दे सकती है, जिस पर मजिस्ट्रेट एक सप्ताह के भीतर फैसला सुनाएंगे।
पूरे देश में लागू होगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस फैसले की कॉपी सभी हाईकोर्ट और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजी जाएगी। यह नियम हर तरह के अपराध के लिए लागू होगा, चाहे वह आईपीसी के तहत हो या किसी अन्य कानून के तहत।
यह फैसला भारत में नागरिक अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। विधि विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पुलिस की मनमानी पर अंकुश लगेगा और आम नागरिकों के अधिकारों की बेहतर सुरक्षा हो सकेगी।