16 साल बाद होने जा रही हैं भारत की पहली डिजिटल जनगणना!: मोबाइल ऐप से गिने जाएंगे 140 करोड़ लोग? तेज़, आधुनिक लेकिन जोखिम से भरा...जानें डिजिटल जनगणना के फायदें और नुकसान
16 साल बाद होने जा रही हैं भारत की पहली डिजिटल जनगणना!

नई दिल्ली : भारत अब जनगणना के इतिहास में सबसे बड़ा तकनीकी कदम उठाने जा रहा है। 2027 की जनगणना पूरी तरह डिजिटल होगी, यानी जहां पहले कागज़ की मोटी फाइलें होती थीं, वहां अब लाखों गणनाकर्मी अपने स्मार्टफोन में एक ऐप लेकर घर-घर पहुंचेंगे। गृह मंत्रालय ने लोकसभा में इसकी आधिकारिक पुष्टि कर दी है। यह फैसला भारत को उन गिने-चुने देशों की कतार में खड़ा करता है, जिन्होंने अपनी आबादी की गिनती डिजिटल रूप में की, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, घाना और केन्या। मगर भारत जैसे विशाल और विविध देश में यह प्रयोग जितना आकर्षक है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी।

2027 में जनगणना कैसे होगी? पहली बार दो बड़े बदलाव!

1. हर घर की गिनती मोबाइल ऐप से
आपको बता दें कि पहली बार गणनाकर्मी एंड्रॉयड/आईओएस स्मार्टफोन पर विशेष ऐप के जरिए डेटा संग्रह करेंगे।

2. पहली बार ‘स्वयं-जनगणना’ की सुविधा :
गौरतलब है कि पहली बार नागरिक एक वेब पोर्टल पर जाकर अपनी जानकारी खुद दर्ज कर सकेंगे वो भी घर बैठे।

जनगणना क्यों टली थी?

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2011 के बाद अगली जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन

  • कोविड-19 महामारी

  • चुनावी व्यस्तता

  • अधिसूचना में देरी

  • सीमा निर्धारण (Delimitation) प्रक्रिया से जुड़े नियम की वजह से यह 2027 तक खिसक गई। अब यह भारत की 16वीं जनगणना होगी।

दो चरणों में होगी जनगणना :

पहला चरण; हाउस लिस्टिंग: अप्रैल–सितंबर 2026 :
घर की स्थिति, सुविधाएं, पानी–बिजली–कनेक्शन, रहने वालों की संख्या आदि का रिकॉर्ड।

दूसरा चरण; जनसंख्या गणना: फरवरी-मार्च 2027 :
गौरतलब है कि हर व्यक्ति की उम्र, जन्मस्थान, भाषा, प्रवास, पढ़ाई-नौकरी आदि की जानकारी जुटाई जाएगी। पहली बार SC/ST से अलग अन्य जातियों का भी डेटा दर्ज किया जाएगा, जो स्वतंत्र भारत में ऐतिहासिक है।

डिजिटल जनगणना के बड़े फायदे :

1. डेटा आएगा 10 दिन में; अंतिम रिपोर्ट 6 से 9 महीनों में :
विदित है कि पहले जनगणना में कई साल लग जाते थे। यह तेज़ी 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले होने वाले नए परिसीमन (Delimitation) के लिए बेहद अहम है।

2. सटीक डेटा, कम भूल-चूक :
विदित है कि इस बार जियो-टैगिंग, GPS लोकेशन, ऐप में एरर-चेक जैसी तकनीकें गलतियों को कम करेंगी।

3. लागत में भारी कमी
सरकार को टैबलेट खरीदने की जरूरत नहीं होगी। गणनाकर्मी अपने मोबाइल इस्तेमाल करेंगे।

4. 2.4 करोड़ मानव-दिवस का रोजगार :
कई महीनों तक लाखों गणनाकर्मियों की जरूरत होगी। इससे गणनाकर्मी को अतिरिक्त रोजगार मिलेगा।

लेकिन जोखिम भी बड़े हैं… "भारत की सबसे कठिन डिजिटल परीक्षा"

1. डिजिटल डिवाइड; सबसे गरीब लोग छूट सकते हैं
पूर्वोत्तर, पहाड़ी और आदिवासी इलाकों में इंटरनेट आज भी कमजोर है।

2. स्मार्टफोन और ऐप का डर
कई बुजुर्ग, महिलाएं और प्रवासी मजदूर टेक्नोलॉजी से सहज नहीं होते।

3. सबसे बड़ा खतरा; साइबर सुरक्षा
जाति, आय, प्रवास इतिहास जैसी अत्यंत संवेदनशील जानकारी मोबाइल नेटवर्क के जरिए भेजी जाएगी। डेटा चोरी या सर्वर हैक होने का जोखिम सबसे बड़ी चिंता है।

4. दूसरे देशों के अनुभव चेतावनी देते हैं :
आपको बता दें कि घाना, केन्या, नाइजीरिया में -

  • ऐप क्रैश

  • सर्वर डाउन

  • डेटा अपलोड फेल

  • दोबारा गिनती

  • जनता में अविश्वास

जैसी समस्याएं सामने आई थीं। भारत को उन गलतियों से सीखना होगा।

विशेषज्ञों की क्या है राय :

“डिजिटल जनगणना भारत की प्रशासनिक क्रांति है। लेकिन यह उतना ही जोखिम भरा प्रयोग भी है। डेटा सुरक्षा और डिजिटल पहुंच पर खास ध्यान न दिया गया तो गिनती अधूरी रह सकती है।”

भारत एक नए युग में कदम रख रहा है डिजिटल जनगणना से भारत तेज़ फैसले, बेहतर योजना, सटीक आबादी डेटा और आधुनिक प्रशासन की ओर बढ़ेगा। लेकिन यह सफलता तकनीक, प्रशिक्षण और सुरक्षा पर निर्भर होगी।

अन्य खबरे