क्या आप भी बाहर से आकर जूते पहनकर ही घर में घुसते हैं?
हार्वर्ड के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. सौरभ सेठी ने साफ कहा है कि एक डॉक्टर होने के नाते वे अपने घर में ‘No Shoes Policy’ का कड़ाई से पालन करते हैं।
उनके मुताबिक बाहर पहने गए जूते घर के अंदर लाना सिर्फ गंदगी नहीं, बल्कि संक्रमण, बैक्टीरिया, वायरस, टॉक्सिन्स और एलर्जन्स को भी घर में घुसाना है।
जूतों के नीचे छिपे होते हैं लाखों कीटाणु, स्टडी में चौंकाने वाली सच्चाई
अंतरराष्ट्रीय रिसर्च में पाया गया कि जूतों के तल पर मौजूद होते हैं:
•4,00,000+ बैक्टीरिया
•E.Coli
•Clostridium difficile
•Staphylococcus
•कई खतरनाक फंगस
•वायरस के अंश
यही गंदगी घर में आते ही पूरे फर्श में फैल जाती है और फर्श से हवा में।
सबसे डरावनी सच्चाई, जूतों में होते हैं पब्लिक टॉयलेट जैसे बैक्टीरिया
यह वैज्ञानिक रूप से प्रूफ है कि जूतों में वही कीटाणु पाए जाते हैं जो पब्लिक टॉयलेट में होते हैं। यानी आप टॉयलेट की गंदगी को अपने
•बेडरूम
•किचन
•बच्चों के प्ले-एरिया
•कार्पेट
•सोफे
•डायनिंग टेबल
तक पहुंचा रहे हैं।
बच्चों, बुजुर्गों और पालतू जानवरों के लिए सबसे बड़ा खतरा
क्योंकि:
•बच्चे फर्श पर रेंगते हैं
•पालतू जानवर हर कोने को सूंघते हैं
•बुजुर्गों की इम्युनिटी कमजोर होती है
इससे दस्त, उल्टी, पेट दर्द, एलर्जी, स्किन रैश, खांसी, इंफेक्शन और सांस की दिक्कतों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
जूते घर की हवा को जहरीला बना देते हैं
जूते लेकर आते हैं:
•धूल
•प्रदूषण
•पराग कण (pollens)
•स्मॉग पार्टिकल
•डस्ट माइट्स
•सड़क की केमिकल धूल
WHO के अनुसार ऐसी गंदगी इनडोर एयर क्वालिटी को 70% तक खराब कर देती है।
टॉक्सिन और केमिकल घर में आने लगते हैं
सड़कों पर मौजूद:
•पेट्रोल-डीज़ल अवशेष
•कीटनाशक
•सड़क की ग्रिस
•औद्योगिक धूल
जूते इन सबको घर में लेकर आते हैं। लंबे समय में ये टॉक्सिन बच्चों के फेफड़ों और त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
कीटाणु घर में कितने दिन तक जिंदा रहते हैं?
रिसर्च के अनुसार:
•E.Coli: 72 घंटे
•Staph: 3–6 दिन
•C. difficile: 14 दिन
•फंगस: 30 दिन तक
यानी जूतों की एक बार की गंदगी पूरा महीना घर में घूमती रहती है।
कार्पेट और सोफे पर जूतों का जहर कैसे जमा होता है?
कार्पेट स्पंज की तरह बैक्टीरिया सोख लेता है, वैक्यूम से भी 60–70% जर्म्स नहीं निकलते, बच्चे कार्पेट पर खेलते हैं तो 80% कीटाणु उनके हाथों तक पहुंचते हैं, सोफे के कोनों में कीटाणु हफ्तों तक छिपे रहते हैं
इसलिए डॉक्टर कहते हैं, “अगर घर में कार्पेट है, तो No Shoes Indoors ही अपनाएं।”
मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर- साइकोलॉजी की राय
•गंदा घर = बढ़ा हुआ तनाव
•ज्यादा धूल = खराब नींद
•साफ घर = शांत मस्तिष्क
•कम गंदगी = कम चिड़चिड़ापन
जूते न लाने से घर ज्यादा शांत, साफ और पॉज़िटिव लगता है।
फर्श की उम्र 40% तक कम हो जाती है
•जूतों की एड़ी माइक्रो-स्क्रैच डालती है
•लकड़ी के फर्श जल्दी खराब होते हैं
•टाइल्स की चमक घटती है
•कार्पेट जल्दी मैला व बदबूदार होता है
यानी जूते घर का हाइजीन + लुक दोनों खराब करते हैं।
भारत में सदियों से क्यों चलता था “जूतों को बाहर रखने” का नियम?
धार्मिक कारणों के अलावा इसके पीछे गहरा विज्ञान है-
•मिट्टी के घर थे, ज्यादा बैक्टीरिया पनपते थे
•सफाई का तरीका प्राकृतिक था
•धरती से जुड़ाव शरीर की एनर्जी बढ़ाता है
•घर को शांत व पवित्र बनाने का तरीका
आज विज्ञान भी कहता है, यह आदत पूरी तरह वैज्ञानिक थी।
दुनिया भर में बढ़ रहा है “No Shoes Indoors Movement”
अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और जापान में तेजी से अपनाया जा रहा है।
कारण:
•बच्चों की सुरक्षा
•एलर्जी की रोकथाम
•कम प्रदूषण
•बेहतर नींद
•शांत मानसिक वातावरण
इसे अब “Modern Clean Lifestyle” का हिस्सा माना जाता है।
WHO की इनडोर हाइजीन चेकलिस्ट में क्या है?
•घर में जूते न पहनें
•बच्चों का प्ले-एरिया जूता-मुक्त रखें
•फर्श रोज़ साफ करें
•कार्पेट की डीप-क्लीनिंग करें
•एंट्री एरिया को हाइजीन ज़ोन बनाएं
Real Case Study (News Impression का पॉवर पॉइंट)
दिल्ली की एक महिला के बच्चे को बार-बार पेट का इंफेक्शन हो रहा था। जांच में पता चला, E.Coli घर के कार्पेट में मौजूद था।
कारण: पैरेंट्स का जूते पहनकर घर में चलना।
नो-शूज़ पॉलिसी अपनाने के 3 सप्ताह बाद
90% समस्याएँ खत्म हो गईं।
यह केस कई डॉक्टरों ने शेयर किया।
घर में “No Shoes Zone” बनाने के 7 आसान तरीके
•दरवाजे पर शू रैक
•इनडोर स्लिपर की टोकरी
•मेहमानों के लिए साफ चप्पल
•एंट्री पर “No Shoes Inside” का बोर्ड
•डोर-मैट से 50–55% तक गंदगी रुकती है
•रोज़ 2 मिनट की मॉपिंग
•बच्चों के प्ले-एरिया को पूरी तरह जूता-मुक्त रखें
अंतिम चेतावनी: “जूते का एक तल 7 देशों की सड़क जितनी गंदगी उठाकर चलता है।”
डॉक्टर साफ कहते हैं “जितनी बार आप जूते पहनकर घर में आते हैं, उतनी बार आप अपने घर में बीमारियाँ लाते हैं।”
“No Shoes, No Germs, No Risk.”