जयपुर | 7 अगस्त 2025 — राजस्थान के चार जिलों – पाली, जालोर, सिरोही और बाड़मेर – के लाखों लोगों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। राज्य सरकार ने माही डैम को जवाई बांध से जोड़ने वाली बहुप्रतीक्षित जल परियोजना को मंजूरी दे दी है। इस योजना की अनुमानित लागत करीब 7000 करोड़ रुपये है और इससे 16 हजार हेक्टेयर भूमि में सिंचाई संभव होगी।
इस योजना के तहत माही और सोम नदी के मानसून में अधिशेष जल को विभिन्न बांधों के माध्यम से जवाई बांध तक पहुँचाया जाएगा, जिससे इन जिलों में पेयजल और सिंचाई दोनों की स्थायी व्यवस्था सुनिश्चित हो सकेगी।
योजना की मुख्य बातें
इस मेगा प्रोजेक्ट को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की अध्यक्षता में जयपुर में हुई बैठक में हरी झंडी दी गई।
जल संसाधन मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि बजट 2024-25 में की गई घोषणा को सरकार द्वारा तेजी से क्रियान्वयन जा रहा है।
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) के अनुसार इस परियोजना के लिए 15.60 करोड़ की स्वीकृति दी गई है।
परियोजना का क्रियान्वयन जल संसाधन विभाग के अंतर्गत किया जाएगा और कार्यादेश वाप्कोस लिमिटेड को जारी कर दिया गया है।
पानी पहुंचेगा इस रास्ते से
इस योजना के तहत माही डैम का पानी जयसमंद, मातृकुंडिया (चित्तौड़गढ़), मेजा (भीलवाड़ा) जैसे बांधों से होते हुए जवाई बांध तक पहुंचेगा। इसके बाद इस पानी का उपयोग चार जिलों में पेयजल और सिंचाई के लिए किया जाएगा।
क्षेत्र — लाभ
पाली, जालोर, सिरोही, बाड़मेर — पेयजल आपूर्ति
उदयपुर, जोधपुर (आंशिक) — सिंचाई और जल पुनर्भरण
16,000 हेक्टेयर भूमि — सिंचाई सुविधा से कृषि उत्पादन में वृद्धि
स्थानीय विरोध भी सामने आया
जहां एक ओर चार जिलों में इस योजना से बड़ी उम्मीदें हैं, वहीं दूसरी ओर बांसवाड़ा और डूंगरपुर के कुछ लोगों ने इसका विरोध जताया है। उनका कहना है कि माही डैम का पहला अधिकार उनके क्षेत्रों का है, जहां अभी भी कई इलाके जल संकट से जूझ रहे हैं।
सांसद लुंबाराम चौधरी ने भी रखा मुद्दा :
जालोर सांसद लुंबाराम चौधरी ने लोकसभा में इस विषय को उठाते हुए कहा था कि पहले हुए समझौतों के अनुसार कडाणा और माही बांध का पानी सिरोही और जालोर को मिलना तय था, लेकिन इसे अभी तक लागू नहीं किया गया है।
उम्मीद और संतुलन की ज़रूरत
राजस्थान की यह महत्वाकांक्षी योजना राज्य के सूखा प्रभावित क्षेत्रों को जीवनदायिनी बन सकती है। हालांकि, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि पानी के बंटवारे में न्याय हो और हर जिले की जरूरतों को बराबरी से सुना जाए। अगर इस परियोजना को संतुलन के साथ लागू किया गया, तो यह राजस्थान के जल इतिहास की एक नई क्रांति साबित हो सकती है।